कहानी

एक कपल की बच्ची खो गई है और उसको ढूंढने की जद्दोजहद है फिल्म की कहानी।

समीक्षा  

उफ तौबा, इस हफ्ते दोनों की दोनों फिल्में अपनी अपनी ओपोर्चुनिटी को मिस कर गईं हैं। इस फिल्म में भी पूरी हैसियत थी कि ये एक जबरदस्त क्राइम थ्रिलर बन सकती थी अफसोस पर नहीं बन पाती। क्यों? क्योंकि फिल्म शुरवात से लेकर अंत तक बेहद खराब लिखी हुई है। फिल्म के डायलॉग तो कहीं-कहीं पे इतने खराब है कि पता ही नहीं चल पाता कि ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि इतने दिग्गज कलाकारों को इतनी बेकार स्क्रिप्ट पे फिल्म साइन करनी पड़ी। फिल्म में कुछ ट्विस्ट और टर्न हैं पर सबके सब वेस्ट हो जाते है क्योंकि आप पहले सीन से ही फिल्म में इनवेस्टेड नहीं हो पाते। फिल्म की एडिटिंग भी भगवान भरोसे फिल्म को भटकाए जाती है। जहां ऐसी फिल्म लॉजिकली ऑप्ट होनी चाहिए वहीं ये फिल्म आपकी इस लिहाज से आपके 'सेंस ऑफ सेंस' का फुल ऑन इम्तेहान लेती है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और फिल्म का पार्श्वसंगीत फिल्म का सेविंग ग्रेस है।

अदाकारी

इस बार तो मनोज वाजपेयी भी ऐसे दिखाई दिए जैसे उनसे बंदूक की नोक जबरन कोई एक्ट करवा रहा हो। या तो ये बुरे लिखे डाइलॉग का कमाल है या तो फिर अन्नू कपूर साहब फिल्म की चुटकी लेने के मूड में थे। वो ऐसे साउंड करते हैं जैसे किसी मुशायरे में आय हों। तब्बू अकेले पूरी फिल्म को अपने मजबूत कंधों पर ढोने की कोशिश करती हैं और सिर्फ वही हैं जिनकी वजह से थोड़ा बहुत आप फिल्म में मन लगा पाते हैं।

वर्डिक्ट

न तो इस फिल्म में सस्पेंस है और न ही थ्रिल। ये एक सस्पेंस फिल्म होने का भ्रम पैदा करती है पर ये फिल्म ही नहीं है क्योंकि इसमें से थ्रॉलिंग कहानी ही मिसिंग है। कुल मिलाकर तब्बू के अलावा कोई ऐसी वजह नहीं जिस कारण आप अपने आप पे ये अत्याचार न करें। इनफैक्ट अगर आप अन्नू जी, मनोज जी और तब्बू के बड़े वाले भक्त हैं तो ये फिल्म बिल्कुल भी जाने का प्रयास न करें।

Rating : 1.5 स्टार

Yohaann Bhaargava

Twitter : yohaannn

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