युद्ध के हालात न बने इसलिए होती रहे वार्ता
पार्थसारथी चीन को लेकर रणनीतिक परिप्रेक्ष्य पर आयोजित सेशन में हिस्सा लेने आए थे। भारत चीन रिश्तों और 1962 के भारत-चीन युद्ध पर उन्होंने कहा कि युद्ध के हालात न बनें इसके लिए वार्ता होती रहनी चाहिए। फिर चाहे वह चीन से हो, पाकिस्तान से या फिर किसी अन्य देश से। अक्सर राजनीति से जुड़े लोग भड़काऊ शब्दों का इस्तेमाल कर स्थिति को बिगाड़ देते हैं। ऐसी ही गलती पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारत-चीन युद्ध से पहले की थी। चीन की सेना बॉर्डर पर थी। उस समय नेहरू ने कहा था, 'मैंने अपनी सेना को कह दिया है कि चीन के सैनिकों को धक्के मार कर बाहर कर दो।' नेहरू की यही बयान युद्ध का बड़ा कारण बना। इस बार डोकलाम विवाद में गलती नहीं दोहराई। अच्छा नियंत्रण रहा।
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देश में नई तकनीक इजाद करनी होगी
उन्होंने कहा कि आधुनिक हथियारों और एयरक्राफ्ट के लिए भारत अभी भी दूसरे देशों पर निर्भर है। देश में ही नई तकनीकों को इजाद करने की जरूरत है। साथ ही किसी देश की संप्रभुता में धर्म अहम रोल अदा करता है। चीन में बुद्ध का प्रभाव दूसरे सभी धर्मों से ज्यादा है और वहां धर्म के आधार पर लड़ाई नहीं होती। भारत तिब्बत के लाखों बोध अनुयायियों का डिप्लोमेसी में इस्तेमाल कर सकता है।
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हिंद महासागर में वियतनाम भी जुड़े
पेट्रो-केमिकल्स का 80 प्रतिशत बिजनेस हिंद महासागर से ही है। इसका विस्तार करने की जरूरत है। इसमें वियतनाम, फ्रांस और जर्मनी को जोड़ा जाना चाहिए।
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Report by : बलवान करिवाल, चंडीगढ़
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