तुलना, कंपेरिजन नहीं करनी चाहिए। फिर तुलना न करने से तो विकास ही नहीं हो सकेगा?
लेकिन ध्यान रहे, दो आदमी एक जैसे नहीं हैं, अगर आप रवींद्रनाथ के पड़ोस में रह गए तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। कहीं आप भी कविताएं करने लगे तो जिंदगी मुश्किल हो जाएगी और रवींद्रनाथ अगर आपके बगल में रह कर कहीं दुकानदारी करने लगे तो इतनी मुश्किल में पड़ जाएंगे। रवींद्रनाथ के मां-बाप ने बहुत कोशिश की थी कि वे दुकानदार बन जाएं या डॉक्टर बन जाएं या इंजीनियर बन जाएं। बेटों को बिगाड़ने की कोशिश से कौन बचना चाहता है! लेकिन रवींद्रनाथ बच गए। बड़ी मुश्किल से बच पाए। नहीं तो एक अदभुत आदमी खो जाता। रवींद्रनाथ के घर में एक किताब है, जिस किताब में बच्चों के जन्मदिन पर घर के बड़े-बूढ़े बच्चों के संबंध में भविष्यवाणियां करते थे। खेल था एक कि देखें किसकी भविष्यवाणी आगे ठीक निकलती है, तो रवींद्रनाथ के संबंध में किसी ने अच्छी भविष्यवाणी नहीं की और घर में ग्यारह बच्चे थे, उनमें से कई के संबंध में अच्छी भविष्यवाणियां हैं।
रवींद्रनाथ ने कुछ बड़ा नहीं किया। इनके संबंध में कौन भविष्यवाणी करे रवींद्रनाथ की मां ने भी लिखा है कि रवि से कोई आशा नहीं है। वह किताब देखने लायक हैं। वे ग्यारह बच्चों का दुनिया में बिल्कुल पता नहीं कि वे कहां चले गए। यह एक बच्चा है, अभी भी इसका नाम है। इससे बिलकुल आशा नहीं थी। किसी और को तो क्या होगी! क्योंकि मां को तो सदा आशा होती है, चाहे किसी को हो या न हो, लेकिन मां को भी आशा नहीं थी कि इससे कोई आशा नहीं बनती कि यह कुछ भी हो सकेगा। लेकिन यह लड़का कुछ हो सका। यह हो सका इसलिए कि इसे जो होना था यह उसी होने में लग गया। शिक्षक गणित पढ़ाता और रवींद्रनाथ शिक्षक का चित्र बनाते। गणित तो नहीं सीख सके, लेकिन चित्र बनाना आ गया। शिक्षक भूगोल पढ़ाता और रवींद्रनाथ बाहर जो पक्षी गीत गाता उसको सुनते।
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भूगोल तो नहीं आई, लेकिन पक्षी का गीत प्राणों में प्रवेश कर गया, लेकिन सारे बच्चे कुछ और कर रहे थे। रवींद्रनाथ के घर के भी लोग कह रहे थे कि देखो, पड़ोस के बच्चे देखो! और घर के बच्चे देखो! बहुत बड़ा परिवार था, सौ लोग थे घर में, कितने बच्चे थे। सब आगे जा रहे हैं, तू पिछड़ा जा रहा है! लेकिन उस लड़के ने कोई फिक्र न की। उसने कहा कि अगर पिछड़ा ही होने वाला हूं मैं, अगर पिछड़ा ही हुआ हूं, तो वही ठीक! अब मैं क्या करूं? जैसा हूं, वैसा हूं! असल में न तुलना करने का मतलब है कि मैं जैसा हूं, वैसा हूं। इसका यह मतलब नहीं है कि विकास रुक जाएगा। इसका यह मतलब है कि अगर आप इस बात के लिए राजी हो गए कि जो मैं हूं, हूं; तो आपकी जिंदगी में एक विकास होगा, जो आंतरिक होगा। आप रुक थोड़े ही सकते हैं विकास करने से।
-ओशो
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