उलटी ही बात पूछ रहे हैं। क्या हिंसा को पहचानते नहीं हैं। क्या जब नौकर की तरफ आप देखते हैं तो आपकी आंख वही होती हैं। जब आप मालिक की तरफ देखते हैं तब आंख वही होती है?जब आप मालिक की तरफ देखते हैं तब आपकी जो पूंछ है ही नहीं वह हिलती रहती है, जो है ही नहीं वह हिलती है पूंछ। जब आप नौकर की तरफ देखते हैं तो आपकी उसकी पूंछ पर नजर लगी रहती है, जो है ही नहीं कि हिल रही है कि नहीं हिल रही। हिंसा है, दोनों हिंसाएं हैं। एक में आप दूसरे पर हिंसा कर रहे हैं, एक में आप दूसरे की हिंसा सह रहे हैं। दोनों हिंसाएं हैं। जब एक पति पत्नी से कहता है कि पति परमात्मा है, तब उसे देखना चाहिए कि हिंसा हो रही है कि नहीं हो रही है।
हिंसा हो गई है। प्रेम में भी, प्रेम में भी डॉमिनेशन और प्रेम में भी मालकियत? तो फिर जिंदगी में कोई बचेगा ऐसा जहां मालकियत न हो! जहां सिर्फ मित्रता काफी हो। लेकिन पति समझा रहे हैं हजारों साल से कि पति परमात्मा है। पति ही समझा रहे हैं! हिंसा है वहां। ब्राह्मण शूद्र से कह रहा है कि पैर छुओ! हिंसा है वहां। गुरु शिष्य से कह रहा है कि आदर करो! हिंसा है वहां। आदर अपने आप हो जाए, बात अलग, लेकिन जब कोई कह रहा है कि करो! करना पड़ेगा! तब हिंसा शुरू हो गई। जब बाप अपने बेटे को कह रहा है कि मेरी मान, क्योंकि मैं तेरा बाप हूं! हिंसा शुरू हो गई। हिंसा कुछ किसी की छाती में छुरा भोंकने की बात नहीं है। हम बहुत तरह के छुरे भोंक रहे हैं जो दिखाई नहीं पड़ते और असली छुरे उतने खतरनाक नहीं हैं, क्योंकि असली छुरे निकाले जा सकते हैं, बचाव किया जा सकता है।
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अदृश्य छुरे, जो दिखाई नहीं पड़ते, वे गपे रह जाते हैं, खपे रह जाते हैं, निकल भी नहीं सकते, किसी पुलिस थाने में रिपोर्ट भी नहीं करा सकते, कोई ऑपरेशन भी नहीं कर सकता, कोई सर्जरी भी नहीं हो सकती, किसी अदालत में मुकदमा भी नहीं चल सकता। किस बाप पर कौन बेटा मुकदमा चलाए?लेकिन फिर हिंसा के फल आते हैं। जब तक बेटा कमजोर है तब तक बाप दबा लेता है। फिर नाव बदल जाती है। बेटा जवान होता है, ताकतवर हो जाता है, बाप बूढ़ा हो जाता है, कमजोर होता है, फिर बेटा
दबाने लगता है। जब बेटा बुढ़ापे में दबाता है तब बाप कहता है कि बहुत बुरी बात हो रही है, लेकिन उसे पता नहीं कि दबाए जाने का बदला लिया जा रहा है, हिंसा लौट रही है। सब बूढ़े बाप दबाए जाएंगे, क्योंकि सब छोटे बच्चे दबाए जा रहे हैं।
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