संगठन के बारे में जानकारी
स्वयंसेवी संगठन 'सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड पीस' के बारे में तो आपने सुना ही होगा. ये संगठन सांसदों के हर छोटे से छोटे व्यवहार पर पैनी नजर रखता है. इसी संगठन ने ये खास रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में 15वीं लोकसभा के पांच साल के कार्यकाल के दौरान 545 सांसदों की भूमिका को अलग-अलग कसौटियों के आधार पर विश्लेषित किया गया है. वहीं साथ ही रिपोर्ट में सांसदों की ओर से लोकसभा में उठाए गए सवालों से लेकर उनकी बहस तक में उनकी भागीदारी, सदन में उपस्थिति व सांसद विकास निधि सरीखे कई मुद्दों पर विस्तार के साथ जानकारी दी गयी है.
 
तैयार की गई रिपोर्ट
संगठन की ओर से तैयार रिपोर्ट के अनुसार करीब 490 सांसद ऐसे हैं, जो तकरीबन साढे चार लाख सवाल संसद के सामने पेश कर चुके हैं. इन्होंने अपने क्षेत्र के विकास पर 70 फीसदी से ज्यादा की राशि भी खर्च की है. इसके संपादक नीरज गुप्ता बताते हैं कि रिपोर्ट में सांसदों को कई मापदंडों पर विश्लेषित किया गया है. ये मापदंड इनकी शिक्षा, व्यवसाय, उम्र, लिंग, राज्य, राजनीतिक दल व आरक्षित सीटें हैं. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद इस बात का निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संसद के तमाम दिग्गजों में से कौन जनता के प्रति अपने दायित्वों का पालन करता है और कौन सबसे ज्यादा लापरवाह हैं.
 
ये हैं सबसे ज्यादा लापरवाह सांसद
इनमें सबसे ज्यादा लापरवाह सांसदों में ऊपर हैं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव व अन्य 55 सांसद. इन सांसदों ने अपने कार्यकाल के पांच सालों में एक भी सवाल जनहित में नहीं पूछा. वहीं दूसरी ओर मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन व विजयंत जय पांडा समेत कई ऐसे सांसद हैं जिनका प्रदर्शन इन मसलों पर काफी अच्छा रहा.
 
इन्होंने पूछे सबसे ज्यादा सवाल
अब अगर बात करें लोकसभा में पूछे गए प्रश्नों को आधार मानते हुए तो शिवसेना के आनंदराव अडसूल ने कुल 1280 सवाल पूछे. सबसे ज्यादा सवाल पूछ कर ये नंबर वन पर रहे. इनके बाद नंबर आता है गजानन बाबर का. 1185 प्रश्नों को पूछकर गजानन दूसरे नंबर पर रहे, इनके बाद 1141 सवाल पूछकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असादूद्दीन ओवैसी तीसरे नंबर पर काबिज रहे. 1112 सवाल खड़े करके कांग्रेस के प्रदीप मांझी चौथे स्थान पर व शिवसेना के शिवाजी अधलराव पाटील 1194 सवालों के साथ पांचवें नंबर पर रहे. पूरी तैयार रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि लक्ष्यद्वीप, महाराष्ट्र, केरल, ओडिशा, गुजरात व तमिलनाडु से जुड़े सांसदों ने अब तक सबसे ज्यादा सवाल पूछे हैं. यहां यह बताना भी बेहद जरूरी होगा कि प्रश्न काल के कई दिलचस्प पहलू हैं. उदाहरण के तौर पर व्यवसाय के मुताबिक देखें तो औद्योगिक पृष्ठभूमि से जुड़े सांसदों ने औसतन 447 सवाल उठाए. इस दौरान लोकसभा में सबसे ज्यादा सवाल वित्त के विषय पर पूछे गए.

इन क्षेत्रों को लेकर उठे सबसे ज्यादा सवाल
वहीं दूसरी ओर रेलवे, मानव संसाधन, गृह मांलय, स्वास्थ्य व कृषि सरीखे क्षेत्रों में भी सबसे ज्यादा सवाल उठाए गए. वहीं यह भी देखने को मिला कि सांसदों की संसदीय मामलों, अंतरिक्ष, प्रधानमंत्री कार्यालय और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में काफी कम दिलचस्पी रही. इन सबके अलावा संसद में बहस की बात हो तो अधिकतर लोकसभा सांसदों की भागीदारी इसमें सबसे ज्यादा रही. इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि 93 प्रतिशत सांसदों ने बहस में हिस्सा लिया. इनमें भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल सबसे अव्वल हैं. सपा के शैलेन्द्र कुमार, कांग्रेस के पी एल पुनिया, बीजू जनता दल के भर्तृहरि मेहताब और भाजपा के डॉ. वीरेंद्र कुमार भी अव्वल रहे.

इन्होंने लिया बहस में खुलकर हिस्सा
गौर करने वाली बात यह है कि सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव व गुरूदास दास गुप्ता जैसे नेताओं ने भी बहसों में खुलकर हिस्सा लिया. अब बात करें अपने क्षेत्र के विकास को लेकर मिलने वाली सांसद निधि के खर्च करने की तो तमाम बड़े नामों ने इसमें रुचि दिखाई है. वहीं आधे से ज्यादा सांसदों ने पूरी तरह से इस इसको लेकर मिलने वाली रकम का इस्तेमाल नहीं किया. इनमें सोनिया गांधी ने सिर्फ 69, राहुल गांधी ने 61, लालकृष्ण आडवाणी ने 57, मुलायम सिंह यादव ने 76, शरद यादव ने 62, शरद पवार ने 67 फीसदी राशि ही खर्च की. वहीं दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के गोविंदचंद्र, द्रमुक के अब्दुल रहमान, कांग्रेस के प्रेमचंद्र गुड्डु, तृणमूल कांग्रेस की डॉ काकोली घोष दस्तीदार, कांग्रेस के अजय माकन और सुषमा स्वराज ने सांसद विकास निधि खर्च करने में बाजी मारी.
 
रिपोर्ट में कुछ खास तथ्य ऐसे भी हैं  
इस रिपोर्ट में खास ये है कि कुल 40 फीसदी समय की हुई बर्बादी हुई है. इसके साथ ही 372 प्राइवेट मेंबर्स बिल आये थे. इनके अलावा कुल 213 सरकारी बिल आए. कुल सांसदों में उपस्थिति 72 फीसदी ही रही. इसके साथ ही 1,338 घंटे 4 मिनट तक का काम-काज किया गया. इसके विपरीत 888 घंटे 47 मिनट का समय बर्बाद हुआ. काम के लिए दिए गए समय से 271 घंटे 26 मिनट देर तक बैठकर काम किया गया. 570 बार स्थगन किया गया. 154 बार बहिर्गमन हुआ व 829 बार सांसद गर्भगृह तक पहुंचे.

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