कानपुर (इंटरनेट डेस्क )। Republic day 2024: 26 जनवरी को हम सभी को इंतजार रहता है उस पल का जब नई दिल्ली के राष्ट्रपति द्वारा झंडा फहराने के बाद कर्त्तव्य पथ पर निकलती है देश की आन-बान और शान की प्रतीक गणतंत्र दिवस परेड। जिसमें देश की सेना की ताकत और भारतीय कला और परम्परा की खूबसूरत और कई बार अनदेखी झांकियां भी देखने मिलती हैं। गणतंत्र दिवस परेड का इंतजार तो सभी को रहता है, लेकिन क्या आपने इस दौरान राष्ट्रपति द्वारा झंडा फहराने के नजारे को ध्यान से देखा है, तो आप जान जाएंगे कि यहां पर ध्वज फहराने का तरीका 15 अगस्त को लाल किले के ध्वजा रोहण से अलग है।
पहला अंतर -
1- लाल किले पर होता है ध्वजारोहण
बता दें कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से पहले उसे बांधकर पोल यानि खंबे के नजदीक रखा जाता है। ऐसे में जब लाल किले पर प्रधानमंत्री नेशनल फ्लैग को फहराने के लिए डोरी खींचते हैं तो तिरंगा पहले ऊपर उठते हुए टॉप तक पहुंचता है, उसके बाद वो हवा में फहराता है। इसे फ्लैग होस्टिंग यानि ध्वजारोहण कहते हैं। जबकि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने का तरीका बिल्कुल अलग है।
2- गणतंत्र दिवस परेड में झंडा फहराया जाता है
दरअसल गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने के लिए उसे बांधकर पहले से ही पोल के टॉप पर पहुंचा दिया जाता है। ऐसे में जब राष्ट्रपति डोरी खींचते हैं तो तिरंगा वहीं पर खुल जाता है और फहरने लगता है। इसे झंडा फहराना या अन्फर्ल कहते हैं।
दूसरा अंतर - क्या है वजह
1- लाल किले पर झंडा रोहण पीएम द्वारा किया जाता है और इसके पीछे की वजह है कि जब देश आजाद हुआ था उस वक्त प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेज सरकार का झंडा उतारकर भारतीय झंडे को ऊपर चढ़ाकर फहराया था। तभी से लालकिले पर झंडा रोहण होता है और यह प्रधानमंत्री द्वारा ही किया जाता है।
2- जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने तो उन्होंने गणतंत्र दिवस के मौके पर 26 जनवरी, 1950 को पहले गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराया, उस वक्त राष्ट्रीय ध्वज पहले से खंब से ऊपर बंधा था और डोरी खींचते ही वो फहराने लगा था, नीचे से ऊपर नहीं गया था। उस वक्त से ही इस प्रक्रिया को आदर्श मानकर बदला नहीं गया। आज भी प्रेसीडेंट गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण नहीं बल्कि झंडा फहराते हैं।
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