स्नोडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार को बताया, "निजी संतुष्टि की बात करें तो अभियान पहले ही पूरा हो चुका है. मैं पहले ही जीत चुका हूं."
30 साल के एडवर्ड स्नोडेन का ये इंटरव्यू रूस में हुआ जहां इस वर्ष एक अगस्त से उन्हें अस्थाई शरण मिली हुई है. उनकी ओर से लीक जानकारी के बाद अमरीका ने अपनी निगरानी नीति पर फिर से विचार किया है.
मई के अंत में स्नोडेन, अपने साथ गुप्त दस्तावेज़ लेकर अमरीका से भाग निकले थे. अमरीका में उन पर जासूसी के आरोप हैं.
स्नोडेन ने अख़बार को बताया, "याद रखिए, मेरा मक़सद समाज को बदलना नहीं था. मैं समाज को मौका देना चाहता था कि वो तय करे कि क्या वो बदलना चाहता है?"
सुधारों का सुझाव
पिछले सप्ताह एक केंद्रीय जज ने व्यापक तौर पर टेलिफ़ोन जानकारी जुटाने को ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया था और राष्ट्रपति की एक सलाहकार समिति ने सुधारों का सुझाव दिया था.
"निजी संतुष्टि की बात करें तो अभियान पहले ही पूरा हो चुका है. मैं पहले ही जीत चुका हूं."
-एडवर्ड स्नोडन
न्यायाधीश और सलाहकार समिति ने कहा था कि इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि गुप्त जानकारी कार्यक्रम से किसी आतंकी षड्यंत्र को रोका जा सका हो.
इसके कुछ दिन बाद, साल के आखिर में होने वाले अपने पत्रकार सम्मेलन में राष्ट्रपति ओबामा ने भी इशारा किया कि एनएसए के निगरानी कार्यक्रम की समीक्षा हो सकती है.
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था, "सामने आई जानकारी और इस कार्यक्रम के बारे में आम जनता की चिंताओं के मद्देनज़र कोई और तरीका भी अपनाया जा सकता है."
लेकिन राष्ट्रपति ओबामा ने एडवर्ड स्नोडेन पर दस्तावेज़ लीक कर "अनावश्यक नुकसान" करने का आरोप लगाया. ओबामा ने कहा कि समिति के सुझावों के बारे में जनवरी में "स्पष्ट घोषणा" करेंगे.
हज़ारों की जासूसी
एडवर्ड स्नोडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि उनके पास ये जानने का कोई तरीका नहीं था कि आम जनता उनके दृष्टिकोण का समर्थन करती है या नहीं.
अमरीका और ब्रिटेन ने जिन लोगों और संस्थाओं पर निगरानी रखी, उसके बारे में और जानकारी पिछले सप्ताह द गार्डियन, द न्यूयॉर्क टाइम्स और डर श्पीगल अख़बारों में छपी थीं.
इन अख़बारों के मुताबिक ऐसे करीब एक हज़ार लोगों और संस्थाओं की सूची में यूरोपीय संघ के आयुक्त, एक प्रधानमंत्री समेत कुछ इसराइली अधिकारी और कुछ मानवाधिकार संस्थाएं शामिल थीं.
गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट और याहू जैसी अमरीकी कंपनियां, अमरीकी सरकार की ओर से इकट्ठा की गई जानकारी को रोकने के लिए कदम उठा रही हैं.
इस वर्ष अक्तूबर में जब ये बात सामने आई कि एनएसए ने जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्कल के फ़ोन की जासूसी की थी तो दोनो देशों के बीच राजनयिक मतभेद पैदा हो गए थे.
इसी तरह ब्राज़ील की राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ़ भी इस बात से नाराज़ थीं कि ईमेल और टेलिफ़ोन कॉलों की जानकारी इकट्ठा करने के लिए एनएसए ने ब्राज़ील की सरकारी तेल कंपनी पेट्रोब्रास के कंप्यूटर नेटवर्क में सेंध डाली थी.
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