न्यूयॉर्क (आईएएनएस)। स्पेस में रुचि रखने वाले चेन्नई के एक जिज्ञासु ने स्वतंत्र रूप से काम किया और चांद की सतह पर लैंडर विक्रम के मलबे पता करने में वैज्ञानिकों की मदद की, जहां वह क्रैश हुआ था। षणमुग सुब्रमणयन ने मंगलवार को आईएएनएस को बताया कि यह चुनौतीपूर्ण था क्योंकि नासा भी यह पता नहीं लगा पा रहा है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? और यही वह सोच है जिसने उन्हें विक्रम लैंडर की खोज करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इसके लिए नासा के चित्रों की पड़ताल की। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी लूनर रिकॉइनसेंस ऑर्बिटल (एलआरओ) कैमरा जिसे पब्लिक के लिए जारी किया गया था।
एक-एक पिक्सल की जांच से मिली जानकारी
एलआरओ प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ पेट्रो ने आईएएनएस को बताया कि जिसने विक्रम के मलबे को खोजने में हमारी मदद की उसकी कहानी वास्तव में अद्भुत है। उन्होंने कहा कि सुब्रमण्यन एलआरओ या मिशन चंद्रयान-2 टीम से पूरी तरह अलग एक स्वतंत्र व्यक्ति हैं। हां इन्हें चंद्रयान-2 मिशन में रुचि जरूर है। उन्होंने नासा के डाटा उपयोग किया और एक ऐसे स्थान की पहचान की जहां कोई बदलाव नहीं हुआ था। उन्होंने तस्वीरों की एक-एक पिक्सल की तलाश और उस स्थान को खोज निकाला। पेट्रो ने कहा कि चेन्नई में सुब्रमण्यन एक सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट के रूप में काम करते हैं। उन्होंने एक ईमेल साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया कि अपने खाली समय में उन्होंने यह खोज की है।
पहले और बाद की तस्वीरों से हुई पुष्टि
नासा ने कहा कि 17 सितंबर को एलआरओसी द्वारा ली गई तस्वीरों से संभावित दुर्घटना स्थल की पहली मोज़ेक छवि बनाई गई। विक्रम के संकेतों को देखने के लिए इन तस्वीरों को कुछ लोगों ने डाउनलोड किया था। नासा और एलआरओ प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों ने कहा कि उस समय वे विक्रम का पता नहीं लगा सकते थे क्योंकि जब वह क्रैश हुआ था तब वह इलाका गहरे शैडो में था। पेट्रो ने कहा कि उन्हें और एलआरओ कैमरा टीम के प्रमुख को सुब्रमण्यम से एक ईमेल मिला जिसमें उन्होंने विक्रम के क्रैश होने के स्थान के बारे में संकेत दिया था। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू), जहां एलआरओसी प्रोजेक्ट स्थित है, ने कहा कि इस टिप के मिलने के बाद एलआरओसी टीम ने पहले और बाद की तस्वीरों की तुलना करके विक्रम के मलबा मिलने के स्थान की पहचान की पुष्टि कर दी।
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