मानसूनी हवाओं की खोज
सिंधु घाटी सभ्यता से ही यानी आज से करीब 4500 साल पहले भी भारतीयों को मानसूनी हवाओं की दिशा का ज्ञान था। इन हवाओं की मदद से भारतीय समुद्री यात्राएं भी किया करते थे। गोवा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियनोग्राफी (एनआइओ) ने यह दावा किया है। अभी तक माना जाता था कि ग्रीस के नाविक और व्यापारी हिप्पालस ने ईसा पूर्व पहली सदी के दौरान मानसूनी हवाओं की खोज की थी।
व्यापार के लिए मार्ग ढूंढा
इनकी मदद से ही उसने हिंद महासागर के रास्ते लाल सागर और भारत के बीच व्यापार के लिए मार्ग ढूंढा था। करेंट साइंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र में एनआइओ के वैज्ञानिक सिला त्रिपति ने लिखा है, '2500 ईसा पूर्व से ही भारतीयों को मानसूनी हवाओं का ज्ञान था, जिसका प्रयोग कर वह समुद्री मार्गों से व्यापार किया करते थे।
समुद्री लहरों का जिक्र मिलता
ऋग्वेद में भी मानसूनी हवाओं, जहाज और समुद्री लहरों का जिक्र मिलता है। सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया सभ्यता के बीच प्राचीन काल से ही समुद्र के रास्ते व्यापार होता था। शोध में सामने आया है कि ओडिशा के नाविक उत्तर पूर्वी मानसून के समय समुद्री यात्रा शुरू करते और दक्षिण पश्चिमी मानसून आने के साथ ही वापस लौट आते थे।
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ताबीजों पर जहाज के चित्र बने
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता के स्थलों की खोदाई में मिली मुहरों और ताबीजों पर जहाज के चित्र बने हैं। शोध के अनुसार मानसून के समय उत्तर पूर्व और दक्षिण पश्चिम में मनाए जाने वाले त्योहार भी दर्शाते हैं कि भारतीयों को मानसूनी हवाओं और समुद्री लहरों का ज्ञान प्राचीन काल से ही था।
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