परमाणु हथियारों को लेकर सऊदी अरब की उत्सुकता ईरान के परमाणु कार्यक्रम के काट के संदर्भ में ही लिया जाता है. अब यह संभव हो गया है कि सऊदी अरब, ईरान की अपेक्षा ज्यादा तेज़ी से परमाणु हथियार तैनात कर सकता है.
इसराइली सैन्य ख़ुफ़िया विभाग के मुखिया आमोस याल्दिन ने स्वीडन में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि यदि ईरान परमाणु बम हासिल कर लेता है तो सऊदी एक महीने का भी इंतज़ार नहीं करेंगे. उन्होंने बम के लिए पहले ही पैसा दे दिए है. वे पाकिस्तान जाएंगे और जो चाहते हैं, ले आएंगे.
'लगा है सऊदी अरब का पैसा'
इस वर्ष की शुरुआत में नेटो के एक वरिष्ठ नीति निर्धारक ने मुझे ऐसी ख़ुफ़िया रिपोर्टों के बारे में बताया था जिसमें कहा गया था कि सऊदी अरब के पैसे से पाकिस्तान में बने परमाणु हथियार सऊदी अरब को दिए जाने के लिए तैयार हैं.
2009 में सऊदी अरब के शासक शाह अब्दुल्लाह ने मध्य पूर्व मामलों के अमरीकी दूत डेनिस रॉस को चेतावनी दी थी कि यदि ईरान ने हदें पार कीं तो वे भी परमाणु हथियार तैनात करेंगे.
तबसे लेकर अबतक सऊदी अरब ने अपनी मंशा के बारे में अमरीकियों को कई बार चेताया है.
2013 तक अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के परमाणु हथियार अप्रसार मामलों के सलाहकार रह चुके गैरी सेमोर ने न्यूज़नाइट को बताया था, ''मुझे नहीं लगता कि सऊदी ये मानते हैं कि पाकिस्तान के साथ उनकी इतनी रब्त-ज़ब्त है कि आपात स्थिति में वे परमाणु हथियार हासिल कर लेंगे.''
पुरानी है योजना
परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलों को हासिल किए जाने की सऊदी अरब के प्रोजेक्ट की ख़बरें काफ़ी पुरानी हैं.
1980 के दशक के अंत में सऊदी ने चीन से दर्जनों सीएसएस-2 मिसाइलें ख़रीदीं थीं. इन्हें 20 वर्ष पहले तैनात किया गया था.
लेकिन इनके बारे में विशेषज्ञों की राय थी कि ये इस लायक़ नहीं थीं कि उनको तैनात किया जा सके.
हाल ही में रक्षा जर्नल 'जेन' में विशेषज्ञों ने इसराइल और ईरान से लगी सीमा में लॉंंचिंग से लैस नए सीएसएस-2 बेस बनाए जाने का दावा किया था.
काफ़ी सालों से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान के रक्षा क्षेत्र को सऊदी अरब सरकार की ओर से खुले दिल से आर्थिक मदद प्राप्त हो रही है.
"परमाणु हथियार और ईरान के मामलों में सउदी दिल से बात करते हैं. मुझे नहीं लगता कि वे इस मामले में यूं ही धमकी दे रहे हैं."
-साइमन हण्डरसन, ग्लोबल गल्फ एंड एनर्जी प्रोग्राम के निदेशक
पश्चिमी विशेषज्ञों का आरोप है कि सऊदी अरब, पाकिस्तानी मिसाइल और परमाणु प्रयोगशालाओं के लिए भी धन मुहैया कराता रहा है.
सऊदी अरब के तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रिंस सुल्तान बिन अब्दुलअज़ीज द्वारा 1999 और 2002 में की गई पाकिस्तान यात्रा इस बात को रेखांकित करती है कि दोनों देशों के बीच गहरे रक्षा सहयोग हैं.
भारत के ख़िलाफ़ रणनीतिक प्रतिरक्षा की तलाश में पाकिस्तान, चीन से क़रीबी रिश्ते बनाए हुए है.
चीन ने पाकिस्तान को काफ़ी मिसाइलों की आपूर्ति की है और परमाणु बम ले जाने में सक्षम हथियार की डिज़ाइन मुहैया कराई है.
चीनी हथियारों के ब्लूप्रिंट
पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियों का आरोप है कि पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़दीर ख़ान, लीबिया और उत्तरी कोरिया को परमाणु बम की जानकारी और संवर्धित यूरेनियम के सेंट्रीफ्यूज बेचने में संलिप्त रहे हैं.
रियाद से 200 किमी दूर सउदी अरब का तीसरा मिसाइल बेस का चित्र. यहां से मध्य दूरी के रॉकेट दागे जा सकते हैं.
ख़ान पर चीनी परमाणु हथियारों के ब्लूप्रिंट को इन देशों तक पहुंचाने के भी आरोप हैं.
यह ब्लूप्रिंट सीएसएस-2 मिसाइल में फ़िट होने वाले बम का डिज़ाइन था. यह ऐसा ही डिज़ाइन सऊदी अरब को भी बेचा गया.
हालांकि इन ख़बरों को सऊदी अधिकारियों ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर दिया है और वे परमाणु हथियार मुक्त मध्य पूर्व का आह्वान करते हैं.
लेकिन वास्तविकता यह है कि विदेशी सरकारों को परमाणु बम मुहैया कराना पाकिस्तान के लिए राजनीतिक रूप से एक बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है. क्योंकि विश्व बैंक और अन्य दाता देशों में इन ख़बरों से संदेह तो पैदा हो ही गया.
तीन संभावनाएं
'ईटींग द ग्रास' में पाकिस्तानी मेजर जनरल फ़िरोज़ हसन ख़ान ने इन ख़बरों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि सऊदी अरब के राजकुमार की पाकिस्तान के परमाणु प्रयोगशालाओं में जाने को इस बात के सबूत के तौर पर नहीं देखा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच इस तरह का कोई समझौता हुआ है.
"मुझे लगता है कि पाकिस्तानी निश्चित रूप से परमाणु हथियारों की ऐसी खेप तैयार रखे हुए हैं जिसे सउदी अरब की ओर से मांग किए जाने के बाद एक निश्चित समय में पहुंचाया जा सकता है."
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक अधिकारी
लेकिन उन्होंने दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को स्वीकार किया है.
सच्चाई जो भी हो, 2003 के आस पास से सऊदी अरब, बदलते रक्षा परिवेश और परमाणु अप्रसार को लेकर इस पर गंभीरता से विचार करने लगा है.
इसी साल एक वरीष्ठ सऊदी अधिकारी द्वारा लीक किए गए दस्तावेज़ में तीन संभावनाओं को रेखांकित किया गया था. पहला, ख़ुद का परमाणु बम हासिल करना, दूसरा, परमाणु शक्ति सम्पन्न किसी देश से रक्षात्मक सहयोग लेना, और तीसरा, मध्यपूर्व क्षेत्र को परमाणु हथियार मुक्त बनाना.
यह वही समय है जब इराक़ में अमरीका ने सैन्य कार्रवाई शुरू की. इसको लेकर सऊदी अरब और अमरीका के बीच तनाव रहा क्योंकि सद्दाम हुसैन को हटाए जाने से वह नाख़ुश था. इसके अलावा इसराइल के प्रति अमरीकी नीति और ईरानी परमाणु कार्यक्रम को लेकर भी वह पहले से तनावग्रस्त चल रहा था.
विकिलीक्स के ख़ुलासे से भी पता चलता है कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच परमाणु कार्यक्रम पर कुछ चल रहा था.
खुली चेतावनी
लेकिन सालों तक निजी तौर पर अमरीका को चेताने के बाद अब सऊदी अरब ने स्पष्ट सार्वजनिक चेतावनी देनी शुरू कर दी है कि अगर ईरान बम रख सकता है तो सऊदी क्यों नहीं?
हालांकि सऊदी की इस चेतावनी को ईरान पर अमरीकी नीति के समर्थन में ही देखा जा रहा है. लेकिन क्या यह सऊदी अरब की परमाणु बम हासिल करने की लंबी परियोजना का हिस्सा है?
एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी ने दोनों देशों के बीच एक अलिखित लेकिन विस्तृत समझौते की पुष्टि की है.
International News inextlive from World News Desk