नवरात्रि से संबंधित तीन मुख्य प्रसंग हैं। एक आख्यान में कहा गया है कि पिछली चतुर्युगी के अंतिम चरण में जब 'मधु’-'कैटभ’ नामक असुरों ने देवी-देवताओं को अपना बंदी बनाया, तब 'श्री नारायण’ भी मोह निद्रा में सोये हुए थे। तब 'ब्रह्मा जी’ द्वारा 'आदि कन्या’ प्रकट हुईं और नारायण को जगाया। उन्होंने 'मधु’ तथा 'कैटभ’ का नाश कर देवी-देवताओं को मुक्त कराया।
प्रकट हुईं 'आदिशक्ति’
दूसरे आख्यान में कहा गया है कि 'महिषासुर’ नामक असुर ने स्वर्ग के सभी देवी-देवताओं को पराजित किया। त्रिदेव की शक्ति से एक कन्या के रूप में 'आदिशक्ति’ प्रकट हुई। उसने महिषासुर का वध किया और देवी-देवताओं को मुक्त कराया।
'महाकाली का अवतार
तीसरे प्रसंग में कहा गया है कि सूर्य के वंश में 'शुंभ’ और 'निशुंभ’ नामक दो असुर पैदा हुए। उनके प्रधान कार्यकर्ता का नाम 'रक्तबिंदु’ था, सेनापति का नाम 'धूम्रलोचन’ था और उसके दो मुख्य सहायकों का नाम 'चंड’ और 'मुंड’ था। शिव जी की शक्ति से 'आदि कुमारी’ प्रगट हुईं, जिनके विकराल रूप से 'महाकाली’ प्रगट हुईं और 'चंड-मुंड’, 'रक्तबिंदु’ तथा 'धूम्रलोचन’ का विनाश किया।
'आदि शक्ति’
भावार्थ में यह वृत्तांत महत्वपूर्ण है। जैसे, 'मधु’ और 'कैटभ’, 'राग’ और 'द्वेष’ के प्रतीक हैं और 'असुर’ शब्द 'आसुरी लक्षणों’ का बोधक है। इसी प्रकार 'महिष’ शब्द का अर्थ 'भैंस’ है जो 'मंद बुद्धि’ तथा 'तमोगुण’ का प्रतीक है। वैसे ही 'धूम्रलोचन’ ईष्र्या और बुरी दृष्टि का वाचक है। 'शुंभ-निशुंभ’ 'हिंसा’ और 'द्वेष’ आदि के वाचक हैं। अत: उपरोक्त बताए गए तीनों आख्यानों का वास्तविक भाव यह है कि सृष्टि पर अज्ञान तथा तमोगुण रूपी रात्रि छाई हुई थी, तब राग, द्वेष तथा हिंसा ने उन सभी नर-नारियों को धीरे-धीरे अपवित्रता की ओर अग्रसर कर उन्हें अपना बंदी बनाया। तब परमपिता परमात्मा ने त्रिदेव द्वारा भारत की कन्याओं को ज्ञान, योग तथा दिव्य गुण रूपी शक्ति से सुसज्जित किया, जिसके कारण वे 'आदि शक्ति’ कहलाईं। उन दिव्य कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण ही हर वर्ष इन दिनों कन्या-पूजन करते हैं।
मन के असुरों का करें नाश
अब पुन: कलियुग के अंत का समय चल रहा है और आसुरीयता का बोलबाला है। अत: अब सर्व शक्मिान परमात्मा पुन: कन्याओं को दिव्य ज्ञान की शक्ति देकर जन-जन की आत्मिक ज्योति जगा रहे हैं और आसुरीयता के अंत का कार्य करा रहे हैं इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम केवल जयघोष में ही न लगे रहें अपितु अपने मन में बैठे असुरों नाश कर दें।
राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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