तकनीक की मदद से रुकेगी घुसपैठ

भारत-पाकिस्तान की सीमा पर ऊंचे पहाड़ों से लेकर नदी और रेगिस्तान भी हैं। ऐसे में इस सीमा की हर जगह से सुरक्षा करना बेहद मुश्किल है। इसीलिए, बीएसएफ आधुनिक तकनीक की मदद से भारत-पाकिस्तान सीमा स्मार्ट बाड़ पर एक ही जगह से पूरी निगरानी के बारे में विचार कर रही है।

बीएसएफ का कहना है कि इस तकनीक से सीमा पर निगरानी को और भी मज़बूत बनाया जा सकता है।

बीएसएफ़ की तकनीकी मदद करने वाली कंपनी क्रॉन सिस्टम्स के सीईओ तुषार छाबड़ा ने इस मुद्दे पर बीबीसी से बात की।

वे कहते हैं, "हम दो सालों से बीएसएफ़ को तकनीक मुहैया करवा रहे हैं। लेकिन सुरक्षा कारणों से उसकी जानकारी हम साझा नहीं कर सकते। सीमा की सुरक्षा के लिए हम काफ़ी स्मार्ट उपकरण तैयार कर रहे हैं। हमारे अलावा टाटा और भेल जैसी संस्थाएं भी बीएसएफ़ को तकनीकी सहयोग दे रही हैं।"

स्मार्ट तकनीक के ज़रिए भारत-पाक सीमा के चप्पे-चप्पे पर नजर

 

जयपुर के सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज़ के राज कुमार अरोड़ा और मनोज कुमार ने शोध के आधार पर एक रिपोर्ट को पेश किया है। इसमें बाड़ और इससे होने वाले लाभों का जिक्र है।

राज कुमार अरोड़ा कश्मीर में घुसपैठ के रोकथाम के क्षेत्र में 9 साल तक काम कर चुके हैं। वहीं, मनोज कुमार भी पश्चिमी सीमा राज्यों में सीमा प्रबंधन में 16 साल तक काम कर चुके हैं।

आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने इस के बारे मे विवरण बताया है। इस विवरणों के आधार पर यह स्मार्ट बाड़ ऐसी है।

स्मार्ट बाड़ का विचार 2015 में पैदा हुआ। पठानकोट एयरबेस पर चरमपंथी हमले के बाद कंप्रेहेंसिव इंटेग्रेटेड बॉर्डर मेनेजमेंट की अवधारणा को सामने लाया गया।

बीते बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बीएसएफ के डीजी के के शर्मा ने कहा, "सीमा को मजबूत करने के लिए कंप्रिहेंसिव इंटिग्रेटेड बॉर्डर मेनेजमेंट को अमल में ला रहे हैं। इस समय उस पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत अमल हो रहा है। अगले साल मार्च तक इसे जम्मू सेक्टर पर लगा दिया जाएगा।"

स्मार्ट तकनीक के ज़रिए भारत-पाक सीमा के चप्पे-चप्पे पर नजर


भारत - पाकिस्तान सीमा

पूरा बॉर्डर 3,323 किलोमीटर से अधिक है

रोड क्लिफ लाइन 2308 किलोमीटर (गुजरात और जम्मू के कुछ क्षेत्रों से)

नियंत्रण रेखा 776 किलोमीटर (जम्मू में)

ग्राउंड पोज़िशन लाइन 110 किलोमीटर

स्मार्ट तकनीक के ज़रिए भारत-पाक सीमा के चप्पे-चप्पे पर नजर

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यह बाड़ क्यों?

पाकिस्तान से घुसपैठ को रोकने के लिए

सीमा पर तस्करी और हथियारों की सप्लाई को रोकने के लिए

ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाने के लिए

ऐसी होगी स्मार्ट बाड़

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बाड़ का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक निगरानी वाले उपकरणों से किया जाएगा।

इनमें नाइट विज़न उपकरण, हैंड-हेल्ड थर्मल इमेजर्स, बैटिल फ़ील्ड सर्वीलेन्स राडार आदि होंगे। इसके साथ ही डाइरेक्शन फाइंडर, ग्राउंड सेन्सर, हाई पावर टेलिस्कोप आदि भी होंगे।

और, सीसीटीवी कैमरे, लेज़र दीवारों का भी निर्माण होगा।

अगर कोई भी बाड़ के नज़दीक आएगा तो तुरंत ही इसकी जानकारी सेंट्रल सर्विलेन्स सिस्टम को मिल जाएगी।

जो सरहद पर हैं उनकी चिंताएं कुछ और

चूंकि यह पूरी व्यवस्था एक दूसरे से जुड़कर रहेगी, इसलिए एक उपकरण नाकाम भी होगा तो अन्य उपकरणों के जरिए सेंट्रल सर्विलेन्स व्यवस्था को चेतावनी पहुंच जाएगी।

पाकिस्तान की सीमा पर 130 बाड़ रहित इलाकों में लेज़र दीवारें बनाई जाएंगीं।

स्मार्ट तकनीक के ज़रिए भारत-पाक सीमा के चप्पे-चप्पे पर नजर

 

ये ज़्यादातर नदियों और पर्वतों पर होंगी। कुल 2900 कि।मी। तक लेज़र दीवारें खड़ी की जा सकती हैं।

स्मार्ट बाड़ के लिए आवश्यक तकनीक ज़्यादातर विदेशों से आयातित की जाएगी। कुछ को बीएसएफ़ खुद भी विकसित कर रही है।

भेल, टाटा, क्रॉन जैसी संस्थाएँ भी उपकरण और तकनीक मुहैया करवा रही हैं।

ड्रोन और मानवरहित वाहन भी!

बीएसएफ़ ने 3डी आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र भी इंस्टाल कर रखा है। यह अलग-अलग इलाकों से 3D तस्वीरें और अन्य सूचना एकत्रित करता है।

इनसे उपग्रहीय तस्वीरों को जोड़ने से इन इलाकों से संबंधित जानकारी बीएसएफ़ के मुख्यालयों से भी प्राप्त करने की सुविधा होगी।

ड्रोन और मानवरहित वाहनों को सीमा पर तैनात करने में इस व्यवस्था से मदद मिलेगी।

360 डिग्री निगरानी

स्मार्ट बाड़ के तहत लगाए जाने वाले राडार 360 डिग्री, यानी चौतरफ़ा निगरानी रखी जाएगी।

इसके कारण कोई भी राडार से बच नहीं सकेगा। इसके साथ ही कैमरे भी लगातार काम करते रहेंगे।

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स्मार्ट तकनीक के ज़रिए भारत-पाक सीमा के चप्पे-चप्पे पर नजर

 

लेज़र दीवारें

घुसपैठ के अनुकूल माने जाने वाले 40 असुरक्षित इलाकों में लेज़र दीवारें बनाई जाएंगी।

नदियों के पास भी इनका निर्माण होगा। लेज़र दीवार के बीच कोई भी आता है तो सेंसर और डिटेक्टर तुरंत ही हरकत में आ जाते हैं और चेतावनी के तौर पर सायरन बजा देते हैं।

इन चेतावनियों के आधार पर सुरक्षा बल वहां जाकर ज़रूरी क़दम उठाएंगे।

फ़िलहाल, बीएसएफ़ ने पांच जगहों पर इस तरह की लेज़र दीवारों का निर्माण किया है।

इन दीवारों में फाइबर ऑप्टिक्स कम्युनिकेशन का भी उपयोग किया जाएगा। लेज़र दीवारें, थर्मल इमेजिंग रडार, सेंसर और स्कैनर के आधार पर काम करेंगे।

क्या हैं इस परियोजना की चुनौतियाँ

विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्मार्ट फेन्सिंग हमारे लिए उतना कारगर नहीं होगा।

उनका कहना है कि हज़ारों किलोमीटर तक फैली सीमा पर इस व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करना मुश्किल है।

वो बताते हैं कि सुरक्षा बलों को पर्याप्त ट्रेनिंग देने से ही फ़ायदा होगा। इस तरह की अत्याधुनिक व्यवस्था के अमल की राह में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी एक बाधा होगी।

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इसराइल में सफल हो चुका है ये प्रयोग

इस तरह की स्मार्ट बाड़ इजराइल में भी है। लेकिन वहां पर सरहद सिर्फ 200 किलोमीटर है। सरहद से थोड़ी दूर में उपकरण बनाने वाली यूनिटें हैं।

इससे फ़ायदा यह होगा कि कोई उपकरण ख़राब होगा तो जल्दी से सुधारा जाएगा। भारत में ऐसा नहीं होगा।

राजकुमार अरोड़ा का कहना है कि सीमा की लंबाई ज़्यादा होने के कारण और तकनीकी के लिए इसराइल और अन्य दूसरे देशों पर निर्भर रहने के कारण इसके अमल की राह में कई दिक्कतें हैं।

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