इसका मतलब यह है कि दोषी पाए जाने पर भी इतालवी नौसैनिकों को मौत की सज़ा नहीं मिलेगी.
समाचार एजेंसी पीटीआर्ई के अनुसार इस दौरान सुप्रीम कोर्ट इटली सरकार की उस याचिका पर विचार को तैयार हो गया है जिसमें नेशनल इंवेस्टीगेटिंग एजेंसी (एनआईए) के इतालवी नौसैनिकों की जांच के अधिकार को चुनौती दी गई है.
18 फ़रवरी को हुई सुनवाई के दौरान इटली सरकार और नौसैनिकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद केंद्र सरकार इस मामले में आगे नहीं बढ़ रही है.
उन्होंने प्रार्थना की थी कि जब तक केंद्र सरकार इस मामले में कोई फ़ैसला नहीं लेती उनके मुवक्किलों को उनके देश जाने दिया जाए.
मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने तब मामले को 24 फ़रवरी तक टाल दिया था और कहा था कि इसी तारीख को वह केंद्र का जवाब सुनेगी.
इटली की सख़्ती
अदालत इटली सरकार के आतंकवाद विरोधी कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका पर सुनवाई कर रही है.
इटली सरकार का तर्क है कि आंतकवादी विरोधी-कानून के तहत कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के ख़िलाफ़ है जिसके अनुसार सिर्फ़ मैरीटाइम ज़ोन ऐक्ट, आईपीसी, सीआरपीसी और अनक्लॉज़ (यूएनसीएलओएस- समुद्र के कानूनों पर सयुंक्त राष्ट्र संधि) के तहत ही कार्रवाई की जा सकती है.
पिछली सुनवाई के बाद इटली सरकार ने मुकदमे की सुनवाई में और देरी होने पर विरोधस्वरूप भारत से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था.
इटली के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि इस मामले में इटली एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार अपने अधिकारों का प्रयोग करेगा.
इतालवी नौसैनिकों पर फरवरी 2012 में केरल के नज़दीक समुद्र में दो भारतीय मछुआरों की हत्या का आरोप है. वहीं नौसैनिकों का कहना है कि उन्होंने मछुआरों को ग़लती से समुद्री डाकू समझकर गोली चलाई थी.
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