कहानी
नूर की ज़िन्दगी बिलकुल पेज ३ की कोंकना जैसी है, (नूर की ज़िन्दगी थोड़ी ज्यादा कॉमिक है ) वो रियल जर्नालिस्म करना चाहती है पर उसका बॉस उससे एंटरटेनमेंट बीट पे काम कराना चाहता है। नूर एक बड़ी क्राइम स्टोरी ब्रेक करती है, जिससे वो एक बड़ी मुसीबत में फँस जाती है और उसे जर्नालिस्म की रियलिटी से रूबरू कराती है, ये सब नूर कैसे डील करती है पता लगाने के लिए देख सकते हैं नूर।
नूर
डायरेक्टर: सुनहिल सिप्पी
स्टार : सोनाक्षी सिन्हा, कनन गिल, मनीष चौधरी, पूरब कोहली, शिबानी दांडेकर, स्मिता ताम्बे
रेटिंग: ***
कथा, पटकथा और निर्देशन
कहानी की बात करें तो कहानी बिलकुल भी खराब नहीं है, कहानी में काफी वज़न है और आज कल की एंटरटेनमेंट सेंट्रिक जर्नलिज्म पर सीधा कटाक्ष करती है, देश की अंदरूनी समस्या और खराब कानून व्यवस्था की एक झलक भी दिखाती है। अपनी डल और रूटीन लाइफ से उकता गई नूर की ज़िन्दगी में जब ये सच्चियां आती हैं तो वो इसे कैसे अंजाम तक पहुंचाती है, ये सब ऑन पेपर काफी दिलचस्प हो सकता था।।।! पर ऐसा पूरी तरह हो नहीं पाता, फिल्म काफी हिस्सों में काफी स्लो और बोर हो जाती है, वो भी तब जब नूर के करैक्टर में ही काफी एंटरटेनिंग एलेमेंट्स भरे पड़े हुए हैं, 'रम'ती जोगन नूर के साथ उसके दोस्तों के रोमंचंक किरदार भी फिल्म को एंटरटेनिंग नहीं बना पाते, कुल मिलाकर बोला जाए तो फिल्म की स्क्रीनप्ले राइटिंग बेहतर और कासी हुई हो सकती थी। फिल्म का डायरेक्शन ठीक ठाक है, बहुत अच्छा नहीं तो बहुत बुरा भी नहीं है। फिल्म के बाकी तकनिकी डिपार्टमेंट (एडिटिंग छोड़ कर) काफी अच्छे हैं, फिल्म की एडिटिंग बेहतर हो सकती हो सकती है।
इस फिल्म का अंत काफी अच्छा है, इसलिए जब आप हाल से बाहर निकलेंगे तो आप मायूस होकर नहीं जाएंगे, यही इस फिल्म का एक हाई पॉइंट है
अदाकारी
यूँ तो अब सोनाक्षी को बॉलीवुड में काफी बरस हो चुके हैं, पर अब तक उन्हें एक ऐसा रोल नहीं मिला जो उनके लिए लिखा गया हो, हमेशा ही वो स्टार्स की छाया में खोयी सी रही हैं, अकिरा वो फिल्म हो सकती थी, पर उस फिल्म में उनका किरदार इतना इललॉजिकल था की लोगों के गले नहीं उतरा।
इस फिल्म में ऐसा नहीं है। इस फिल्म का किरदार सोनाक्षी को 100% सूट करता है और जिस लिहाज़ से सोनाक्षी ने इसे निभाया है उस लिहाज़ से ये फिल्म उनकी अब तक ही सबसे अच्छी फिल्म है। आप नूर के किरदार से रिलेट कर सकेंगे। फिल्म के बाकी सभी किरदार भी अच्छे अभिनेता हैं, और अपना अपना काम बखूभी करते हैं, खासकर पूरब कोहली, शिबानी दांडेकर और स्मिता ताम्बे।
संगीत
फिल्म का संगीत अच्छा है और फिल्म के फ्लो कोई नुक्सान नहीं पहुंचता। फिल्म का पार्श्वसंगीत भी अच्छा है।
इस बार किसी और वजह के लिए नहीं, ये फिल्म आप सोनाक्षी सिन्हा की खातिर जाकर देख कर आइये, आप समझ जाएंगे की अगर एक अच्छी कहानी मिल जाए तो एक अदाकारा अकेले ही फिल्म की खामियां ढँक सकती है और फिल्म को अकेले अपने कधों पर ढो सकती है। हैट्स ऑफ टू सोनाक्षी।
Review by : Yohaann Bhaargava
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इनकी वजह से बाहुबली फिल्म देखने गए थे लाखों लोग
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