यह भी लगभग निश्चित था कि राज्य में अगली सरकार शिवसेना-भाजपा गठबंधन की ही बनने जा रही थी.

मुंडे ने शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के ख़िलाफ़ पहला आंदोलन छेड़ा था. उस वक़्त उनको  महाराष्ट्र में बहुत समर्थन मिला था.

उनके इस आंदोलन ने साल 1995 में  शिवसेना और भाजपा की सरकार बनने में अहम भूमिका निभाई थी.

राजनीति से अलग गोपीनाथ मुंडे एक अच्छे इंसान थे. आम आदमी के लिए उनके दिल में बहुत जगह थी और वे व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों की मदद करते थे.

'अच्छे इंसान'

उनके जाने के बाद कम से कम उनका ज़िला बीड तो ज़रूर अनाथ हो गया है. मुंडे अच्छे दोस्त, अच्छे पिता और अच्छे इंसान थे.

उनके निधन से महाराष्ट्र में अचानक राजनीतिक समीकरण भी बदल गए हैं.

गोपीनाथ मुंडे के साले और पू्र्व केंद्रीय मंत्री प्रमोद महाजन की आठ वर्ष पहले हत्या हो गई थी. उनके परिवार के लिए ख़राब वक़्त चल रहा है.

मुंडे के अचानक चले जाने के बाद और नितिन गडकरी के दिल्ली की राजनीति में जाने के बाद यह भी सवाल उठता है कि महाराष्ट्र भाजपा की राजनीति में उनकी जगह कौन लेगा?

महाराष्ट्र की राजनीति में फिलहाल  मुंडे के क़द का कोई नेता भाजपा के पास नहीं है, यहां तक कि नितिन गडकरी भी नहीं. नेताओं की दूसरी पीढ़ी अभी महाराष्ट्र भाजपा में तैयार नहीं हुई है.

(वरिष्ठ पत्रकार कुमार केतकार की बीबीसी संवाददाता पवन सिंह अतुल से बातचीत पर आधारित)

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