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LUCKNOW : वर्ष 1976 से बंद चल रही अग्रिम जमानत की व्यवस्था अब फिर से बहाल होगी। प्रदेश सरकार आगामी सत्र में दंड प्रक्रिया संहिता में अग्रिम जमानत की व्यवस्था को लेकर संशोधन विधेयक लाएगी। मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। यह विधेयक कुछ शर्तों के अधीन होगा, जिसके तहत गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी। गौरतलब है कि प्रदेश में अग्रिम जमानत की व्यवस्था को आपातकाल के दौर में खत्म कर दिया गया था। मंगलवार को सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में संपन्न हुई कैबिनेट बैठक में कुल नौ फैसले हुए। बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सभी ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी और आत्मा की शांति के लिये दो मिनट का मौन रखा।
केंद्र से लेनी होगी मंजूरी
प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बताया कि आपातकाल के दौर में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम, 1976 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था। अब 42 साल बीत जाने के बाद यह व्यवस्था फिर से बहाल होगी। हालांकि, इस विधेयक को कानूनी रूप देने के लिये इस विधेयक को विधानमंडल से पारित कराने के बाद इसका मसौदा केंद्र सरकार को मंजूरी के लिये भेजा जाएगा। केंद्र से मंजूरी के बाद अग्रिम जमानत का कानून लागू हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी दिया था निर्देश
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान जिसमें व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका में पहले ही कोर्ट से जमानत ले लेता है) में अग्रिम जमानत की व्यवस्था का प्रावधान है। नियमित जमानत के लिए विभिन्न मामलों में लोगों को पहले अरेस्ट होकर जेल जाना पड़ता है, चाहे बाद में उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा भले फर्जी साबित हो। खास बात यह है कि देश भर में अग्रिम जमानत का प्रावधान है लेकिन, सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों यूपी सरकार से कहा था कि अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म करने वाले कानून को वापस लिया जाये।
जमानत के लिए अभियुक्त की मौजूदगी जरूरी नहीं
प्रस्तावित विधेयक में अभियुक्त का अग्रिम जमानत की सुनवाई के समय उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है। कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दिये जाने पर केंद्रीय प्रारूप में जो शर्तें कोर्ट के विवेक पर छोड़ी गई हैं, उन्हें प्रस्तावित विधेयक में अनिवार्यत: शामिल किये जाने की व्यवस्था की गई है। इसका प्रस्तावित धारा 438 (दो) में उल्लेख किया गया है।
विवेचक जब चाहे अभियुक्त को कर सकता है तलब
अग्रिम जमानत के दौरान मुकदमे की विवेचना करने वाले पुलिस अधिकारी के बुलाने पर अभियुक्त को हाजिर होना होगा। विवेचक संबंधित अभियुक्त को पूछताछ के लिए जब चाहे बुला सकता है। जमानत के दौरान अगर अभियुक्त ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी गवाह को धमकाने, तथ्यों से छेड़छाड़, धमकी, प्रलोभन या किसी भी तरह का वादा किया तो विवेचक कोर्ट को अवगत करायेगा। ऐसा करने पर जमानत कैंसिल हो जाएगी।
कोर्ट की परमीशन के बिना देश छोडऩे की मनाही
अग्रिम जमानत लेने वाले व्यक्ति को कोर्ट की परमीशन के बिना देश छोडऩे की मनाही रहेगी। कोर्ट अग्रिम जमानत पर विचार करते समय अभियोग की प्रवृत्ति, अभियुक्त के पूर्व के आचरण, उसके फरार होने की आशंका या उसे अपमानित करने के इरादे से लगाये गये आरोपों पर विचार कर सकती है।
इन अपराधों में नहीं मिलेगी जमानत
विधेयक के प्रारूप में गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत न देने का प्रावधान होगा। इसके लिए प्रस्ताव में गाइड लाइन निर्धारित की गई है। विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम 1967, स्वापक औषधि और मन : प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985, शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923, उप्र गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 (गैंगस्टर एक्ट) से जुड़े मामलों में अग्रिम जमानत की व्यवस्था लागू नहीं होगी। इसके अलावा जिन अपराधों में मृत्युदंड का आदेश तय हैं, उनमें भी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
तीस दिन के भीतर निस्तारण जरूरी
अग्रिम जमानत की अंतिम सुनवाई के समय कोर्ट द्वारा लोक अभियोजक को सुनवाई के लिए नियत तिथि के कम से कम सात दिन पहले नोटिस भेजे जाने का प्रावधान किया गया है। अग्रिम जमानत के संबंध में आवेदन पत्र का निस्तारण आवेदन किये जाने की तिथि से तीस दिन के भीतर अंतिम रूप से निस्तारित किया जाना अनिवार्य किया गया है।
प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में बनी समिति ने दिये प्रस्ताव
अग्रिम जमानत की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने के लिए प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। दरअसल, 2006 से ही यह व्यवस्था लागू करने की पहल चल रही है लेकिन, 2010 में भारत सरकार ने कुछ त्रुटियों की वजह से इस प्रस्ताव को रोक दिया था। इस बार प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में बनी समिति ने इसके प्रस्ताव तैयार किये और पूर्व की त्रुटियों को दूर किया है।
अभी तक अरेस्टिंग से बचने के लिये लेते थे अरेस्ट स्टे
सेशन और हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत का प्रावधान न होने से गिरफ्तारी के भय से लोग सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट दायर करते हैं। इसके तहत अरेस्ट स्टे मिलता है। अरेस्ट स्टे लेकर ही लोगों को राहत मिलती है। हालांकि अरेस्ट स्टे के लिए दायर रिट से हाईकोर्ट पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है।
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