प्यार एहसास मात्र नहीं
दरअसल, ‘प्यार का पंचनामा 2’ स्त्री-पुरुष संबंधों का महानगरीय प्रहसन है। कॉलेज से निकले और नौकरी पाने के पहले के बेराजगार शहरी लड़कों की कहानी लगभग एक सी होती है। उपभोक्ता  संस्कृति के विकास के बाद प्रेम की तलाश में भटकते लड़के और लड़कियों की रुचियों, पसंद और प्राथमिकताओं में काफी बदलाव आ गया है। नजरिया बदला है और संबंध भी बदले हैं। अब प्यार एहसास मात्र नहीं है। प्यार के साथ कई चीजें जुड़ गई हैं। अगर सोच में साम्यम न हो तो असंतुलन बना रहता है। 21 वीं सदी में रिश्तों को संभालने में भावना से अधिक भौतिकता काम आती है। ‘प्यार का पंचनामा 2’ इस नए समाज का विद्रूप चेहरा सामने ले आती है।

Pyaar ka punchnama 2

Director : Luv ranjan
Cast : Kartik Aaryan, Nushrat Bharucha, kartik tiwari, omkar kapoor, sarat saxena
movie review :इन 4 कारणों से देख सकते हैं कॉमेडियन डायलॉग्‍स से भरी फिल्‍म ‘प्यार का पंचनामा 2’



ऐसे दृश्यों में भी हंसी
हालांकि, हम फिल्म  के तीन नायकों के अंशुल,तरुण और सिद्धार्थ के साथ ही चलते हैं, लेकिन बार-बार असहमत भी होते हैं। प्या्र पाने की उनकी बेताबी वाजिब है, लेकिन उनकी हरकतें उम्र और समय के हिसाब से ठीक लगने के बावजूद उचित नहीं हैं। लड़कियों के प्रति उनका रवैया और व्यजवहार हर प्रसंग में असंतुलित ही रहता है। लव रंजन के लिए समस्या रही होगी कि पहली लकीर पर चलते हुए भी कैसे फिल्म को अलग और नया रखा जाए। तीन सालों में समाज में आए ऊपरी बदलावों को तो तड़क-भड़क, वेशभूषा और माहौल से ले आए, लेकिन सोच में उनके किरदार पिछली फिल्म से भी पिछड़ते दिखाई पड़े। हंसी आती है। ऐसे दृश्यों में भी हंसी आती है, जो बेतुके हैं।

देश का यूथ बोल रहा

कुछ–कुछ लतीफों जैसी बात है। आप खाली हों और लतीफेबाजी चल रही हो तो बरबस हंसी आ जाती है। ‘प्यार का पंचनामा 2’ किसी सुने हुए लतीफे जैसी ही हंसी देती है। इस फिल्म के संवाद उल्ले‍खनीय हैं। ऐसी समकालीन मिश्रित भाषा हाल-फिलहाल में किसी अन्य‍ फिल्म में नहीं सुनाई पड़ी। यह आज की भाषा है, जिसे देश का यूथ बोल रहा है। संवाद लेखक ने नए मुहावरों और चुहलबाजियों को बखूबी संवादों में पिरोया है। संवादों में लहरदार प्रवाह है। उन्हेंं सभी कालाकारों ने बहुत अच्छी़ तरह इस्तेमाल किया है। फिल्मउ में अंशुल (कार्तिक आर्यन) का लंबा संवाद ध्या न खींचता है। इस लंबे संवाद में फिल्मक का सार भी है। यकीनन यह फिल्म रोमांटिक कामेडी नहीं है। एक तरह से यह एंटीरोमांटिक हो जाती है।

किरदार को अधिक तवज्जो

तीनों लड़कों ने अपने किरदारों पर मेहनत की है। कार्तिक आर्यन, ओंकार कपूर और सनी सिंह निज्जतर ने कमोबेश एक सा ही परफॉरमेंस किया है। लेखक-निर्देशक ने अंशुल के किरदार को अधिक तवज्जो दी है। कार्तिक आर्यन इस तवज्‍जो को जाया नहीं होने दिया है। ओंकार कपूर अपने लुक और शरीर की वजह से हॉट अवतार में दिखे हें। सनी सिंह निज्जरर ने लूजर किस्मज के किरदार को अच्छीं तरह निभाया है। तीनों लड़कियां न होतीं तो इन लड़कों के संस्का र और व्यावहार न दिखते। ये लड़कियां भी इसी समाज की हैं। उनकी असुरक्षा, अनिश्चितता और लापरवाही को उनके संदर्भ से समझें तो लड़के गलत ही नहीं मूर्ख भी दिखेंगे। अच्छा हो कि कोई निर्देशक लड़कियों के दृष्टिकोण से ‘प्या‍र का पंचनामा 3’ बनाए?

Review by: Ajay Brahmatmaj
abrahmatmaj@mbi.jagran.com

inextlive from Bollywood News Desk

Bollywood News inextlive from Bollywood News Desk