कई भाषाओं में गा चुके हैं
8 फरवरी, 1941 में जन्में जगजीत सिंह हिंदी, उर्दू, पंजाबी और भोजपुरी भाषा में गाया करते थे। उनकी गायिकी को भारत सरकार ने 2003 में सबसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाजा। जगजीत द्वारा 'वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी' और 'चिठ्ठी न कोई संदेश' जैसी गज़लें गाई गई हैं जो निकली तो उनकी जबान से थीं पर सीधे जा के लोगों के दिलों में उतरी। अपनी आवाज को हमारे बीच जिंदा रख कर खुद वो 10 अक्टूबर 2011 में दुनिया से रुख्सत हो गए।
इस वजह से छोड़ दिया फिल्मों में गाना
उनका मानना था 'मैं जो हूं वो हमेशा हूं'। फिल्मी दुनिया को अलविदा कहने के पीछे बहुत बडा़ कारण है संगीत से उनको मिलने वाली खुशी। उनके मुताबिक फिल्मों में गायक अपनी खुशी से नहीं गा पाता है। फिल्म में प्रोड्यूसर के पैसे लगे होते हैं तो अपने संगीत से पहले प्रोड्यूसर को खुश करना होता है। फिल्मों में गाने सिचुएशन की डिमान्ड के आधार पर बनाये जाते हैं। फिर हीरो और हिरोइन को भी अपने संगीत से खुश करना होता है। संगीतकार को फिल्मों में अपनी खुशी से गाने का कोई अधिकार नहीं है। इंडस्ट्री में पहले हर किसी को सेटिस्फाई करना होता है फिस आपकी कला को दुनिया के सामने रखने के लिए अप्रूव किया जाता है। अपनी खुशी से संगीतकार तभी गा सकता है जब उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी न हो।
इस गज़ल गायिका से की शादी
जन्म के बाद परिवार ने उनका नाम जगमोहन रखा था जिसे बाद में बदल कर पारिवारिक ज्योतिष की सहमती से जगजीत कर दिया गया। जगजीत 1965 में मुंबई आ गए थे। मुंबई आने के बाद उन्हें गज़ल गायिका चित्रा मिली जिनकी आवाज ने जगजीत को दीवाना कर दिया था। साल 1969 में दोनों ने एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का फैसला ले लिया और शादी कर ली।
जगजीत निपुर्ण घुड़सवार भी थे
जगजीत सिंह उन स्पेशल लोगों में से थे जिन्होंने संसद में साल 1857 में मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर की गज़ल प्रस्तुत की थी। ये गज़ल भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जो गदर छेडी़ गई थी उसकी 150वीं सालगिराह पर गाई गई थी। जगजीत सिंह सिर्फ गज़ल गायक ही नहीं बल्की एक निपुर्ण घुड़सवार भी थे।
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