विश्वास जीतने वाला होता है गुरू पैसा जीतने वाला नहीं
फिल्म ग्लोबल बाबा जहा खत्म होती है वहां स्क्रीन पर एक वाक्य चमकता है कि धर्मगुरुओ को अपना ट्रस्ट (विश्वास) अर्जित करने दीजिए,आपके ट्रस्ट (धन) से अर्जित मत करने दीजिए। यही इस फिल्म की कहानी में छुपा विचार है। हालाकि इस तरह की कहानी कई फिल्मों में दिखाई जा चुकी है पर ग्लोबल बाबा का प्रस्तुतिकरण वाकई सराहनीय है।
Global Baba
U; Satire
Director: Manoj Tiwari
Cast: Sanjay Mishra, Ravi Kishan, Abhimanyu Singh, Pankaj Tripathi
अपराधी के बाबा बनने की दास्तान
फिल्म की शुरूआत होती है चिलम पहलवान (अभिमन्यु सिंह) नामक एक बदमाश और एक इंस्पेक्टर पी. सी. जैकब (रवि किशन) की बातचीत से जहां जैकब, पहलवान का एन्काउंटर करने की तैयारी में है। गोली लगने पर पहलवान नदी में कूद जाता है और कुछ साधुओं के हाथ लग जाता है। साधु उसकी जान बचा लेते हैं। बऔर यहां से शुरू होती है फिल्म की असली कहानी। मौनी बाबा उर्फ डमरू (पंकज त्रिपाठी) उसे ये गुंडागर्दी छोड़ बाबा बनने की सलाह देता है और ले जाता उसे कबीरगंज नामक एक छोटे शहर में। दोनों यहां अपना धंधा जमाने लगते हैं। अब पहलवान, ग्लोबल बाबा के नाम से मशहूर हो जाता है।
धर्म का फलता व्यवसाय
अपने आश्रम के लिए ग्लोबल बाबा आदिवासियों के लिए आबंटित एक जमीन हथिया लेता है, जिसके खिलाफ इलाके के एक समाजसेवी भोला पंडित (संजय मिश्रा) आवाज उठाता है। ग्लोबल बाबा का का बढ़ता वर्चस्व स्थानीय नेता गुल्लू यादव (अखिलेन्द्र मिश्रा) के लिए खतरा बन जाता है। इसलिए अपनी सत्ता बचाने की खातिर गुल्लू यादव अपने चैनल की एक रिपोर्टर भावना शर्मा (संदीपा धर) को ग्लोबल बाबा के आश्रम की पोल-पट्टी खोलने के लिए भेजता है। इसी दौरान जैकब भी कबीरगंज आ जाता है और पहलवान को पहचान जाता है। इस बीच ग्लोबल बाबा को आगामी चुनाव में उम्मीदवारी मिल जाती है। कई स्तरों पर सत्ता, पावर और धर्म की जंग शुरू हो जाती है भावना बाबा के काले कारनामों की पोल सार्वजनिक मंच पर खोलने की तैयारी करती है लेकिन ऐन मौके पर ग्लोबल बाबा को सारी साजिश का पता चल जाता है और वो बड़ी होशियारी से अपना आखिरी दांव खेल जाता है।
फिल्म में हर किसी ने अपने किरदार के साथ पूरी ईमानदारी बरती है। किसी एक को कमजोर और ज्यादा बेहतर कहना मुश्किल है। संवाद प्रभावी हैं और निर्देशन कसा हुआ है। ऐसे में बड़े बैनर की फिल्मों के बीच ग्लोबल बाबा देखने का आपका निर्णय गलत साबित नहीं होगा। फिल्म का एक ही कमजोर पक्ष है संगीत जो बहुत असर नहीं छोड़ता है।
Review by: Shubha Shetty Saha
shubha.shetty@mid-day.com
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