सुपवित्र बाबुल की लिखी और डायरेक्ट की हुई यह मूवी उस इंसान के वीडियो जैसी है जो जिंदगी में कुछ बडा करना चाहता है. किस्मत की बात यह है कि उसकी अंतरात्मा जो वह चाहता है उसे हासिल करने के लिए एक सीमा से नीचे नहीं गिरने देती.
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हालांकि इन दोनों के बीच बैलेंस बनाना बेहद मुश्किल काम है. स्टोरीलाइन आनंदपुर से चलकर दिल्ली होते हुए शिमला और वापस जहां से शुरू हुई थी वहीं पहुंच जाती है. इस सबके बीच उसका पेस एक जैसा रहता है.
स्क्रीरनप्ले में ज्या दा जान नहीं है और डायलॉग भुलाने लायक हैं. म्यूजिक जरूर बढिया और इमोशंस से कनेक्ट करने वाला है.
बिटटू के रोल में नजर आने वाले पुलकित सम्राट इससे बेहतर डेब्यू की उम्मी्द नहीं कर सकते थे, आखिरी बार वह एक सास बहू वाले सोप में नजर आए थे. उनमें उम्मीद नजर आती है और साथी कलाकारों की तुलना में ओवरएक्टिंग से बचते नजर आए.
बिटटू का दिल चुराने वाली अमिता पाठक अपनी छाप छोड पाने में नाकामयाब रहीं. वह मूवी के प्रोडयूसर कुमार मंगत की बेटी हैं.
एक और डेब्यू एक्टर अशोक पाठक का जिक्र किया जाना लाजिमी है जो बिटटू के दोस्त की भूमिका में नजर आए. अपने ह़यूमर से वह लोगों के चेहरे पर खिलखिलाहट लाने में कामयाब रहे.
बिटटू बॉस कई मायनों में बैंड बाजा बारात की याद दिलाती है. हालांकि इसे कांप्लीमेंट के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. एंटरटेनमेंट के मामले में मूवी बेहतर कर सकती थी.
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