केस-वन

सुभाषनगर की प्रियंका ने (नेम चेंज्ड ) 3 वर्ष पहले ही बीटेक का कोर्स श्रीराम मूर्ति से बीटेक किया है। कोर्स पूरा होने के बाद बंगलुरु की एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब भी लगा। लेकिन, जब बंगलरु जाने की बात आई तो पेरेंट्स ने प्रियंका को जाने से मना कर दिया। पेरेंट्स का यह कहना था कि अकेली इतने बड़े शहर में कैसे रहेगी। कुछ हो गया तो क्या करेंगे हम।

 

केस-टू

एमबीए का कोर्स करने वाली सुमन शर्मा (नेम चेंज्ड ) इन दिनों शहर में ही जॉब की तलाश कर रही है। क्योंकि दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कम्पनी में प्लेसमेंट होने के बाद भी घर वालों ने सुमन को जॉब के लिए जाने नहीं दिया। पेरेंट्स के मन में इस बात का डर है कि उनकी बेटी को कही कुछ हो न जाए। सुमन के मां-पिता के मन में निर्भया कांड का डर बना हुआ हैं। जिसकी वजह से पेरेंट्स शहर में ही रह कर जॉब करने की सलाह दे रहे हैं।

 

BAREILLY: बरेली एजुकेशन हब केरूप में डेवलप हो चुका है। आईआईटी, बीटेक के साथ फैशन डिजाइनिंग और मैनेजमेंट के कई रेप्यूटेड कॉलेज भी हैं सिटी में। जिनमें हजारों लड़कियां अपना भविष्य संवारने के लिए पढ़ाई कर रही हैं, लेकिन कोर्स खत्म होने के बाद जब शहर से बाहर जाकर जॉब करने की बात आती है, तो पेरेंट्स सुरक्षा का हवाला देकर उनके पांव में बेढि़यां डाल देते हैं। इन लड़कियों के सामने सवाल खड़ा हो गया है कि वह जॉब को प्रिफरेंस दें या सिक्योरिटी को।

 

पेरेंट्स को सता रहा बेटियों की सुरक्षा का डर

शहर की ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट श्रद्धा सक्सेना ने जब 100 से अधिक परिवारों के बीच जाकर सर्वे किया तो यह चौंकानें वाला तथ्य सामने आया। श्रद्धा बताती है कि उन्होंने शहर के अलावा रिठौरा, चावड़ सहित कई क्षेत्रों में सर्वे किया। सर्वे में पढ़े लिखे परिवार की लड़कियों को लिया। जो कि एमबीए, फैशन डिजाइनिंग, लॉ और बीटेक करने के बाद भी शहर में हैं। जो कि बाहर जाकर जॉब करना चाहती है, लेकिन उनके पेरेंट्स उन्हें बाहर भेजने में डर रहे हैं। 50 परसेंट से अधिक लोगों ने अपनी बेटियों को बाहर पढ़ने या जॉब के लिए इस लिए नहीं भेजा कि बाहर लॉ एंड ऑर्डर और सिक्योरिटी नहीं है। ईव टीजिंग जैसी घटनाएं आम हो गई हैं।

 

पैकेज भले ही कम मिले सिक्योरिटी होनी चाहिए

यह हाल आर्थिक रूप से सम्पन्न और पढ़े लिखे परिवारों का है। पेरेंट्स का यहां तक कहना है कि वह अपनी बेटियों को कुछ दिन बेरोजगार रहते देख सकते हैं, लेकिन एनसीआर, बंगलरु, हैदराबाद सहित अन्य सिटीज में भेजने को तैयार नहीं हैं। बीटेक कर चुकी आरती (नेम चेंज्ड ) ने बताया कि उनके मां-पिता कहते हैं जहां लाइफ सिक्योर न हो वहां जॉब नहीं करना है। पेरेंट्स किसी प्रकार का रिस्क लेना नहीं चाहते हैं। पैकेज भले ही कम मिले लेकिन सिक्योरिटी पूरी होनी चाहिए। इस लिए वह बाहर भेजने की बजाय शहर में ही रह कर जॉब करने की नसीहत देते हैं।

 

बाहर भेजने से न डरे बशर्ते करें यह काम - एक्सपर्ट की राय

- सोसायटी के लोग क्या कहेंगे इस बात की डर से बाहर निकले।

- पर्सनॉलिटी ग्रूमिंग घर से हो।

- कानून के प्रति अवेयर करें।

- पुलिस के हेल्पलाइन नम्बर और अधिकारियों के नम्बर अपने पास रखें।

- कुछ भी गलत हो तो तुरंत एक्शन लें और कंप्लेन करें।

- सेल्फ डिफेंस आना चाहिए।

 

100 से अधिक लोगों के बीच जाकर सर्वे किया हैं। पेरेंट्स और बच्चों की मीटिंग भी बुलाई थी। लड़कियों को बाहर जाकर जॉब करने से कोई डर नहीं हैं। लेकिन उनके पेरेंट्स बेटियों की सुरक्षा को लेकर बाहर भेजने को तैयार नहीं हैं। यह स्थिति पढ़े लिखे परिवारों की हैं।

श्रद्धा सक्सेना, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट

 

पेरेंट्स का डर जायज है। लेकिन अपने डर के लिए बच्चों को बाहर नहीं भेजना गलता है। बच्चों को सेल्फ इंडिपेंडेंड बनाना चाहिए। उनके अंदर आत्म विश्वास पैदा करें। ताकि, बाहर उनके साथ कुछ गलत हो तो वह अपनी लड़ाई खुद लड़ सके। जहां जॉब लग रही हैं पेरेंट्स वहां जाकर कुछ दिन साथ भी रह सकते हैं।

डॉ। सुविधा शर्मा, इंचार्ज साइकोलॉजी डिपार्टमेंट, बीसीबी

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