पत्नी का ख्याल रखना पति का है दायित्व
स्तन कैंसर से ग्रसित एक पत्नी के सहमति देने पर तलाक की मांग करने वाले पति की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि कठिन समय व बीमारी की हालत में पत्नी की सेवा करना पति का फर्ज है। बीमार पत्नी की मदद का वादा तलाक की मंजूरी का वैध आधार नहीं हो सकता। जस्टिस एमवाय इकबाल और जस्टिस सी. नागप्पन की पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि पत्नी की मदद व सुरक्षा पूर्व निर्धारित कर्तव्य है और पति-पत्नी की परस्पर सहमति के बावजूद पहले से अलग रहे पति को तलाक की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस केस में भी क्योंकि पत्नी स्तन कैंसर से पीड़ित है, इसलिए हो सकता है कि महंगे इलाज की जरूरतों को देखते हुए तलाक की सहमति दी है।
पत्नी का सहारा होता है पति
इस मामले में न्यायाधीशों ने कहा कि प्रतिवादी पति का यह कर्तव्य है कि वह याचिकाकर्ता पत्नी के स्वास्थ्य व सुरक्षा का खयाल रखे। वह पत्नी के इलाज की सुविधा मुहैया कराए। इस केस में तलाक के सहमति के साथ पति यह वादा कर रहा है कि वह मदद करेगा, जबकि ऐसा करने के लिए वह पहले से कर्तत्वबद्ध है। इसलिए यह तलाक पर विचार का वैध आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि हिन्दू धर्म में विवाह एक "पवित्र गठबंधन" है। ऐसे में पत्नी को उसकी मुश्किलों से निपटने के लिए अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। पत्नी अपने पति के घर में एक तरह से प्रस्थापित होती है और नया जन्म लेती है। यह जन्म-जन्मांतर का बंधन है। पति पत्नी ना केवल प्यार बल्कि सुख-दुख साझा करते है।
पत्नी के स्वस्थ होने के बाद मिलेगा तलाक
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