यहां का है ये वाक्या
ये कहानी नहीं बल्कि सच्चा वाक्या है। ये वाक्या है मेरठ के लिसाड़ी गेट के रहने वाले एक पशु व्यापारी और प्रॉपर्टी डीलर हाजी फाइक से जुड़ा। दरअसल बीते दिनों इनकी बेटी शारिका की शादी हुई। बता दें कि इनकी शादी लठपुरा के रहने वाले फज्जो पहलवान के बेटे आबिद से तय हुई। हापुड़ रोड में इनके शादी समारोह का आयोजन किया गया। इस आयोजन के दौरान लोगों की निगाहें दूल्हा-दुल्हन से ज्यादा किसी और चीज पर टिकी थीं।
देखते ही रह गए लोग
इन लोगों की आंखें मंडप के बाहर बंधी गाय और भैंस पर टिकी थीं। हर किसी के मन में एक ही सवाल था कि ये गाय और भैंस का आखिर यहां क्या काम है। उनके इन सवालों को जवाब देकर शांत किया दुल्हन के परिवार वालों ने। उन्होंने बताया कि उनके यहां शादी में पशु को दहेज में देने की परंपरा है। इस परंपरा में इस बात को भी जोड़ा गया है कि पशु दुधारू होना चाहिए।
दुल्हन के परिजनों ने बताया
दुल्हन के परिवार वालों ने बताया कि दोनों दुधारू पशुओं की कीमत लाखों में है। इसके साथ ही उन्होंने ये बताया कि ऐसा करने से पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा। वैसे दहेज में पशुओं को देना काफी रोचक परंपरा है। ऐसा करने से वाकई पशुपालन को बढ़ावा मिल सकता है और साथ ही पशुओं को आश्रय भी। मेरठ में मुस्लिम पिता का ये काम फिलहाल जबरदस्त तरीके से चर्चा में है।
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