ALLAHABAD: बुधवार से पितृ पक्ष की शुरूआत के साथ संगम तट पर पूर्वजों को तर्पण यानि की जलदान व पिंडदान का सिलसिला शुरू हो गया। शहर के अलावा दूसरे शहरों और राज्यों से संगम तीरे आने वालों का सिलसिला पूरे दिन जारी रहा। लोगों ने पितरों का पिंडदान परिचित पुरोहितों व पंडों से करवाया। संगम तट पर गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब इत्यादि जगहों से भी लोग पहुंचे।
तीन ऋण में पितृ ऋण सर्वश्रेष्ठ
पितृ पक्ष की महत्ता और विधि विधान के बारे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने तीर्थ पुरोहित परिषद प्रयाग के अध्यक्ष रामजी पांडेय से बातचीत की। उन्होंने बताया कि किसी भी व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं। पहला आत्मा ऋण, दूसरा देव ऋण एवं तीसरा पितृ ऋण होता है। इसमें पितृ ऋण को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। श्राद्ध कर्म के लिये कुछ बातें बाध्यकारी हैं। पितरों को मोक्ष की प्राप्त हो सके। इसके लिये जरूरी है कि पहला प्रयाग, दूसरा काशी और तीसरा पिंडदान गया में किया जाये।
कर्मकांड श्राद्ध पद्धति के अनुसार करें
श्री पांडेय ने बताया कि भगवान श्री हरि विष्णु का मुख प्रयाग में है। उनकी नाभि काशी में है और चरण गया में हैं। पिंडदान में यदि तीनों का क्रम बिगड़ जाये तो उसे खंडित माना जाता है। कर्मकांड श्राद्ध पद्धति का हवाला देते हुये उन्होंने बताया कि मां का पिंडदान गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सीथपुर पाटन में करना श्रेष्ठ है। इसके बाद बद्रीनाथ से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित ब्रह्माकृपाली पर श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ती होती है।
गलती की तो कराएं हेमाद्री पूजा
रामजी पांडेय ने बताया कि यदि किसी के पिंडदान का तरीका सही नहीं है तो इसके लिये जरूरी है कि हेमाद्री (प्रायश्चित) पूजा कराई जाये। उन्होंने बताया कि क्षत्रीय व ब्राह्मण का पिंड चावल या खोआ का बनता है। बाकी जातियों का पिंड जौ के आटे का बनाया जाता है। करीब 03 घंटे चलने वाली पूजा में पूर्वजों के जितने पिंड बनाये जाते हैं, उतने को मोक्ष की प्राप्ती होती है।
श्राद्ध कर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
भगवान विष्णु का मुख प्रयाग में है, इसलिये पहला पिंड दान प्रयाग में करना चाहिये
नाभी काशी में है, इसलिये दूसरा पिंड दान काशी में करना चाहिये
चरण गया में है, इसलिये तीसरी बार गया में पिंडदान करना चाहिये
इसके बाद बद्रीनाथ में स्थित ब्रह्माकृपाली पर श्राद्ध से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है
पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री
चावल, काला तिल, जौ, शक्कर, अबीर- गुलाल, हल्दी, रोड़ी, पान, सुपारी, सूत, अगरबत्ती, घी का दिया, सफेद फूल आदि
इन आत्माओं का बनता है पिंड
पिता, बाबा, परबाबा, मां, दादी, परदादी, नाना, परनाना, विद्धित परनाना, नानी, परनानी, विद्धित परनानी, चाचा और उनकी पत्नी, बुआ और उनके पति, भाई, मामा, इसके अलावा वे सभी आपके पूर्वज चाहे वे स्त्री हों या पुरूष जिनकी मृत्यु हो चुकी है।
पिंडदान प्रयाग, काशी और गया के क्रम में ही करना चाहिये। इसके क्रम का खंडन होने पर कार्य सफल नहीं होता है। ऐसे में पूर्वजों की आत्मा पृथ्वी लोक पर भटकती रहती है। विधान स्वरूप होने वाली पूजा में जितने पिंड बनाये जाते हैं। उन सभी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रामजी पांडेय, अध्यक्ष, तीर्थ पुरोहित परिषद प्रयाग
पित्रपक्ष की मुख्य बातें
अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि के आरम्भ के साथ ही पितृ पक्ष का आरम्भ होता है
पितरों को समर्पित यह पक्ष पितरों के सम्मान एवं तर्पण का पक्ष है
यह पक्ष 06 सितम्बर को दोपहर में 12 बजकर 06 मिनट से प्रारम्भ हुआ
उदया तिथि के कारण प्रतिपदा का श्राद्ध 07 सितम्बर को होगा
11 सितम्बर को षष्ठी तिथि का क्षय होने के कारण यह पक्ष 14 दिन का ही है।
पितृ विसर्जन 20 सितम्बर को होगा
प्रतिपदा तिथि गुरूवार को दिन में 11:46 बजे तक रहेगी
पितृ पक्ष का आरम्भ उदया तिथि के कारण 07 सितम्बर को होगा
पितृ पक्ष में कुत्ते, बिल्ली एवं गायों को नहीं मारना चाहिये
इन दिनों में पितर किसी भी रूप में कभी भी आपके द्वार पर आ सकते हैं, इसीलिए दरवाजे पर आने वाले किसी भी जीव का निरादर ना करें
पितृ पक्ष में पशु पक्षियों को अन्न व जल देना उत्तम फलदायी होता है
पितृ पक्ष में ब्रह्माचर्य का पालन करना चाहिए
खानपान में पूर्णत: सात्विकता बरतनी चाहिये
पितृ पक्ष में चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा एवं बासी भोजन का त्याग करना चाहिये
पितृ कर्म में काले तिल का प्रयोग करना चाहिये, लाल एवं सफेद तिल का प्रयोग वर्जित है। भोजन पूर्ण सात्विक एवं धार्मिक विचारों वाले ब्राह्मण को ही करवाना चाहिये। जो ब्राह्मण नियम का पालन नहीं करता वह प्रेत योनि में जाता है।
पं। दिवाकर त्रिपाठी 'पूर्वाचली'