Narada Jayanti 2020: पुराणों के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है। देवर्षि नारद ब्रह्मा जी के 7 मानस पुत्रों में से एक माने गए हैं। देवताओं का ऋषि होने के कारण इन्हें देवर्षि नाम मिला है। अपने ज्ञान के कारण इन्हें दैत्य हों या देवता दोनों से ही समान आदर प्राप्त है। नारद अजर अमर व भगवान विष्णु के परम भक्त हैं।
पिता के श्राप के कारण नहीं हुआ विवाह
कथा है कि ब्रह्मा जी ने नारद को सृष्टि कार्य का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने पिता का ये आदेश मानने से इनंकार कार दिया। इसलिए उन्होंने नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया। वहीं पुराणों के अनुसार राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को श्राप दिया था कि वह दो घड़ी से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे। यही कारण है कि वह लोक कल्याण के लिए यात्रा करते रहते हैं। कठिन तपस्या के बल पर उन्होंने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया। कहते हैं नारद मुनि के श्राप के कारण ही जब भगवान विष्णु ने मनुष्य रूप में राम के रूप में अवतार लिया तब उन्हें पत्नी देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था।
भक्ति तथा संकीर्तन के आद्य आचार्य
देवर्षि नारद भक्ति तथा संकीर्तन के आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा 'महती' के नाम से विख्यात है। उससे 'नारायण-नारायण' की ध्वनि निकलती रहती है। लोक कल्याण के लिए सदैव प्रयासरत रहने के कारण ही सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी की सदा मान्यता रही है।
पूर्व जन्म की कथा
देवर्षि नारद के पूर्व जन्म की कथा इस प्रकार है, वह 'उपबर्हण' नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर अभिमान हो गया, एक बार जब ब्रह्मा जी की सेवा में अप्सराएं व गंधर्व गीत और नृत्य से उनकी आराधना कर रहे थे, उपबर्हण ने अशिष्ट आचरण किया जिसे देखकर ब्रह्मा जी कुपित हो गये और उन्होंने उसे मानव योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। उसका जन्म एक दासी के यहां हुआ, माता पुत्र साधु संतों की निष्ठा के साथ सेवा करते थे। बालक की सेवा से प्रसन्न हो कर साधुओं ने उसे नाम जाप और ध्यान का उपदेश दिया। जब दासी की सर्पदंश से मृत्यु हो गयी तब वह बालक संसार में अकेला रह गया और अपने को ईश्वर के भजन में लगा दिया। एक दिन वह बालक एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगा कर बैठा होने पर आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद रूप में मुझे प्राप्त करोगे।' बाद में इसी बालक का जन्म ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में हुआ जिसने भगवान विष्णु की आराधना कर परम भक्त का पद प्राप्त किया।
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