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KANPUR: बॉलीवुड के दबंग सलमान खान नई पीढ़ियों को बॉलीवुड में लांच करने के लिए जाने जाते हैं। इसी कड़ी में जुड़ने जा रहा है दो नए सितारों का नाम। अब सलमान 'नोटबुक' के जरिए अपने जिगरी दोस्त के बेटे जहीर इकबाल और मोहनीश बहल की बेटी प्रनूतन बहल को लांच कर रहे हैं। फिल्म और व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़ी बातों पर प्रनूतन से स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश..
आपका नाम प्रनूतन कैसे पड़ा?
मैं वर्ष 1993 में पैदा हुई थी। मेरी दादी का देहांत वर्ष 1991 में हुआ था। दादा जी चाहते थे कि मेरा नाम नूतन रखें लेकिन पापा को अपनी मां का नाम ऐसे लेना अच्छा नहीं लगा। मेरे दादा जी ने प्राण और नूतन को जोड़कर बनाया प्रनूतन। इसका अर्थ है नई जिंदगी। आप लॉ की पढ़ाई कर रहीं थी।
कब एहसास हुआ कि अभिनेत्री बनना है?
बचपन से ही एक्टिंग करना तय था। दादी की फिल्मों का प्रभाव रहा। उनकी फिल्में 'बंदिनी', 'सुजाता', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'सौदागर' मुझे बेहद पसंद हैं। इसके अलावा मेरे लिए पढ़ाई बहुत जरूरी थी। मुझे उसे नजरअंदाज नहीं करना था। पढ़ाई छोड़कर एक्टिंग में नहीं आना था। पता था कि एक्टर बनना है लेकिन पढ़ाई छोड़ने की कीमत पर नहीं।
आपने पढ़ाई पर इतना फोकस क्यों किया? कई कलाकार एक्टिंग के लिए पढ़ाई छोड़ देते हैं?
मेरे माता-पिता शिक्षा को लेकर सख्त नहीं लेकिन अनुशासित थे। वो परीक्षा में आने वाले अंकों को लेकर दवाब नहीं बनाते थे लेकिन पढ़ाई के प्रति सचेत करते रहते थे। उन्होंने हमेशा कहा कि अपने काम को लेकर ईमानदार रहो। मेहनती बनो। मेरे साथ ऐसा नहीं था कि कल परीक्षा है और आज पार्टी करें। पढ़ाई को लेकर माता-पिता को कभी टोकना नहीं पड़ा। मैं खुद ही पढ़ने बैठ जाती थी। जब लॉ की परीक्षाएं होती थीं तब कमरे में बैठकर 6-7 घंटे पढ़ती थी। मैं सिर्फ लंच के लिए ब्रेक लेती थी। मुझे खुद भी लगता था कि पढ़ाई बहुत जरूरी है। यह बेहतर इंसान बनने में मदद करती है। ऐसा नही है कि आप पढ़ेंगे नहीं तो एक अच्छे इंसान नही बनेंगे लेकिन आपकी सोच, व्यक्तित्व बनाने में पढ़ाई बहुत मददगार होती है।
बचपन में आप पर फिल्मों को लेकर कैसा प्रभाव था?
निश्चित रूप से प्रभाव तो रहता ही है। पता होता है कि मेरे पिता प्रख्यात हैं। मेरी दादी से सभी परिचित हैं। हालांकि मेरे परिवार ने इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। घर पर ज्यादातर आम बातचीत होती थी।पापा ने अपने दौर के चैलेंजेज के बारे में बताया या अब समय आसान लगता है?अब आसान हो गया है क्योंकि आपको ऑडियंस की प्रतिक्रिया तुरंत मिल जाती है। 'नोटबुक' के ट्रेलर को काफी पसंद किया गया। पापा कहते हैं कि हमारे वक्त में यह पता भी नहीं चलता था। तब सोशल मीडिया नहीं था। अब हर घंटे नए-नए रिव्यू आ जाते हैं।
ऑडिशन के समय अपने अपने सरनेम का प्रयोग नहीं किया था। कितना संघर्ष करना पड़ा ?
मुझे कभी भी परिवार की मदद नहीं लेनी थी। मैंने तय किया था जो करूंगी खुद के दम पर करूंगी। दूसरा, मैं इसे संघर्ष के तौर पर नहीं देखती हूं। ऑडिशन एक प्रक्रिया है। हजारों लोग उसके लिए जाते हैं। अगर मुझे लॉयर बनना होता और मैं परीक्षा न दूं, क्योंकि मेरे पिता बैरिस्टर हैं, तो यह गलत होगा। यदि आप एक्टर बनना चाहते हैं तो ऑडिशन उसकी एक प्रक्रिया है। मैंने तय कर रखा था कि मुझे यही रास्ता अख्तियार करना है। जब ढाई सालों में कुछ हो नहीं रहा था तब कामना करती थी कि काम बन जाए। उस वक्त भी पापा से सिफारिश कराने की नहीं सोची।
'नोटबुक' के लिए चयन कब हुआ?
निर्माता ने मेरे पिक्चर्स देखे और नितिन कक्कड़ सर को दिखाए। करीब चार-पांच घंटे का ऑडिशन था। काफी इंटेंस था क्योंकि बहुत सारे सीन किए। नितिन सर ऐसे निर्देशक हैं जो आपकी उम्दा परफॉर्मेस को बाहर लाकर रहते हैं। 18 दिन बाद चयन होने की खबर आई। सलमान सर ने पापा को फोन करके खबर दी कि मैं 'नोटबुक' की हीरोइन हूं। मैं बहुत इमोशनल हो गई थी।फिल्म की शूटिंग कश्मीर में हुई।
पहले भी कश्मीर गई थीं?
नहीं, मैं 'नोटबुक' के लिए ही पहली बार वहां गई। पिछले साल पहली बार रेकी के लिए अगस्त में गई थी। शूटिंग दस अक्टूबर से शुरू हुई। हालांकि हम लोग शूटिंग से दस दिन पहले कश्मीरी एक्टर्स और बच्चों के साथ वर्कशॉप के लिए गए थे। बहुत अच्छा अनुभव रहा। कश्मीर के लोग मेहमाननवाजी में बहुत आगे हैं।
फिरदौस बनने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी?
बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि प्रनूतन और फिरदौस बहुत अलग हैं। फिरदौस बहुत मैच्योर है। उसकी जिंदगी में भावनात्मक उतार-चढ़ाव काफी आए हैं। यह मेरे साथ नहीं हुआ है। वह टीचर हैं। वह कैसे चीजों पर रिएक्ट करती है? यह सब सीखना पड़ा। प्रनूतन को भूलकर फिरदौस के तौर पर काम किया। मैं असल जिंदगी में बहुत तेज चलती हूं लेकिन फिरदौस के लिए खुद में बदलाव लाना पड़ा। वह शांत किस्म है। मैंने धीरे चलना शुरू किया। जब हम लोग सेट पर गए तो मैं फिरदौस के कमरे में गई खाना खाया। मैं बाहर नहीं आना चाहती थी।
सलमान खान के जरिए लांच किए जाने से जिम्मेदारी का एहसास ज्यादा है?
बिल्कुल। बहुत बड़ी जिम्मेदारी रहती है। जब वो किसी प्रोजेक्ट से जुड़ जाते हैं तो बहुत सीरियस होकर काम करते हैं। वो बड़े दिलवाले भी हैं। आप कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें निराशा हो। कितने कम लोगों को सलमान खान के बैनर से लांच होने का मौका मिलता है। मेरे लिए यह बड़ा मौका था। उम्मीद है कि मैं उन्हें निराश नहीं करूंगी। कई स्टार किड्स आ रहे हैं। कांप्टीशन को लेकर सवाल होते हैं। आपका क्या मानना है?मुझे लगता है कि हर कलाकार अपने आप में अलग होता है। हर किसी का अपना व्यक्तित्व होता है। हर इंसान दूसरे से जुदा होता है। 'पद्मावत' देखने के बाद मैं उस किरदार में किसी और अभिनेत्री के बारे में नहीं सोच सकती हूं। इसी तरह हर फिल्म के साथ होता है।
फिल्म नोटबुक में आपने खुद ही लिखा है। हाथ से लिखने का अनुभव कैसा रहा?
मुझे लिखने की आदत है। इतनी परीक्षाएं दी हैं। हर परीक्षा में लंबे-लंबे जवाब लिखने होते थे। वैसे भी वकील काफी लिखते हैं। जब ट्रेलर देखती हूं तो अच्छा लगता है कि उसमें मेरी हैंडराइटिंग है।
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