इस टीम के दूसरे सदस्य है: इस्लामाबाद लाल मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल अज़ीज़ और तीन अन्य धार्मिक नेता – मौलाना समीयुल हक़, मुफ़्ती किफायतुल्लाह और प्रोफ़ेसर इब्राहीम ख़ान.
सात महीने पहले पाकिस्तान में सत्ता में आई नवाज़ शरीफ़ सरकार चंद दिनों पहले तालिबान से शांतिवार्ता के लिए चार लोगों के नामों की घोषणा की थी.
अपने चुनावी वादे के मुताबिक़ नवाज़ शरीफ़ ने सरकार बनाने के बाद से ही तालिबान के साथ बातचीत कर शांति की बहाली की कोशिश शुरू कर दी थी लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ पाया है.
सरकार के रवैये पर सवाल
इस बीच हाल में तालिबान के हमलों में तेज़ी आ गई है. पिछले माह भर के दौरान ही हुए हमलों में कम से कम सौ लोगों की मौत हो गई है जिसकी वजह से मुल्क में सरकार के तालिबान के प्रति रवैये को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ने हाल में बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि तालिबान को पहले हराना होगा तभी उनके साथ बातचीत सफ़ल हो सकती है.
बावजूद इसके प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा है कि वो एक बार फिर से शांति का प्रयास करेंगे.
बीबीसी से बात करते हुए सरकार की तरफ़ से तैयार शांतिवार्ता समीति के सदस्य हकीमुल्लाह युसुफ़ज़ई ने कहा कि ये शायद शांति बहाली की आख़िरी कोशिश है अगर ये सफ़ल नहीं हुआ तो हालात और बिगड़ सकते हैं.
तालिबान के प्रवक्ता शहीदुल्लाह शाहिद ने समाचार एजेंसी एएफॉपी से कहा है कि उसकी ओर से जिन सदस्यों के नामों का ऐलान किया गया है कि वो तालिबान का पक्ष सरकार के वार्ताकारों के सामने रखेंगे.
शहीदुल्लाह शाहिद ने कहा है कि पाकिस्तान तालिबान बातचीत के लिए पूरी तौर पर गंभीर है लेकिन ये भी कहा है कि उसे उम्मीद है कि मौजूदा हुकूमत वहीं ग़लतियां नहीं दुहराएंगी जो पिछली सरकारें करती रही थीं.
हालांकि तहरीके इंसाफ़ की तरफ़ से एक बयान में कहा गया है कि इमरान ख़ान बातचीत में अन्य तरह से मदद करना चाहेंगे.
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