7 पार्टियों के 60 सांसद शामिल
नई दिल्ली (प्रेट्र)। सूत्रों के हवाले से प्राप्त सूचना के अनुसार, 7 राजनीतिक पार्टियों के 60 से ज्यादा सांसदों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया है। महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसद कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई-एम, सीपीआई, सपा और बसपा पार्टी से हैं। इन पार्टियों के नेताओं ने संसद में मुलाकात की और सीजेआई के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को अंतिम रूप दिया।
गुलाम नबी आजाद ने की पुष्टि
बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के नोटिस की पुष्टि की। बैठक में कांग्रेस के नेता आजाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला, सीपीआई के डी राजा और एनसीपी के वंदना च्वाण शामिल थे। सूत्रों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस और डीएमके सीजेआई के खिलाफ महाभियोग के नोटिस के समर्थन में थे लेकिन बाद में उन्होंने हाथ पीछे खींच लिए।
पीआईएल रिजेक्ट, महाभियोग नोटिस
बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने जज बीएच लोया हत्या मामले की स्वतंत्र जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका खारिज कर दी थी। इस याचिका की सुनवाई सीजेआई की अध्यक्षता वाली एक बेंच कर रही थी। इस फैसले के एक दिन बाद ही सीजेआई के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस सामने आया है। जज लोया सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में सुनवाई कर रहे थे।
कांग्रेस का राजनीतिक हथकंडा है महाभियोग
कांग्रेस पर आरोप मढ़ते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस सीजेआई के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को राजनीतिक हथकंडे की तरह इस्तेमाल कर रही है। वित्तमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया हत्याकांड की जांच की मांग से सबंधी याचिका को खारिज करके उनकी मंशा को एक्सपोज कर दिया तो कांग्रेस सीजेआई दीपक मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग का नोटिस देकर बदले की कार्रवाई करना चाह रही है। जबकि अक्षमता और कदाचार साबित होने पर ही सुप्रीम कोर्ट के जज पर महाभियोग चलाने का प्रावधान है।
जानें क्या है महाभियोग की प्रक्रिया
अक्षमता और कदाचार साबित होने पर ही सुप्रीम कोर्ट के जज पर महाभियोग चलाने का प्रावधान है। सीजेआई या हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को उच्च सदन यानी राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों और लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन चाहिए। महाभियोग का नोटिस मिलने के बाद राज्यसभा के सभापति इस प्रस्ताव पर विचार करेंगे कि यह मामला महाभियोग चलाने लायक है या नहीं। इसके बाद यदि वे संतुष्ट होते हैं तो सभापति एक कमेटी गठित करेंगे जो इस मामले को देखेगी अन्यथा वे इसे खारिज भी कर सकते हैं। यदि इस महाभियोग को हरी झंडी मिलती है तो देश के इतिहास में यह पहली बार होगा जब किसी सीजेआई के खिलाफ महाभियोग चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को पदमुक्त करने के लिए दोनों सदन में उपस्थित सदस्यों का दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है। इसके बाद राष्ट्रपति उस जज को हटाने की आज्ञा देते हैं
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