पाकिस्तान की जनता जहां लंबे अर्से से चरमपंथ की शिकार है वहीं देश में अपहरण जैसे अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं.

पाकिस्तान में हाल के वर्षों में  अपहरण की घटनाओं ने एक उद्योग का रूप ले लिया है और ये एक ऐसा 'कारोबार' बन गया है जो किसी के लिए रातों रात अमीर बनने का, तो किसी के लिए दूसरे गैर कानूनी धंधों के लिए निवेश पाने का अहम ज़रिया है.

पाकिस्तान में सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल पहले छह महीनों में देश भर में नौ हज़ार से ज़्यादा लोगों का अपहरण किया गया है और जानकारों के अनुसार अगवा होने वाले लोगों की असल संख्या इन आंकड़ों से कहीं ज़्यादा हो सकती है, क्योंकि कई लोग ऐसे मामलों को पुलिस तक ले जाने के बजाय फिरौती देकर मामले को हल करने को प्राथमिकता देते हैं.

पाकिस्तान के चारों प्रांतों की पुलिस भी इस समस्या की गंभीरता को कम करके पेश करती हैं और सरकारी वेबसाइटों पर अपहरण से जुड़े आंकड़े को अलग अलग श्रेणियों में बांट कर कम दिखाने की कोशिश होती है.

पंजाब

पाकिस्तान में जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़े प्रांत पंजाब में अपहरण की घटनाएं भी सबसे ज़्यादा होती हैं.

पंजाब पुलिस के आंकडों के अनुसार मौजूदा साल में जनवरी से जून तक अलग अलग तरह के अपहरणों के कुल 7139 मामले सामने आए हैं.

पाकिस्तान में फल फूल रहा है अपहरण उद्योग

कई बार अपहरणों के पीछे चरमपंथियों का हाथ होता है

पंजाब में पिछले कुछ समय के दौरान कई अहम शख्सियतों को भी अगवा किया गया है, जिनमें अधिकारियों के अनुसार अपहरणकर्ताओं के बड़े गिरोह शामिल हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी के बेटे अली हैदर गिलानी को इस साल मई में मुल्तान से चुनावी मुहिम के दौरान अगवा किया गया था और घटना के तीन बाद अब भी उन्हें रिहा नहीं किया गया है.

मुल्तान के सिटी पुलिस अफसर गुलाम महमूद डोगर ने बीबीसी को बताया कि अपहरण की इस घटना की जांच में प्रगति हुई है लेकिन इस तरह के दावे पुलिस अधिकारियों की ओर से पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर के बेटे शहबाज़ तासीर के लाहौर से अपहरण के बाद भी सामने आए थे, जिनके अपहरण का मामला दस साल गुज़र जाने के बाद अब तक हल नहीं हो सका है.

ऐसी ही स्थिति अमरीकी सहायताकर्मी डॉक्टर वॉरेन वाइंस्टाइन के मामले में की है जिन्हें लाहौर से ही अगवा किया गया था. अपहरणकर्ता उनके वीडियो भी जारी कर चुके हैं, लेकिन डॉ.वॉरेन को अब तक रिहा नहीं करवाया जा सका है.

इन बड़ी घटनाओं के अलावा प्रांत में आम लोगों से जुड़ी अपहरण की वारदातें भी हैं जहां फिरौती के लिए किए जाने वाले अपहरण में पैसा हासिल करना एक बुनियादी मकसद होता है.

"कभी कभी अपहरणकर्ता अगवा हुए लोगों को ऐसे इलाकों में ले जाते हैं जो पुलिस और प्रशासन की पहुंच से बाहर हैं जैसे कबायली इलाके. कुछ मामलों में अपहरण करने वाले दूसरे प्रांतों में चले जाते हैं. ऐसे मामलों में अपहृत लोगों को रिहा कराना कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाता है और ऐसे मामलों के हल करने में समय भी ज्यादा लगता है."

-जुल्फिकार हमीद, डीआईजी लाहौर

लाहौर में पुलिस की ओर से अभियान के बाद गिरफ्तार किए जाने वाले एक कथित अपहरणकर्ता का कहना है, “हमने ये सब कुछ पैसे के लालच में किया. मुझे अंदाज़ा नहीं था कि ये इतना गंभीर अपराध है. हमारी अक्ल पर पर्दा पड़ गया था. ये पहला और आखिरी जुर्म है जो मुझसे हुआ है. मेरे पांच बच्चे हैं जो दस साल से भी कम उम्र के हैं. बस एक गलती से सब कुछ बर्बाद हो गया.”

अपहरणकर्ताओं के बहुत से गिरोह ऐसे हैं जो पुलिस और प्रशासन की पहुंच से बहुत दूर हैं. इन गिरोहों के खिलाफ कार्रवाइयां और इनके कब्जे से अगवा हुए लोगों को छुड़ाना बड़ी चुनौती है.

लाहौर के डीआईजी (इन्वेस्टिगेशन) जुल्फिकार हमीद कहते हैं, “कभी कभी अपहरणकर्ता अगवा हुए लोगों को ऐसे इलाकों में ले जाते हैं जो पुलिस और प्रशासन की पहुंच से बाहर हैं जैसे कबायली इलाके. कुछ मामलों में अपहरण करने वाले दूसरे प्रांतों में चले जाते हैं. ऐसे मामलों में अपहृत लोगों को रिहा कराना कहीं ज़्यादा मुश्किल हो जाता है और ऐसे मामलों के हल करने में समय भी ज्यादा लगता है.”

सिंध

अपहरण की वारदातों के मामले में सिंध प्रांत दूसरे नंबर पर है जहां इस साल अब तक ऐसे 1711 मामले सामने आए हैं.

पिछले साल इस प्रांत में 1661 लोग अगवा हुए हैं. लेकिन इस साल छह महीने के भीतर ही ये आंकड़ा पार कर दिया गया है.

कराची में सक्रिय गुट तो अब अपहरण की वारदातों के लिए पारंपरिक तरीकों के साथ साथ टेक्नोलजी का इस्तेमाल भी करते दिख रहे हैं.

सिटीजन पुलिस लाइंस कमेटी के प्रमुख अहमद चिनाय कहते हैं, "सोशल मीडिया का एक सैलाब उमड़ आया है और सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्रियों की भरमार है जो कई लोगों के लिए अपहरण की वारदातों की ट्रेनिंग का ज़रिया है. इससे मानसिक तौर पर हमारे लोगों में हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है.”

"सोशल मीडिया का एक सैलाब उमड़ आया है और सोशल मीडिया पर ऐसे सामग्रियों की भरमार है जो कई लोगों के लिए अपहरण की वारदातों की ट्रेनिंग का जरिया है. इससे मानसिक तौर पर हमारे लोगों में हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है."

-अहमद चिनॉय, सिटीजन पुलिस लाइंस

खैबर पख्तूनख्वाह

चरमपंथी हिंसा से प्रभावित खैबर पख्तून ख्वाह में इस साल 15 जुलाई तक के उपलब्ध आंकडों के मुताबिक अब तक 524 लोगों का अपहरण हुआ है.

पाकिस्तान में होने वाली अपहरण की बहुत सी वारदातों के ताने बाने खैबर पख्तून ख्वाह और खास तौर पर कबायली इलाकों के हथियारबंद गिरोहों से जुड़े हैं.

चरमपंथी संगठन कुछ लोगों का अपहरण सैद्धांतिक मतभेदों के कारण उचित समझते हैं लेकिन अपहरण की इन वारदातों के पीछे और भी कई कारण हैं.

पेशावर से इस्लामिया यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. अजमल खान भी दो साल से भी ज्यादा समय से तालिबान की कब्जे में हैं.

बलोचिस्तान

इसी तरह बलोचिस्तान में इस साल के पहले दो महीने के दौरान कुल 57 लोगों का अपहरण किया गया है.

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बलोचिस्तान में राजनीतिक कारणों से भी अपहरण होते हैं

इसके अलावा प्रांतीय पुलिस के अनुसार लापता लोगों की संख्या 75 है. पिछले साल इस प्रांत में कुल चार सौ लोगों का अपहरण किया गया. आशंका है कि इस अशांत प्रांत में अकसर लापता लोग भी ऐसे अपराधों के दायरे में आते हैं, लेकिन इनके अपहरण की वारदातें पुलिस के रिकॉर्ड में शामिल नहीं की जाती हैं.

यहां अपहरण की वारदातों का संबंध कानून व्यवस्था से ज्यादा राजनीतिक कारणों से ज्यादा है.

बलोचिस्तान में लापता लोगों के संगठन 'वॉइस फॉर मिसिंग बलोच पर्संस' के प्रमुख अब्दुल कदीर बलोच यहां लोगों को जबरन गुमशुदा किए जाने के लिए सरकारी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हैं.

वो कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट में जब हमारे मुकदमे की सुनवाई हो रही थी तो चीफ जस्टिस ने कहा था कि इन (बलोचों) को उठाने वाले, इनको गायब करने वाले, इनका अपहरण करने वाले खुफिया संगठन हैं.”

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