ऐसी है कहानी

वेद और तारा वर्तमान पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। परिवार और समाज ने उन्हें एक राह दिखाई है। उस राह पर चलने में ही उनकी कामयाबी मानी जाती है। जिंदगी का यह ढर्रा चाहता है कि सभी एक तरह से रहें और जिएं। शिमला में पैदा और बड़ा हुआ वेद का दिल किस्सों-कहानियों में लगता है। वह बेखुदी में बेपरवाह जीना चाहता है। इसी तलाश में भटकता हुआ वह फ्रांस के कोर्सिका पहुंच गया है। वहां उसकी मुलाकात तारा से होती है। तारा और वेद संयोग से करीब आते हैं, लेकिन वादा करते हैं कि वे एक-दूसरे के बारे में न कुछ पूछेंगे और न बताएंगे। वे झूठ ही बोलेंगे और कोशिश करेंगे कि जिंदगी में फिर कभी नहीं मिलें। वेद की बेफिक्री तारा को भा जाती है। उसकी जिंदगी में बदलाव आता है। उन दोनों के बीच स्पार्क होता है, लेकिन दोनों ही उसे प्यार का नाम नहीं देते।

जब रास्‍ते हो जाते हैं अलग

जिंदगी के सफर में वे अपने रास्तों पर निकल जाते हैं। तारा मोहब्बत की कशिश के साथ लौटती है और वेद जिंदगी की जंग में शामिल हो जाता है। एक अंतराल के बाद फिर से दोनों की मुलाकात होती है। तारा पाती और महसूस करती है कि बेफिक्र वेद जिंदगी की बेचारगी को स्वीकार कर मशीन बन चुका है। वह इस वेद को स्वीकार नहीं पाती। वेद के प्रति अपने कोमल अहसासों को भी वह दबा जाती है। तारा की यह अस्वीकृति वेद को अपने प्रति जागरूक करती है। वह अंदर झांकता है। वह भी महसूस करता है कि प्रोडक्ट मैनेजर बन कर वह दुनिया की खरीद-फरोख्ते की होड़ में शामिल हो चुका है, क्योंकि अभी कंट्री और कंपनी में फर्क करना मुश्किल हो गया है। कंट्री कंपनी बन चुकी हैं और कंपनी कंट्री।

Movie : Tamasha

Director : Imtiaz Ali

Cast : Ranbir Kapoor, Deepika Padukon

movie review : ये चार कारण इस 'तमाशा' को बनाते हैं बेमिसाल

    

कमाल की फिलॉस्‍फी को तोड़ा है

इम्तियाज की ‘तमाशा’ बेमर्जी का काम कर जल्दी से कामयाब और अमीर होने की फिलॉस्‍फी के खिलाफ खड़ी होती है। रोजमर्रा की रुटीन जिंदगी में बंधकर वह बहुत कुछ खो रहे हैं। तारा और वेद की जिंदगी इस बंधन और होड़ से अलग नहीं है। उन्हें इस तरह से ढाला जाता है कि वे खुद की ख्वा्हिशों से ही बेखबर हो जाते हैं। इम्तियाज अली के किरदार उनकी पहले की फिल्मों की तरह ही सफर करते हैं और ठिकाने बदलते हैं। इस यात्रा में मिलते-बिछड़ते और फिर से मिलते हुए उनकी कहानी पूरी होती है। उनके किरदारों में बदलाव आया है, लेकिन शैली और शिल्प में इम्तियाज अधिक भिन्नता नहीं लाते। कलाकरों के आत्म‍संघर्ष को व्‍यक्‍त करने के लिए उन्हें इसकी जरूरत पड़ी है।

रणबीर और दीपिका दोनों ने नहीं किया निराश्‍ा

फिल्म रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के परफॉर्मेंस पर निर्भर करती है। उन दोनों ने कतई निराश नहीं किया है। वे स्क्रिप्टर की मांग के मुताबिक आने दायरे से बाहर निकले हैं और पूरी मेहनत से वेद और तारा को पर्दे पर जीवंत किया है। यह नियमित फिल्म नहीं है, इसलिए उनके अभिनय में अनियमितता आई है। छोटी सी भूमिका में आए इश्त्याक खान याद रह जाते हैं। उनकी मौजूदगी वेद को खोलती और विस्ता‍र देती है। ‘तमाशा’ हिंदी फिल्मों की रेगुलर और औसत प्रेमकहानी नहीं है। इस प्रेमकहानी में चरित्रों का उद्बोधन और उद्घाटन है। वेद और तारा एक-दूसरे की मदद से खुद के करीब आते हैं।   

बेहतरीन है संगीत

फिल्म का गीत-संगीत असरकारी है। इरशाद ने अपने गीतों के जरिए वेद और तारा के मनोभावों को सटीक अभिव्क्ति दी है। एआर रहमान ने पार्श्व संगीत और संगीत में किरदारों की उथल-पुथल को सांगीतिक आधार दिया है। फिल्‍म को बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि कैसे पार्श्वद संगीत कलाकारों परफॉर्मेंस का प्रभाव बढ़ा देता है। तमाशा के गीतों में आए शब्द भाव और अर्थ की गहराई से संपन्न हैं। इरशाद की खूबी को एआर रहमान के संगीत ने खास बना दिया है।

Review By Ajay Brahmatmaj

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