ऐसी है परंपरा
नवरात्रि के त्योहार को सिर्फ अच्छाई की बुराई पर जीत (मां दुर्गा की महिषासुर पर जीत) के रूप में नहीं, बल्िक भारतीय संस्कृति में एकता के प्रतीक के रूप में भी मनाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि देखा जाए तो भक्त इस त्योहार को सिर्फ मां की पूजा करके ही नहीं मनाते, बल्िक साथ ही साथ पारंपरिक और रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर लोक गीत गाकर गरबा और डांडिया भी खेलते हैं।
एकता का प्रतीक हैं डांडिया और गरबा
बता दें कि गरबा और डांडिया दोनों डांस के दो फॉर्म्स हैं, जो गुजरात और मुख्यत: गुजरातियों से संबंधित है। इसके बावजूद अब ये दोनों डांस फॉर्म्स हो चुके हैं पूरे देशभर में प्रचलित और नवरात्र के दिनों में तो इनकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ जाती है। देश के कोने-कोने में इस मौके पर लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर गरबा और डांडिया फेस्ट में भाग लेते हैं। बात करें इन दोनों डांस विधाओं की तो डांडिया का आयोजन खास तौर पर देर शाम को मां की आरती-पूजा के बाद किया जाता है। वहीं गरबा का आयोजन मां की पूजा से पहले किया जाता है। ये दोनों तरह के डांस समूह में किए जाते हैं। आमतौर पर इन दोनों तरह के आयोजनों को बड़े स्तर पर आयोजित किया जाता है। ऐसे आयोजनों में 100 से ज्यादा लोग जोश के साथ हिस्सा लेते हैं।
डांडिया का धार्मिक महत्व
अब अगर एक बार फेस्टिव मूड और रोमांच को किनारे रख दें तो इन नौ दिनों में इन दोनों डांस फॉर्म्स की खास प्राथमिकता है। कहने का मतलब ये है कि गरबा और डांडिया को मां और महिषासुर के बीच हुई लड़ाई का नाटकीय रूपांतर माना जाता है। ऐसे में डांस में इस्तेमाल की जाने वाली डांडिया स्टिक को मां दुर्गा की तलवार के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि इस डांस फॉर्म को 'The Sword Dance' के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह से डांडिया करने के लिए रंग-बिरंगी लकड़ी की स्टिक्स, चमकते लहंगे और कढ़े हुए ब्लाउज व कदमों को थिरकाने वाले संगीत की जरूरत पड़ती है।
पारंपरिक परिधान और उसकी विशेषता
नवरात्रि त्योहार है प्यार और सदभाव का प्रतीक। इसमें आमतौर पर लोग मिले-जुले तरह के रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर खुशियां मनाते हैं, एकता के प्रतीक के रूप में। गौर करें तो जहां महिलाएं भारी कढ़ाई वाली पारंपरिक और सजी-संवरी चनिया-चोली को पहनकर डांस में हिस्सा लेती हैं, वहीं पुरुष कुर्ता और पायजामा पहनकर रंग जमाते हैं। ऐसे में कुछ महिलाएं अपनी पसंद के अनुसार डिजाइनर साड़ी और लहंगे पहनकर भी खुशियों में शामिल होती हैं।
बदला रूप डांडिया और गरबा नाईट्स का
एक समय था, जब ये दोनों डांस लोगों को त्योहार की मान्यता को समझाने के लिए आयोजित किए जाते थे, लेकिन अब वक्त बदल गया है और साथ ही बदल गए हैं इन डांस फॉर्म्स के आधार भी। बदलते समय के साथ जब सब कुछ व्यावसायिक हो चुका है, गरबा और डांडिया भी इससे अछूते नहीं रहे। अब तो बड़े-बड़े व्यापारिक संगठन और कंपनियां अच्छी खासी कीमत पर डांडिया और गरबा का आयोजन करते हैं। लोग ऐसे मौकों में हिस्सा लेने के लिए बड़ी कीमतों पर टिकट लेकर इसमें शामिल भी होते हैं। इस तरह से अब तो ये हमारे देश का एक बड़ा आयोजन बनकर सामने आया है।
बड़े-बड़े स्टार्स होते हैं गेस्ट
शुरुआत में गरबा देश के कोने-कोन और गलियों-गलियों में खेला जाता था, लेकिन आज फैशन, इवेंट, डांस और खाने-पीने का मौका बन चुका है। आजकल तो ऐसे गरबा और डांडिया नाइट्स में बड़े-बड़े स्टार्स को स्टेज परफॉर्मेंस के लिए बुलाया जाता है। ऐसे में लोग त्योहार के नाम पर इन आयोजनों में शामिल होने कम और स्टार्स के नाम पर ज्यादा आते हैं।
आज भी रौनक है बरकरार
कुल मिलाकर भले ही इन आयोजनों के तरीके बदल गए हों, लेकिन इनकी महत्ता आज भी उन्हीं दिनों में है जब पहले के जैसे नवरात्र में हुआ करती थी। पहले भी लोग जिस जोश और रोमांच के साथ ऐसे मौकों पर शामिल होते थे, वही जोश और रोमांच आज भी कायम है। आज भी वहीं रौनक मां के इन नौ दिनों में डांडिया और गरबा रास में दिखाई देती है।
inextlive from Spark-Bites Desk
Interesting News inextlive from Interesting News Desk