हाल ही में, यानी 18 जून को भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का एक बड़ा मुक़ाबला हुआ था। ये आईसीसी की चैंपियंस ट्रॉफ़ी का फ़ाइनल मैच था। दोनों ही देशों में क्रिकेट के प्रति ज़बरदस्त दीवानगी है। इस मैच को लेकर भी दोनों देशों में ज़बरदस्त उत्साह था। सिर्फ़ क्रिकेट के प्रति लगाव ही नहीं, भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत सी बातें साझा हैं। ये मैच, दक्षिण एशिया में नहीं, बल्कि लंदन में खेला गया। क्योंकि, भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के यहां नहीं खेलते। क़रीब दस साल हो चुके हैं, जब दोनों देशों ने अपने घरेलू मैदान पर आपस में आख़िरी बार टेस्ट मैच खेला था। ये फ़ासला दिखाता है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कितनी कड़वाहट है, कितना अविश्वास है।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है

 

साझी विरासत
भारत और पाकिस्तान का इतिहास एक है। सांस्कृतिक विरासत साझी है। मगर दोनों के बीच इतना अविश्वास है, इतनी कड़वाहट है, कि, वो एक-दूसरे को अपना प्रतिद्वंदी नहीं, दुश्मन मानते हैं।

आज़ादी के बाद पिछले सत्तर सालों में भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बार जंग हो चुकी है। वैसे कुछ लोग कहते हैं कि चार युद्ध हुए हैं। मगर आख़िरी बार 1999 में जब दोनों देशों की फौजें लड़ी थीं, तो जंग का औपचारिक एलान नहीं हुआ था।

हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी तनातनी, दुनिया की सबसे लंबे वक़्त तक चलने वाली सामरिक समस्या कही जा सकती है। इसी तनातनी का नतीजा है कि दोनों देशो ने एटमी हथियार विकसित किए। यानी आज की तारीख़ में भारत और पाकिस्तान के बीच जो विवाद है, उसे इलाक़ाई तनातनी कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस तनातनी से बाक़ी दुनिया के लिए भी बड़ा ख़तरा पैदा होने का डर है।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है

 

बेगाने हुए लोग
भारत और पाकिस्तान को आज़ादी एक साथ ही मिली थी। भारत, ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे बड़ा उपनिवेश था। 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान पर हुकूमते ब्रतानिया ख़त्म हो गई।

आज़ादी से पहले कई महीनों तक मुल्क के बंटवारे को लेकर खींचतान चलती रही थी। आख़िर में विवाद को हिंसक होता देख, ब्रिटेन, भारत को दो हिस्सों में बांटकर आज़ादी देने को राज़ी हो गया। पाकिस्तान के तौर पर एक अलग मुस्लिम देश बना। पाकिस्तान बनाने का मक़सद मुसलमानों की उन चिंताओं को दूर करना था, कि वो आज़ाद भारत में हिंदुओं के बहुमत की वजह से नुक़सान में रहेंगे।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है

 

जब देश का बंटवारा हुआ तो देश के दो बड़े सूबों पंजाब और बंगाल को भी मज़हबी आबादी की बुनियाद पर बांटा गया। इस बंटवारे की जानकारी, आज़ादी के दो दिन बाद उजागर की गई।

बंटवारे ने लाखों लोगों को अपने ही देश में बेगाना बना दिया। उन्हें अपना घर-बार छोड़कर नए मुल्क जाना पड़ा। हालिया तारीख़ में इंसानों की ये सबसे बड़ी अदला-बदली थी। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की वजह से जितने लोग शरणार्थी बने, वो युद्ध और अकाल के अलावा किसी और वजह से शरणार्थी बनने वालों की सबसे बड़ी तादाद थी।

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सांप्रदायिक हिंसा
किसी को पक्के तौर पर तो नहीं पता, मगर क़रीब सवा करोड़ लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए-गए। इस दौरान भयंकर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। हर समुदाय के लोग पीड़ित भी थे और हमलावर भी।

देश के बंटवारे के दौरान मज़हबी फ़साद की वजह से पांच से दस लाख के बीच लोग मारे गए। हज़ारों महिलाओं को दूसरे समुदाय के मर्दों ने अगवा करके उनके साथ बलात्कार और दूसरे ज़ुल्म किए।

हिंसा का सबसे ज़्यादा असर पंजाब सूबे पर पड़ा। यहां बरसों से सिख, मुसलमान और हिंदू आपस में मिल-जुलकर रहते आए थे। वो एक ज़बान बोलते थे। उनकी विरासत साझी थी। लेकिन, देश के बंटवारे के बाद ये लोग एक दूसरे के दुश्मन और ख़ून के प्यासे हो गए। पूर्वी पंजाब में रहने वाले मुसलमान, पश्चिमी पंजाब यानी पाकिस्तान भाग रहे थे। वहीं पश्चिमी पंजाब में रहने वाले हिंदू और सिख, पूर्वी पंजाब यानी भारत आने को मजबूर हुए।

बंटवारे के वक़्त जो हिंसा हुई, उसे गृह युद्ध भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि दोनों ही तरफ़ सेनाओं ने मोर्चा नहीं संभाला था। लेकिन ये अपने-आप भड़क उठने वाला फ़साद भी नहीं था। हर समुदाय ने अपने-अपने हथियारबंद गिरोह और सेनाएं बना ली थीं। इनका मक़सद सिर्फ़ एक था, दूसरे मज़हब के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मारना, उन्हें नुक़सान पहुंचाना।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है

 

बंटवारे का ज़ख़्म
बंटवारे का वो ज़ख़्म आज तक नहीं भरा है। उस दौरान भड़की हिंसा के लिए किसी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया। तीनों संप्रदायों के बीच मेल-मिलाप की कोई कोशिश नहीं की गई।

ये इंसानियत की तारीख़ की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी। लेकिन बंटवारे के वक़्त जो भी हुआ, उस पर दोनों ही देशों ने ख़ामोशी अख़्तियार कर ली। किसी ने भी पूरा सच न जानने की कोशिश की, न किसी को बताने की।

बाद के दिनों में सिनेमा, थिएटर और साहित्य के ज़रिए बंटवारे की भयंकर हिंसा के दर्द भरे क़िस्से बताए और सुनाए गए। इतिहासकारों ने भी बंटवारे के बाद, इस मसले के राजनीतिक पहलू पर ही ज़्यादा ज़ोर दिया। उन्हें भी उपमहाद्वीप की तारीख़ के इस काले और ख़ूनी पन्ने के इंसानी पहलू पर ग़ौर करने में बहुत वक़्त लग गया।

पिछले कुछ सालों में इतिहासकारों ने बंटवारे की त्रासदी को लेकर कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। मगर शायद इसमें उन्होंने बहुत देर कर दी। बंटवारे का दर्द झेलने वाले अब बहुत कम लोग बचे हैं। वो भी अपनी ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर हैं।

बंटवारे की हिंसा के शिकार लोगों की याद में कोई विशाल स्मारक नहीं बना। कोई इमारत नहीं तामीर की गई। बंटवारे की कहानी बताने वाला पहला संग्रहालय हाल ही में भारतीय पंजाब के अमृतसर में खुला है।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है


#70yearsofpartition: घर इस पार, ज़मीन उस पार

 

बंटवारे का ज़हर
बंटवारे ने ऐसा ज़हर घोला है कि सत्तर साल बाद भी आज भारत-पाकिस्तान के रिश्ते उसी की बुनियाद पर तय होते हैं। और भारत-पाकिस्तान के ताल्लुक़ की तासीर ही दक्षिण एशिया का सामरिक माहौल तय करती हैं।

महीनों की क़वायद और तनातनी के बाद 1947 में भारत-पाकिस्तान के बीच जो सरहदें तय हुईं, वो एक पीढ़ी भी नहीं चल सकीं। आज़ादी के 25 सालों के भीतर ही पाकिस्तान को एक और बंटवारे के दर्द से गुज़रना पड़ा। जब अंग्रेज़ों ने देश का बंटवारा किया था, तो पाकिस्तान के दो टुकड़े थे। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच दो हज़ार किलोमीटर का फ़ासला था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के रूप में नया देश बन गया। बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में भारत ने भी अपनी फौज की मदद दी थी।

बंटवारे के बाद जो मुद्दे अनसुलझे रह गए थे उनमें कश्मीर का मसला भी था। हिमालय की वादियों में स्थित रियासत-ए-कश्मीर की ज़्यादातर आबादी मुस्लिम थी। लेकिन कश्मीर के राजा हिंदू थे। कश्मीर के राजा ने अपनी रियासत को भारत में विलय करने का फ़ैसला किया। नतीजा ये हुआ कि बंटवारे के कुछ महीनों के भीतर ही, भारत और पाकिस्तान की सेनाएं, कश्मीर के मोर्चे पर आमने-सामने थीं। आज भी कश्मीर का मसला अनसुलझा है।

कश्मीर का विवाद बहुत पेचीदा है। बहुत से कश्मीरी आज़ादी चाहते हैं। वहीं कुछ पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं, तो, कुछ भारत को ही अपना देश मानते हैं। हिंद- पाक के दरमियान तल्ख़ी की सबसे बड़ी वजह कश्मीर ही है।

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चरमपंथ को बढावा देने का आरोप
भारत, पाकिस्तान पर आरोप लगाता है कि वो चरमपंथी संगठनों को मदद देता है। इन चरमपंथियों ने भारत में कई चरमपंथी हमले किए हैं। वहीं पाकिस्तान आरोप लगाता है कि भारत, उसके बलोचिस्तान सूबे में बग़ावत को बढ़ावा देता है।

दोनों ही देशों के नेता एक दूसरे से मिलते हैं, बात करते रहे हैं। कई बार रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघली भी, और लगा कि दोनों अब दोनों देश मिलकर रिश्तों की नई इबारत लिखेंगे। लेकिन कोई न कोई ऐसा मसला खड़ा हो जाता है कि ताल्लुक़ फिर बिगड़ गए।

भारत-पाकिस्तान के ख़राब रिश्तों के दूरगामी नतीजे देखने को मिलते हैं। आज भारत, पड़ोस में स्थित पाकिस्तान के मुक़ाबले नाइजीरिया, बेल्जियम या दक्षिण अफ्रीका से ज़्यादा कारोबार करता है। दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क पर भी भारत-पाकिस्तान की तनातनी भारी पड़ती रही है। यूरोपीय यूनियन या दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन के मुक़ाबले सार्क एक क्षेत्रीय सहयोग संगठन के तौर पर पूरी तरह बेअसर है। यहां तक कि अफ्रीकी यूनियन की हालत भी इससे बेहतर है।

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सांस्कृतिक संबंध
बॉलीवुड की फिल्मों और कलाकारों के प्रति पाकिस्तान में भी दीवानगी देखने को मिलती है। इसी तरह पाकिस्तान के टीवी सीरियल भारत में बहुत पसंद किए जाते हैं। फिर भी दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध बेहद कमज़ोर हैं।

जब भी दोनों देशों में तनातनी बढ़ती है, तो इसका असर रिश्तों के हर पहलू पर पड़ता है। कला का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहता।

दोनों देशों के लोगों को अक्सर ये पता नहीं होता कि सरहद के उस पार क्या हो रहा है। हाल ये है कि भारत और पाकिस्तान के बड़े अख़बारों के संवाददाता दूसरे देश की राजधानी तक में नहीं हैं।

भारत और पाकिस्तान के आम लोगों के लिए एक-दूसरे के देश जाना भी आसान नहीं है। दोनों देशों में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके परिजन सरहद के उस पार रहते हैं। इनसे मिलने जाने के लिए भी तमाम औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। दोनों देशों के बीच गिनी-चुनी उड़ानें हैं। दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच तो सीधी फ्लाइट भी नहीं है। इतनी कम उड़ानें होने के बावजूद, सड़क के रास्ते हवाई रास्ते से भारत या पाकिस्तान जाना ज़्यादा आसान है। भारत और पाकिस्तान के बीच लंबी साझा सरहद है। इसके बावजूद सड़क के ज़रिए आना-जाना बड़ी चुनौती है।

पाकिस्तान में सेना और इसकी ख़ुफिया एजेंसी बहुत ताक़तवर हैं। पाकिस्तान में लंबे वक़्त तक फौजी हुकूमत रही है। पड़ोस में दुश्मन देश होने के ख़याल की वजह से पाकिस्तान में फौज को बहुत अहमियत दी जाती रही है। इसी वजह से पाकिस्तान में जम्हूरियत कमज़ोर हैं।

#70yearsofpartition: भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द जिंदा है

 

पाकिस्तान की आबादी क़रीब बीस करोड़ है। इसमें ज़्यादातर मुसलमान हैं। वहीं भारत की क़रीब 130 करोड़ की आबादी का सातवां हिस्सा मुसलमान हैं। भारत में भी कमोबेश उतने ही मुसलमान रहते हैं जितने पाकिस्तान में हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर के एक अनुमान के मुताबिक़, 2050 तक दुनिया में सबसे ज़्यादा मुसलमान भारत में रह रहे होंगे। इस वक़्त सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है। लेकिन 2050 तक मुस्लिम आबादी के मामले में भारत, इंडोनेशिया से आगे निकल जाएगा।

इतनी आबादी होने के बावजूद, भारत की संसद में मुसलमानों की नुमाइंदगी बेहद कम है। समाज के दूसरे मोर्चों पर भी वो पिछड़े हुए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भारत में आम सोच ये है कि यहां का मुसलमान, पाकिस्तान से हमदर्दी रखता है। इसी वजह से उन्हें भेदभाव और पक्षपात झेलना पड़ता है।

भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों के अवाम की सोच बहुत राष्ट्रवादी है। देशभक्ति की भावना दोनों देशों में बहुत ताक़तवर है। जब भी दोनों देशों में क्रिकेट का मुक़ाबला होता है, तो हम इसकी मिसाल देखते हैं। लेकिन दोनों ही देश सत्तर साल पहले हुए बंटवारे की त्रासदी और कड़वाहट भुलाकर आगे बढ़ने में नाकाम रहे हैं

और दोनों देशो के बीच हालिया क्रिकेट मुक़ाबले में क्या हुआ था? पाकिस्तान ने भारत पर चौंकाने वाली भारी जीत दर्ज की थी। भारत में कई लोगों ने इस हार को बहुत सभ्य तरीक़े से माना। लेकिन सोशल मीडिया और भारत में मुख्यधारा के मीडिया ने पाकिस्तान से हारने पर ग़ुस्से और अफ़सोस का इज़हार किया। अपने पुराने दुश्मन से हारना ऐसी तकलीफ़ है जिसे बर्दाश्त कर पाना आसान नहीं होता।

(एंड्र्यू व्हाइटहेड ने 'अ मिशन इन कश्मीर' नाम की किताब लिखी है।)

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