जनवरी के बाद दिए गए नरेंद्र मोदी के बयानों और भाषणों के विश्लेषण से पता चलता है कि उन्होंने अपना फ़ोकस चुनाव प्रचार के बीच ज़रूरत के हिसाब से बदला.
मार्च के मध्य तक उनके भाषणों में अन्य किसी शब्द की तुलना में 'विकास' और 'भारत' शब्द अधिक आए.
नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की 'विकासवादी', 'युवा समर्थक' और 'स्वच्छ शासन' की नीतियों का ज़िक्र अपने भाषण में कई बार किया.
उन्होंने मतदाताओं से कहा कि अगर देश के प्रधानमंत्री चुने गए तो वे गुजरात राज्य की सर्वोत्तम नीतियों को राष्ट्रीय स्तर पर दोहराएँगे.
अप्रैल-मई में उन्होंने एक समुदाय, एक क्षेत्र से जुड़े मसलों को उठाया और विकास के गुजरात मॉडल की चर्चा करते रहे. अप्रैल में उनका ध्यान उत्तर प्रदेश पर केंद्रित हो गया जहाँ 80 संसदीय सीटें हैं.
मोदी के भाषण में मार्च तक इस्तेमाल हुए शब्दों का 'साउंडक्लाउड'
विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने मोदी को वाराणसी से लड़ाने का फ़ैसला उनकी लोकप्रियता को भुनाते हुए प्रदेश के अधिक से अधिक सीटें जीतने के उद्देश्य से किया.
मोदी अपनी रैलियों में उत्तर प्रदेश और वाराणसी को लेकर अपनी सोच की बात करते रहे और उन्होंने मतदाताओं से कहा कि राज्य के 'विकास' के लिए 'रोजगार' पैदा करना जरूरी है.
देश के अन्य राज्यों में भी उन्होंने अपने भाषणों में विकास पर ज़ोर दिया लेकिन पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्व के राज्यों में उन्होंने विदेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया.
उन्होंने भारत में अवैध तरीक़े से बांग्लादेश से आने वाले लोगों का ज़िक्र किया, और वादा किया कि अगर वो सत्ता में आए तो इस समस्या को सुलझाएंगे.
बदलते मुद्दे
अप्रैल में मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी पर हमले तेज़ कर दिए. कांग्रेस सरकार के लिए उन्होंने अपने भाषणों में अक्सर ' माँ-बेटे की सरकार' जैसे जुमले का प्रयोग किया. उन्होंने कहा कि मां-बेटे की सरकार 16 मई के बाद ख़त्म हो जाएगी.
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहाँ दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अच्छी-ख़ासी आबादी है वहाँ मोदी ने अपनी 'जाति' के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि वो अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं, इसलिए कुछ लोग उनको सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं.
मार्च तक वो अपनी जाति बताने से बचते रहे थे और अपना ध्यान विकास और आर्थिक सुधारों पर लगाया हुआ था.
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