कर्म चेतना के द्वारा होते हैं। चेतना के माध्यम से ही हमारा बोलना, चलना, बैठना, हंसना, रोना होता है। यह चेतना तीन शक्तियों को अभिव्यक्त करती है- ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति। ज्ञान शक्ति से विवेक व प्रज्ञा, इच्छा शक्ति से कामना तथा क्रिया शक्ति से कार्य करने की क्षमता मिलती है। इन तीनों शक्ति में समन्वय होते ही जीवन बहुत आसान हो जाता है अन्यथा आपको दु:ख महसूस होता है। यदि आपकी इच्छा शक्ति प्रबल है, परंतु यदि ज्ञान की कमी है तो बहुत मूर्खता हो जाती है। उदाहरण के लिए आपको चांद पर घर बनाने की इच्छा हुई परंतु इसके प्रति आपको समझ नहीं है तो आप अपनी इच्छा में ही फंसे रहेंगे। कभी-कभी आपको ज्ञान तो होता है लेकिन आप उसके लिए कोई कर्म नहीं करते। यह भी आपको दु:ख की ओर ले जाएगा। सुबह कसरत या योगाभ्यास करना इसका बहुत अच्छा उदाहरण है। आपको यह समझ है कि योग आपके लिए लाभदायक है फिर भी आप नहीं करते हैं। ऐसा क्रिया शक्ति के अभाव से होता है।
कुछ लोगों में क्रिया शक्ति बहुत प्रबल होती है, जिसके कारण वह बेचैन रहते हैं। बेमतलब में वह इधर—उधर मेज कुर्सी को खिसकाते रहते हैं, एक ही खिड़की को बार-बार साफ करेंगे। बिना समझ के किया गया कर्म ज्ञान-शक्ति के अभाव में होते हैं। जब प्रबल इच्छा नहीं होती, तब कोई कार्य थोड़े समय के लिए करते हैं, फिर उसे छोड़ देते हैं और कोई दूसरा काम पकड़ लेते हैं, मन किसी एक काम में ज्यादा समय के लिए नहीं टिकता। आलस्य भी इच्छा शक्ति के अभाव का परिणाम है। तीनों शक्तियों का पूर्ण संतुलन होना बहुत दुर्लभ है, परंतु फिर भी हमें एक अच्छे संतुलन लाने की यथासंभव चेष्टा करनी चाहिए। हमारे पास इन तीनों के होने की आवश्यकता है क्योंकि बिना एक-दूसरे की उपस्थिति के वे बेकार हैं।
लोग अवसाद में इसीलिए आ जाते हैं क्योंकि वे अपने बारे में ही सोचते रहते हैं। जब तुम यह सोचते हो कि अपने आस-पास के लोगों की कैसे सहायता करें तो निराशा के लिए समय ही नहीं रहता। अपना योगदान देने के लिए जो भी मौका मिले उसे गंवाए नहीं। गपशप करके समय गंवाने के बजाय ज्ञान चर्चा करें। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि आप हमेशा दार्शनिकों के जैसे बात करें परंतु, यदि आप बेकार की बात भी करें, तो आप पूर्णत: सजग रहें कि आप बेकार की बात कर रहे हैं। कभी-कभी आपको लगता है कि आप दूसरों से बिल्कुल कट गए हैं, अकेले हो गए हैं। उस समय अपने को जोड़ने के लिए संघर्ष नहीं करें। सोते समय तो ऐसे भी हम अपने निकट से निकट व्यक्ति से भी अलग रहते हैं। जब हम सोते हैं तो उस चेतना की सुषुप्त अवस्था में हम किसी को भी अपने साथ नहीं ले जाते हैं। मुस्कुराकर यह महसूस करो कि सारी सृष्टि एक स्वप्न के जैसी है और आप उस स्वप्न में विचरण कर रहे हो। इस स्वप्न को एक दिन खत्म हो जाना है और उस दिन आप जागृत अवस्था में आ जाएंगे। जिस दिन आप इस सच को अपनाएंगे, आपकी चिंताएं दूर हो जाएंगी।
सब कुछ अस्थायी है
जो घटना, व्यक्ति या वस्तु दस साल पहले आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, आज वह आपके जीवन का हिस्सा भी नहीं है। सबकुछ अस्थायी है, केवल आप स्थायी हैं। इस भाव से आप अलगाव महसूस कर सकते हैं पर दु:खी नहीं हों। मुस्कुराकर इसे स्वीकार करें, ध्यान करें, फिर अंतरतम से शक्ति जागृत होगी। उस चैतन्य आत्मशक्ति के जागरण का उत्सव मनाएं।
— श्री श्री रविशंकर
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