दत्तो का स्वैगर
तनु वेड्स मनु रिटर्न्स
अवधि-130 मिनट
**** चार स्टार
उत्तर भारत की तहजीब
TWMR में पॉपुलर कल्चर के प्रभाव सिनेमा से ही नहीं लिए गए हैं. उत्तर भारत में प्रचलित ठेठ शब्दों के साथ बहुत हुआ सम्मान तेरी... जैसे मुहावरा बन चुकी पंक्तियों का भी सार्थक इस्तेमाल हुआ है. याद करें तेलहंडा और झंड जैसे शब्द आप ने फिल्मों में सुना था क्या? नहीं न? TWMR हमारे समय की ऐसी फिल्म है, जो उत्तर भारत की तहजीब और तरीके को बगैर संकोच के पेश करती है. इस फिल्म को देखते हुए उत्तर भारत के दर्शक थोड़ा यादा हंसेंगे, क्योंकि शब्द, संवाद और मुहावरे उनकी रोजमर्रा जिंदगी के हैं. शहरी दर्शकों का आनंद अलग होगा. उन्हें हिंदी समाज का भदेसपन हंसाएगा.
काफी विश्वसनीय है दत्तो की कहानी
TWMR सीक्वल है. पहली फिल्म तनु वेड्स मनु की कहानी आगे बढ़ती है. मनु में रितिक रोशन को खोज रही तनु अब उसे फूटी कौड़ी के लायक भी नहीं समझती. बात तलाक तक आ जाती है. काउंसलर के सामने दोनों झगड़ते हैं तो कभी तनु की मांग तो कभी मनु की मजबूरी सही लगती है. स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि दोनों आगे-पीछे भारत लौटते हैं, लेकिन अपने-अपने घरों को. तनु कानपुर में पुराने यारों को खोजती है, जिसमें उसका नया आशिक चिंटू भी शामिल हो जाता है. उधर मनु की मुलाकात दत्तो से होती है. वह दत्तो का दीवाना हो जाता है. तनु से मिले तलाकनामा और दत्तो की दीवानगी में हमें मनु के नए आयाम दिखते हैं. खूब जबरदस्त ड्रामा होता है. थोड़ी देर के लिए लगता है कि लेखक हिमांशु शर्मा दूर की कौड़ी ले तो आए हैं, लेकिन निशाना कैसे साधेंगे? मजेदार है कि फिल्म खत्म होने तक सभी अविश्वसनीय प्रसंग उचित और तार्किक लगने लगते हैं. आप दत्तो और दत्तो के साथ मनु और राजा अवस्थी के संयोगों पर यकीन करने लगते हैं. बधाई हिमांशु.
फिल्म की बुनाई है मजबूत
पहले सहयोगी कलाकारों की बातें कर लें. राजेन्द्र गुप्ता, केके रैना, दीप्ति मिश्रा, नवनी परिहार समेत छोटे बचों ने अपने किरदारों से कहानी में रंग भरे हैं. किसी एक की कमी से कुछ खाली रह जाता. फिर दीपक डोबरियाल, मो. जीशान अय्यूब, जिमी शेरगिल, एजाज खान, स्वरा भास्कर सभी ने अपने एटीट्यूड से कहानी का ऐसा ताना-बाना कसा है कि फिल्म की बुनाई मजबूत और रंगीन हो गई है. दीपक डोबरियाल एक-दो दृश्यों में कुछ ओवर एक्टिंग करते नजर आते हैं. बहकने का खतरा यादा था, जिसे उन्होंने और निर्देशक ने संभाला है. आर माधवन ने मनु के द्वंद्व, स्वभाव और स्वर को सही पकड़ा है. मुश्किल और जटिल दृश्यों में भी वे अपने किरदार को एक्सप्रेशन की आजादी नहीं देते. सब कुछ ऐसा नपा-तुला और संयमित है कि मनोज शर्मा वास्तविक से लगने लगते हैं.उनके वन लाइनर तो मजेदार हैं.
जब आता है नाटकीय मोड़
इस फिल्म का एक नाम तनू मीट्स दत्तो भी हो सकता था. पुरानी कहानी के विस्तार में दत्तो के आगमन से नाटकीय मोड़ आता है. दत्तो दिखने में तनु जैसी है, लेकिन अपने व्यवहार और बात में दोटूक और साफ है. वह तनु की तरह आत्म केंद्रित नहीं है. इसी वजह से वह निर्भीक है. उसे फैसले लेने में देर नहीं लगती. ऊपर से कठोर और अंदर से मुलायम दत्तो बदनाम हरियाणा की नई उम्मीद है. नई लड़की है. लेखक-निर्देशक ने TWMR की नाटकीय प्रेम कहानी में कुछ जरूरी सवालों को भी टच किया है. पटकथा का हिस्सा बना दिया है. दत्तो के किरदार में कंगना रनोट का आत्मविश्वास देखते ही बनता है. कुछ किरदार ऐसे होते हैं कि उन्हें योग्य कलाकारों का समर्थन मिल जाए तो वे यादगार बन जाते हैं. दत्तो ऐसा ही किरदार है. उसे उतनी ही शिद्दत और जान से कंगना रनोट ने पर्दे पर चरितार्थ किया है. कंगना का स्वैगर (इठलाना) अंदाज भाता है. बन्नो तेरा स्वैगर... गाने को ध्यान से सुनें तो दत्तो का चरित्र स्पष्ट हो जाएगा.
फिल्म में गीत-संगीत भावानुकूल हैं. राज शेखर और कृष्णा की जोड़ी एक बार फिर निराले अंदाज में फिल्म की जरूरतें पूरी करती है. मूव ऑन, मत जा में किरदारों की मनोदशा व्यक्त होती है. घणी बावरी और तनु के नृत्य का मेल अनुचित लगता है.
Review by: Ajay Brahmatmaj
abrahmatmaj@mbi.jagran.com
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