इस्लामाबाद (पीटीआई)। नकदी संकट से जूझ रहे कंगाल पाकिस्तान मनी लांड्रिंग रोधी निगरानी संस्था एफएटीएफ और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) की सख्ती से बचने के लिए अब अमेरिका से मदद देने की गुहार लगाएगा। न्यूयार्क में इस महीने होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान इस सिलसिले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मनाने की कोशिश करेंगे। एक मीडिया रिपोर्ट में पाकिस्तान सरकार के एक मंत्री ने सोमवार को बताया कि उनका देश अब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के शांतिपूर्वक बाहर आने में मदद करने के बदले वह फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) और आइएमएफ से राहत चाहता है।
खान सरकार को हुआ भारी नुकसान
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने काबुल में हुए कार बम धमाके के बाद तालिबान से बातचीत रद कर दी है। इस बम धमाके में एक अमेरिकी सैनिक और अन्य 11 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि अमेरिकी प्रशासन अब भी उम्मीद करता है कि तालिबान को अमेरिकी सेनाओं के अफगानिस्तान से शांतिपूर्वक जाने देने के लिए मनाने में सक्षम है। पाक मंत्री ने बताया कि पाकिस्तान ने आइएमएफ से बड़ी ही कड़ी शर्तो पर कर्ज लिया था और अब वह इन्हें पूरा नहीं कर पा रहा है। इमरान खान सरकार को राजस्व में भारी गिरावट का भी सामना करना पड़ रहा है। इसलिए अब पाकिस्तान सरकार अमेरिका के दखल से आइएमएफ से कुछ राहत चाहती है। अक्टूबर से पहले बैंकाक में हुई एफएटीएफ की प्रारंभिक बैठक में अंतिम समीक्षा के दौरान पाकिस्तान किसी भी मानक पर खरा नहीं उतरा है।
अक्टूबर में होगा पाकिस्तान के भाग्य का फैसला
एफएटीएफ की अगली बैठक अक्टूबर में पेरिस में होनी है, जहां पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होगा। अक्टूबर में ही पाकिस्तान की पहली तिमाही में आइएमएफ के छह अरब डॉलर के कर्ज की समीक्षा भी होगी। ध्यान रहे कि एफएटीएफ ने पिछले साल पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाला था। चूंकि इस देश के घरेलू कानून मनी लांड्रिंग और आतंकवादियों को फंडिंग रोकने में नाकाम रहे थे। पेरिस में स्थित इस निगरानी संस्था ने पाकिस्तान को इस साल अक्टूबर तक अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करने पर कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। लिहाजा अब पाकिस्तान पर काली सूची में डाले जाने का खतरा मंडरा रहा है।
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