इंटरनेट एक्सेस में होगा भेदभाव
नैस्कॉम का कहना है कि वह ऐसे किसी भी मॉडल का सर्पोट नहीं करेंगे, जिसमें फेवरेबल रेट और स्पीड मुहैया कराए जाने वाले कॉन्टेंट के चुनाव में टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स का दखल होगा। इस बारे में उन्होंने ट्राई से अपील करते हुए कहा है की ऑपरेटर्स को अलग-अलग तरह की सर्विस जैसे विडियो स्ट्रीमिंग, ई-कॉमर्स वेबसाइट एक्सेस करने के लिए अलग-अलग कीमतें ना तय की जाएं। उनका कहना है की अगर ऐसा होगा तो इंटरनेट सेगमेंटिंग का रिस्क बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।
पब्लिक से मांगी राय
टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने 7 जनवरी तक डिफरेंशल डाटा प्राइसिंग पर जनता से राय मांगी है। इस मद में उन्होंने एक पेपर जारी किया जिसमें बताया गया है की कुछ प्लान टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर के डिफरेंशल टेरिफ के जैसे है। इसमें जीरो या डिस्काउंटेड टैरिफ पर वेबसाइट्स, ऐप्लिकेशंस या प्लेटफार्म के कुछ खास कॉन्टेट मुहैया कराए जाएंगे। इन सभी पर ट्राई ने लोगो से टिप्पणियां मांगी है। नेट न्यूट्रेलिटी पर चल रही बहस का यह एक महत्वपूर्ण पहलू है।
इंटरनेट एक्सपर्ट नही है सहमत
एयरटेल द्वारा इंटरनेट आधारित कॉल के लिए अलग से शुल्क लिए जाने के निर्णय के बाद पूरे देश में नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर बहस तेज हो गई। हालांकि बाद में एयरटेल ने काफी विरोध के बाद इस योजना को टाल दिया था। इसके बाद फेसबुक ने भी फ्री बेसिक्स सेवा के समर्थन को लेकर जोरदार अभियान चलाया क्योंकि उसे डर था की भारत में इस प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लग सकता है। इसको सफल बनाने के लिए फेसबुक ने अपने ग्राहकों के लिए फ्री इंटरनेट प्लेटफॉर्म की पेशकश के लिए रिलायंस कम्युनिकेशंस के साथ समझौता किया। शुरू में ट्राई ने आरकॉम से फेसबुक की फ्री बेसिक्स सेवाओं को उस समय तक स्थगित रखने को कहा था। उसका तर्क था कि जब तक की डिफरेंशल प्राइसिंग मामले में कोई हल ना निकल आए आरकॉम ऐसा ना करे। सभी इंटरनेट एक्सपर्ट्स और एक्टिविस्ट्स फ्री बेसिक्स के विरोध में है। उनका मानना है की यह नेट न्यूट्रेलिटी के सिद्धांतों पर खरा नहीं है।
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