बीईंग एसोसिएशन के नाटक 'म्यूज़ियम ऑफ़ स्पीशीज़ इन डेंजर' की मुख्य किरदार प्रधान्या शाहत्री मंच से ऐसे कई पैने संवाद बोलती हैं.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से मंचित इस नाटक में सीता और द्रौपदी जैसे चरित्रों के माध्यम से महिलाओं की हालत की ओर ध्यान खींचने की कोशिश की है लेखिका और निर्देशक रसिका अगाशे ने.
रसिका कहती हैं, "सीता को देवी होने के बाद भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी और इसे सही भी माना जाता है लेकिन मेरा मानना है कि 'अग्नि परीक्षा' जैसी चीज़ें ही रेप को बढ़ावा देती हैं."
ये विरोध का तरीका है
नाटक में शूर्पणखा पूछती है, "मेरी गलती बस इतनी थी कि मैंने राम से अपने प्यार का इज़हार कर दिया था? इसके लिए मुझे कुरूप बना देना इंसाफ़ है?"
शूर्पणखा सवाल उठाती है, "अगर शादीशुदा आदमी से प्यार करना ग़लत है तो राम के पिता की तीन पत्नियां क्यों थीं?"
रसिका कहती हैं, "16 दिसंबर को दिल्ली गैंगरेप के बाद इंडिया गेट पर मोमबती जलाने और मोर्चा निकालने से बेहतर यही लगा कि लोगों तक अपनी बात को पहुंचाई जाए और इसके लिए इससे अच्छा माध्यम मुझे कोई नहीं लगा."
कट्टरपंथियों का डर नहीं
नाटक में सीता का किरदार निभाने वाली प्रधान्या शाहत्री हैं, "सच से डरना कैसा? ये हमारा विरोध करने का तरीका है और हम जानते हैं, हम ग़लत नहीं हैं."
जब आस्था का मामला आता है तो घर परिवार से भी विरोध होता है. द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली किरण ने बताया कैसे घर वाले उनसे नाराज़ हो गए थे.
रसिका का कहना था, "ये पहली बार नहीं है कि किसी ने द्रौपदी और सीता के दर्द को लिखने की कोशिश की है और उस वक़्त धर्म कहाँ जाता है जब किसी लड़की का रेप हो जाता है."
हिंदू सभ्यता पर हमला?
"कुंती ने हमारा सेक्स टाइमटेबल बनाया ताकि किसी भाई को कम या ज़्यादा दिन न मिलें." द्रौपदी जब मंच से ये संवाद बोलती हैं तो तालियां गूंज उठती हैं.
नाटक की सीता पूछती हैं, "लोग पूछेंगे कि सीता का असली प्रेमी कौन था? वो रावण जिसने उसकी हां का इंतज़ार किया या वो राम जिसने उस पर अविश्वास किया?"
सिर्फ़ हिंदू मान्यताओं पर ही छींटाकशी क्यों, इसके जवाब में वह कहती हैं, "हमने ये कहानियां बचपन से सुनी हैं. हमें ये याद हैं और इसलिए हम इसके हर पहलू पर गौर कर सकते हैं."