पेरिस स्थित शार्ली एब्डो के दफ़्तर पर पिछले महीने हुए चरमपंथी हमले में संपादक समेत 12 लोग मारे गए थे.
इसके बाद के अंक के कवर पर पैगंबर हजरत मोहम्मद को 'मैं शार्ली एब्डो हूँ' की तख्ती पकड़े हुए दिखाया गया था. कार्टून के ऊपर लिखा हुआ था, "सभी को क्षमा."
अखबार के 17 जनवरी के संस्करण में शार्ली एब्डो के इसी कवर को प्रकाशित करने के बाद शिरीन के ख़िलाफ कई जगहों पर पुलिस शिकायत दर्ज कराई गई. ठाणे ज़िले के मुंब्रा थाने की पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार किया. हालांकि उसी दिन वो ज़मानत पर रिहा भी हो गईं.
माफ़ी के बाद भी मुक़दमा
कार्टून छापने के दूसरे दिन ही शिरीन दलवी ने जनता से माफ़ी माँगी थी, लेकिन फिर भी उनके ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई. उनकी गिरफ़्तारी के लिए अनशन तक पर बैठने की धमकियां दी गईं और विरोध प्रदर्शन किए गए.
शिरीन लोगों की धार्मिक भावना आहत करने के आरोप को ख़ारिज़ करते हुए कहती हैं कि वे खुद मुसलमान हैं और पैग़ंबर की शान में गुस्ताख़ी की बात तो सोच भी नहीं सकतीं.
वे तो अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी के पक्ष में भी खड़ी होने का दावा नहीं करतीं. उनका कहना है कि उन्होंने कार्टून इसलिए नहीं छापा था कि वो अभिव्यक्ति की आज़ादी का समर्थन करना चाहती थी.
उन्होंने कहा, "शार्ली एब्डो पर हमले के बाद जो संस्करण निकला वह रिकार्ड संख्या में बिका. हमने इस ख़बर को पोप के बयान से जोड़ कर छापा जिसमें उन्होंने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि नहीं है, और धार्मिक मान्यताओं के साथ मज़ाक नहीं किया जाना चाहिए."
शिरीन के अनुसार वो किसी भारतीय उर्दू अख़बार की पहली महिला संपादक हैं. उन्होंने अज्ञात स्थल से टेलीफोन पर बीबीसी से बातचीत में उनपर गुजर रही त्रासदी बयाँ की.
संस्करण बंद, नौकरी गई
ज़मानत मिलने के बाद भी शिरीन और उनके दो बच्चे आज तक अपने घर नहीं जा पाए हैं. तीनों उस दिन से अलग-अलग रह रहे हैं. शिरीन ने अपने एक दोस्त के घर पर पनाह ली है, तो उनके दो बच्चे रिश्तेदारों के घर पर रह रहे हैं.
शिरीन चाहती हैं कि सारा मामला सहमति से निपट जाए. वो कहती हैं, "अगर मेरे निर्णय से किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस लगी हो तो उसके लिए मैंने माफ़ी मांग ली है. मैं विनती करती हूँ कि अब इसे यहीं ख़त्म कर दिया जाए."
इस विवाद के बाद अवधनामा अख़बार ने अपना मुंबई संस्करण बंद कर दिया है, जिसके कारण शिरीन की नौकरी भी चली गई है.
वो कहती हैं, "भले ही यह मामला यहाँ ख़त्म हो जाए, लोग मुझे माफ़ कर दें, लेकिन हमारी जिंदगी अब पहले जैसी नहीं हो सकती. मेरे बच्चों को बिना वजह तकलीफें सहनी पड़ रही हैं. पिछले 15 दिनों से न तो वह कॉलेज गए हैं और न ही मुझसे मिले हैं."
जवाब का तरीका
शिरीन मानती हैं कि बौद्धिक चीज़ों का जवाब बौद्धिक तरीके से देना चाहिए. वो कहती हैं, "ख़बर छापना मेरा अधिकार था. पसंद न आने पर उसपर आपत्ति जताना लोगों का अधिकार है. लेकिन इल्म का जवाब इल्म से देना चाहिए. अगर किसी ख़बर पर कोई आपत्ति हो तो, अगले संस्करण में उसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है."
शिरीन यह भी कहती हैं कि अगर उन्होंने गुनाह किया है तो अल्लाह उन्हें सज़ा देगा. देश में क़ानून का राज है और वो उसके तहत भी सज़ा पाने को तैयार हैं.
पर जो लोग उन्हें सज़ा देना चाहते हैं उन्हें ऐसा करने का कोई हक़ नहीं है.
शिरीन के मुताबिक़, "लोगों ने कहा है कि मुझे किसी भी क़ीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा. मैं काफ़ी डरी हुई हूं. जब मैं माफ़ी मांग ही चुकी हैं, इस मुद्दे को यहीं खत्म कर दिया जाए."
शिरीन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अब भी समर्थन करती हैं लेकिन इस कार्टून को छापने के अपने फैसले को वो अपनी पत्रकारिता जीवन की पहली और आखिरी ग़लती भी मानती हैं.
27 सालों से पत्रकारिता कर रही शिरीन फ़िलहाल, क़ानूनी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हैं.
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