बात जुलाई 1911 की है. उस वक्त देश पर ब्रिटिश का राज था. कोलकाता से देश की राजधानी दिल्ली शिफ्ट हुई थी. इसी साल एक फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया. मैच में मोहन बगान और ब्रिटिश ईस्ट यॉर्कशायर रेजीमेंट टीम आमने-सामने थी. मौका था इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन (आईएफए) टूर्नामेंट. शिल्ड हासिल करने के लिए मैच में मोहन बागन के खिलाड़ियों ने जान लगा दी और शिल्ड जीतकर इतिहास रच दिया.
यह वही दौर था जब फुटबॉल का जुनून लोगों के सिर चढ़ रहा था. यंग जेनरेशन इस खेल के दीवाने थे. अब जरा एक नजर दौड़ाते हैं 20 वीं सेंचुरी के फुटबॉल पर और पता करते हैं कि यह खेल किस कदर हर एक जहन में अपनी पैठ बनाने में जुटा था. उस वक्त स्कूलों में सबसे अधिक यदि किसी खेल पर ध्यान दिया जाता था तो वह था फुटबॉल. अंग्रेज ऑफिसर्स के बच्चे यह खेल खेला करते थे. कहा जाता है कि उस वक्त डिप्लोमेसी, ट्रेड और वॉरफेयर के साथ-साथ फुटबॉल भी जुड़ गया था.
मोहन बगान का कारनाम
वह मानसून का वक्त था. कूच बिहार कप और ग्लेड सोटन कप अपने नाम करने वाली मोहन बगान क्लब की नजर आईएफए शिल्ड पर थी. 29 जुलाई 1911 की शाम मोहन बगान के लिए खास होने जा रही थी. वह इतिहास के सुनहरे पन्ने में खुद को उकेरने जा रही थी. शाम 5.30 बजे से मैच शुरु हुआ. पूरा बंगाल मैच देखने मशहूर मैदान पहुंचा हुआ था. मोहन बगान के कप्तान सिवदास भादुरी की धड़कनें बढ़ती जा रही थी लेकिन उन्हें शायद पता था कि उनकी टीम आज इतिहास रचेगी. पहले पचास मिनट में ही मोहन बगान ने ब्रिटिश टीम को धूल चटाकर रख दिया.
एक नजर 1911 टीम के महारथियों पर
Rajen Sengupta, Neelmadhab Bhattacharya, Heeralal Mukherjee, Manmohan Mukherjee, the reverend Sudhir Chatterjee and Bhuti Sukul, and (sitting, from left) Kanu Roy, Habul Sarkar, Abhilash Ghosh, Bijoydas Bhaduri and Shibdas Bhaduri.मोहन बगान क्लब में इन खिलाड़ियों की तस्वीरें रखी गई है, आखिर इन सबने ही बगान को महान बनाया है. सलाम इन खिलाडियों को.