लेकिन यादव सिंह की राजनीतिक पहुंच और ऊँचे रसूख़ का ही ये असर था कि उन तक हाथ लगाने के लिए सीबीआई को हज़ारों फाइलें खँगालनी पड़ीं।
यादव सिंह पर आरोप है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के सबसे अमीर विभाग नोएडा प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर रहते हुए कई सौ करोड़ रुपये रिश्वत लेकर ठेकेदारों को टेंडर बांटे।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के इंजीनियर रहते हुए यादव सिंह की सभी तरह के टेंडर और पैसों के आवंटन में बड़ी भूमिका होती थी।
दरअसल, यादव सिंह के शक्तिशाली और अमीर बनने की कहानी तब से शुरू होती है जब उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री थीं। बसपा शासन काल में ही यादव सिंह को नोएडा अथॉरिटी का चीफ इंजीनियर बनाया गया।
उन पर आरोप लगे कि इस पद पर रहते हुए उन्होंने जमकर पैसा कमाया।
साल 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की नई सरकार भले ही आई और लगा कि यादव सिंह पर शिकंजा कसा जा रहा है, लेकिन वास्तव में कुछ नहीं हुआ।
यादव सिंह के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच भी हुई, लेकिन उन्हें राज्य सरकार की इस महत्वपूर्ण जांच एजेंसी ने क्लीनचिट दे दी।
यही नहीं, इस क्लीनचिट के साथ ही यादव सिंह को नोएडा के अलावा ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी की भी ज़िम्मेदारी मिल गई।
आगरा के रहने वाले यादव सिंह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी हैं और 1980 में उन्होंने बतौर जूनियर इंजीनियर नोएडा अथॉरिटी में नौकरी शुरू की।
1995 में प्रदेश में पहली बार जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो 19 इंजीनियरों के प्रमोशन को दरकिनार कर यादव सिंह को प्रोजेक्ट इंजीनियर का पद दे दिया गया जिनके पास इस पद के लायक डिग्री भी नहीं थी।
यादव सिंह शायद एकमात्र ऐसे अधिकारी हों जिन्हें बिना डिग्री के महत्वपूर्ण पद दिया गया और फिर उस पद लायक डिग्री हासिल करने के लिए तीन साल का समय भी दिया गया।
इसके बाद साल 2002 में यादव सिंह को नोएडा में चीफ मेंटिनेंस इंजीनियर के पद पर तैनाती मिल गई। अगले नौ साल तक वे इसी पद पर ही तैनात रहे। यह पद इंजीनियरिंग विभाग का सबसे बड़ा पद था।
नवंबर 2014 में पहली बार आयकर ने उनके ठिकानों पर छापा मारा और दिसंबर 2014 में वो निलंबित हुए।
पिछले साल 16 जुलाई को यादव सिंह के पास आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी। 4 अगस्त 2015 को सीबीआई ने उनके और उनके परिवार के सदस्यों के ठिकानों पर छापा मारा।
बताया जाता है कि मौजूदा सरकार में भी एक मंत्री और मुख्यमंत्री के क़रीबी रिश्तेदार की यादव सिंह से नज़दीकी है। यही वजह है कि मायावती के चहेते यादव सिंह इस सरकार में भी बेफिक्र होकर महत्वपूर्ण पदों पर जमे थे।
चूंकि यादव से नज़दीकी और उन्हें बचाने वालों में सपा और बसपा दोनों दलों से जुड़े लोग शामिल हैं, शायद इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने यादव सिंह की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्हें बचाने वालों पर भी कार्रवाई की मांग की है।
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