मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ और मूंग की रोटी दाल का एक बार भोजन करके एकादशी को प्रातः स्नान आदि करके उपवास रखें। भगवान् का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एकभुक्त पारण करें। इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश किया था। अतः उस दिन गीता,श्रीकृष्ण, व्यास आदि की पूजा करके गीता- जयन्ती का उत्सव मनाना चाहिए। विश्व के किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के किसी भी ग्रन्थ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता पर श्रीमद्भगवद्गीता की जयन्ती मनायी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य ग्रन्थ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किये गये हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान् के श्रीमुख से हुआ है-
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
गीता जयंती के दिन गीता अमृत
गीता एक सार्वभौम ग्रन्थ है। यह किसी देश, काल, सम्प्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं है अपितु सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीभगवान् अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है, इसलिए इस ग्रन्थ में कहीं भी 'श्रीकृष्ण उवाच' शब्द नहीं आया है बल्कि 'श्रीभगवानुवाच' का प्रयोग किया गया है। जिस प्रकार गाय के दूध को बछड़े के बाद सभी धर्म, सम्प्रदाय के लोग पान करते हैं, उसी प्रकार यह गीता ग्रन्थ भी सबके लिए जीवनपाथेय स्वरूप है। सभी उपनिषदों का सार ही गोस्वरूप गीता माता हैं, इसे दुहने वाले गोपाल श्रीकृष्ण हैं, अर्जुनरूपी बछड़े के पीने से निकलने वाला महान् अमृत सदृश दूध ही गीतामृत है-
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
इस बात का बोध कराना गीता का लक्ष्य
इस प्रकार वेदों और उपनिषदों का सार, इस लोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म, ज्ञान और भक्ति- तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य के परम श्रेय के साधन का उपदेश करने वाला यह अद्भुत ग्रन्थ है। इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों मे इतना सत्य, इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गम्भीर सात्विक उपदेश भरें हैं जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठा देने की शक्ति रखते हैं। मनुष्य का कर्तव्य क्या है? इसका बोध कराना गीता का लक्ष्य है। गीता सर्वशास्त्रमयी है। योगेश्वर श्रीकृष्ण जी ने किसी धर्म विशेष के लिये नहीं अपितु मनुष्य मात्र के लिए उपदेश किये हैं- कर्म करो, कर्म करना कर्तव्य है पर यह कर्म निष्काम भाव से होना चाहिए।
गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, जीवन जीने की शिक्षा देती है। केवल इस एक श्लोक के उदाहरण से ही इसे अच्छे प्रकार से समझा जा सकता है-
सुखदुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।
हम बड़े भाग्यवान हैं कि हमें संसार के घोर अन्धकार से भरे घने मार्गों में प्रकाश दिखाने वाला यह छोटा किन्तु अक्षय स्नेहपूर्ण धर्मदीप प्राप्त हुआ है। अतः हमारा भी यह धर्म कर्तव्य है कि हम इसके लाभ को मनुष्य मात्र तक पहुंचाने का सतत प्रयास करें। इसी निमित्त गीता जयन्ती का महापर्व मनाया जाता है।
-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र