मुझे यह तलाशने के लिए घाना के बहुत अंदर नहीं जाना पड़ा। घाना की राजधानी अकरा में रहते हैं करीम मोहम्मद। 45 साल के करीम पेशे से दर्जी हैं जो गद्दाफ़ी की मौत से पहले तीन साल तक लीबिया में रह चुके हैं।

करीम शादीशुदा हैं और उनके तीन बच्चे भी हैं। वे छह बेडरूम वाले मकान में रहते हैं। ये मकान इन्होंने लीबिया में कमाए पैसों से बनाया है।

गद्दाफ़ी को आज भी मसीहा क्यों मानते हैं लोग?

उन्होंने बताया, "लीबिया में हर कोई ख़ुश था। अमरीका में लोग पुलों के नीचे सोते हैं लेकिन लीबिया में कोई सड़क पर, पुल के नीचे नहीं सोता था। कोई भेदभाव नहीं था, कोई समस्या नहीं थी। वहां अच्छे काम का अच्छा पैसा मिलता था। मेरे जीवन पर गद्दाफ़ी का एहसान है। वे अफ़्रीका के मसीहा थे।"

घाना में गद्दाफ़ी के बारे में ऐसी राय रखने वाले करीम अकेले नहीं है। इस बातचीत के दौरान ही दो अन्य लोग चर्चा में शामिल हो गए।

35 साल के एक युवा कंस्ट्रक्शन वर्कर मुस्तफ़ा आब्देल मोमिन सात सालों तक लीबिया में रहकर आए हैं। वे कहते हैं, "गद्दाफ़ी एक शानदार शख़्स थे। उन्होंने कभी किसी को धोखा नहीं दिया। वे परफैक्ट थे और बेहतरीन थे।"

वहीं गोल टोपी लगाए स्थानीय इमाम इलियास याह्या अपनी ज़ोरदार आवाज़ में कहते हैं, "उनको मारने का क्या तुक था। आपने किसी की हत्या समस्या हल करने के नाम पर की। और अब समस्या ज़्यादा बिगड़ गई है। तो गद्दाफ़ी को क्यों मारा?"

हो सकता है कि गद्दाफ़ी एक तानाशाह शासक रहे हों, लेकिन उन्होंने लीबिया को स्थायित्व दिया, वहां काम के मौके मुहैया कराए और वहां आकर बहुत सारे लोगों को काम करने दिया।

अफ़्रीका में दसियों हज़ार ऐसे लोग हैं जिन्होंने लीबिया में काम करके पैसे कमाए और अपने परिवार की गरीबी दूर की।

गद्दाफ़ी को आज भी मसीहा क्यों मानते हैं लोग?

अकरा के उत्तर में शहर है लीबियाई क्वार्टर। यहां ज़्यादातर वैसे लोग रहते हैं जिन्होंने गद्दाफ़ी के शासन के दिनों में पैसे कमाए हैं।

ऐसे लोगों में हैं शेख़ सवाला। जिनका घर दूर से किसी आलीशान कोठी की तरह नज़र आता है। उन्होंने लीबिया में कमाए पैसों से अपने देश में कई कामयाब उद्यम शुरू किए हैं. उनके मकान में 30 बेडरूम हैं। ज़ाहिर है गद्दाफ़ी के बिना वे ऐसा घर शायद ही बना पाते।

हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका घर गद्दाफ़ी की मौत तक आधा ही बना हुआ था, ऐसे घर आज भी आधे अधूरे नज़र आते हैं। 36 साल के अमाडू से भी मुलाकात होती है।

संकोची अमाडू अपनी कहानी बताते हैं कि उनके पास लीबिया में काम करने का उपयुक्त वीज़ा नहीं था. 2010 में वे अपने कुछ दोस्तों के साथ सहारा रेगिस्तान के रास्ते लीबिया पहुंचे थे। इस दौरान उनके पास पानी ख़त्म हो गया और उनके कई दोस्तों की मौत भी हो गई थी।

लेकिन अमाडू लीबिया पहुंचने में कामयाब रहे और उन्हें वहां टाइल्स लगाने का काम भी मिल गया।

2011 में जब युद्ध शुरू हुआ तब अमाडू के पास करीब साढ़े तीन हज़ार डॉलर जमा हो चुके थे। लेकिन गोलीबारी के समय मे वे अपना सबकुछ छोड़कर किसी तरह घाना पहुंच पाए. गद्दाफ़ी की मौत के बाद उनके सपने बिखर गए हैं।

गद्दाफ़ी को आज भी मसीहा क्यों मानते हैं लोग?

मुस्तफ़ा कहते हैं, "घाना के युवाओं के लिए यहां कुछ नहीं बचा है। गद्दाफ़ी के बाद हमलोग काफ़ी संकट में हैं। युवाओं में बेरोजगारी काफ़ी बढ़ गई है, हमलोगों के पास करने के कुछ नहीं हैं. जीने के लिए हमें या तो अपराध का रास्ता चुनना होगा या फिर हमें यूरोप जाने की कोशिश करनी होगी।"

दूसरे भी इससे सहमति जताते हैं। इलियास कहते हैं, "अब हमें यूरोप, यूरोप, यूरोप ही जाना होगा। कुछ लोग ब्राज़ील जा रहे हैं, वह ये खर्च उठा सकते हैं। नहीं तो हर कोई यूरोप जाना चाहता है।"

गद्दाफ़ी ने अपनी मौत से पहले ही यूरोपीय यूनियन को आगाह किया था कि अगर उनकी सरकार गिर गई तो कम से कम बीस लाख अप्रवासी लोग यूरोप का रुख करेंगे और यूरोपीय देशों के लिए मुश्किलें पैदा होंगी।

हो सकता है कि गद्दाफ़ी मसीहा कम और कठोर शासक ज़्यादा रहे हों, लेकिन ऐसा लगता है कि यूरोप के बारे में वो सही थे।

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