इनके ख़िलाफ़ फ़ौजी कार्रवाई शुरू होने से पहले पूरा स्वात मलाकान डिवीज़न इनके क़ब्ज़े में था. अब यहां पर कोई भी गांव इनके क़ब्ज़े में नहीं है. ये अफ़ग़ानिस्तान फ़रार हो गए हैं.
इनके कितने ही कामंडर मारे गए. 2009 में जब इनके ख़िलाफ़ बड़ी फ़ौजी कार्रवाई हुई तो ये मजबूरी में अफ़ग़ानिस्तान चले गए.
अब तो इनमें फूट भी पड़ गई है और मेरे ख्याल में सैयद ख़ान सजना नाम का एक ग्रुप इन हमलों में शामिल नहीं है, लेकिन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का बड़ा ग्रुप मज़बूत है और वो अपनी ताक़त दिखाने के लिए ये हमले कर रहा है.
वो दिखाना चाह रहे हैं कि एक ग्रुप के अलग होने से वो कमज़ोर नहीं हुए हैं. अगर उनके ख़िलाफ़ फ़ौजी कार्रवाई हुई तो वो इस तरह के और हमले कर सकते हैं. इस तरह फ़िलहाल उनके हमलों में काफ़ी इज़ाफ़ा हो गया है.
बदले की कार्रवाई
उनका कहना है कि चूंकि पाकिस्तानी सरकार और सेना उनके ख़िलाफ़ हमले कर रही है, उनके साथियों को मारा जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है, तो वो अपना बदला ले रहे हैं.
कोई भी बदला लेते वक्त काफ़ी ग़ुस्से में होता है और फिर बड़े-बड़े हमले किए जाते हैं.
पहले टीटीपी ने हमले किए, फिर फ़ौज ने जवाबी कार्रवाई की और अब तालिबान जवाबी कार्रवाई कर रहा है.
तालिबान दरअसल पाकिस्तान की सरकार को ये पैग़ाम दे रहे हैं कि अगर बातचीत करनी है तो बातचीत करो और अगर जंग करनी है तो जंग के लिए तैयार हो जाओ.
ऐसे में तालिबान से पाकिस्तान में ख़तरा तो वाक़ई बड़ा है. उनके ख़िलाफ़ पिछले दस-बारह सालों से फ़ौजी कार्रवाई हो रही है. अमरीका भी ड्रोन हमले करता है. कितने लोग इनके मारे गए, कितने पकड़े गए?
ऐसे में नुक़सान तो उन्हें काफ़ी हुआ है, लेकिन लगता है कि उनके पास लड़ने वालों की कमी भी नहीं है.
इनके पास आत्मघाती हमला करने वालों की भी कमी नहीं है. कराची हवाई अड्डे पर ये जो हमला हुआ, ये आत्मघाती मिशन था. हमलावरों ने ये फ़ैसला कर लिया था कि हमें मरना है और मारना है.
इनके ख़तरे को देखते हुए ही सरकार ने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं.
तालिबान की ताक़त
जब तक इनके पास कुछ इलाक़े क़ब्ज़े में हैं, हथियार हैं, पैसा है और ख़ासतौर से उनके पास बारूदी सुरंगे और आत्मघाती हमलावर हैं, तब तक ये पाकिस्तान की सरकार और सेना के लिए ख़तरा रहेंगे.
इनको पूरी तरह से हराया नहीं जा सकता है, मगर इनकी ताक़त कम हो जाएगी.
तालिबान सामने नज़र नहीं आते हैं और छिपकर हमला करते हैं, और फिर आम लोगों में मिल जाते हैं.
ऐसे में इनके ख़िलाफ़ कोई बड़ी कार्रवाई करना बड़ा ख़तरनाक इसलिए है क्योंकि अगर आप बमबारी करेंगे तो उसमें आम नागरिक मारे जाएंगे.
ऐसे में सटीक ख़ूफ़िया जानकारी के आधार पर ही उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है.
तालिबान लंबे अर्से से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में लड़ रहे हैं. ये अच्छी तरह प्रशिक्षित लड़ाके हैं. इनसे निपटना आसान काम नहीं है.
इनके ख़िलाफ़ अभियान में अब तक क़रीब छह-सात हज़ार पाकिस्तानी सेना और पुलिस के जवान मारे गए हैं.
समर्थन का अभाव
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इस दौरान क़रीब 50,000 आम नागरिक मारे गए हैं. इससे पता चलता है कि तालिबान और दूसरे चरमपंथी काफ़ी मज़बूत हैं.
हालांकि उन्हें स्थानीय लोगों का समर्थन नहीं हासिल है.
तालिबान ने शुरुआत में लोगों से वादा किया था कि वो उन्हें इंसाफ़ दिलाएंगे और ड्रग्स जैसी बुराइयों को ख़त्म करेंगे. इसलिए शुरुआत में उन्हें लोगों का समर्थन मिला.
लेकिन अब लोग इनसे तंग आ चुके हैं और मेरे ख़्याल से अभी जनता में इनका समर्थन न के बराबर है.
International News inextlive from World News Desk