मेरठ (ब्यूरो)। याद करिए तो कारगिल वार के दो दशक से ज्यादा बीत गए हैं, बावजूद इसके, शहीद सैनिकों के परिवारों का दर्द आज भी ताजा है। देश के वीर शहीदों के तिरंगे में लिपटे शवों को देखते ही हर देशवासी के दिलों में देशप्रेम तो उमड़ता ही है साथ ही देश पर कुर्बान होने पर उनकी शहादत का गर्व भी उनके परिजनों को होता है, लेकिन इधर कारगिल वार में शहीद सैनिकों के परिजन आज भी कई सरकारी योजनाओं के लिए भटक रहे हैं। यकीनन, शहादत का कोई मोल नहीं होता है लेकिन शहीद परिवार के देखभाल की जिम्मेदारी भी सरकार और समाज की है।
40 गोलियां खाकर दुश्मन को दिया जवाब
कारगिल के युद्ध में 22 ग्रेनेडियर जुबैर अहमद भी पाकिस्तान को धूल चटाते हुए शहीद हो गए थे, उनकी पत्नी वीरांगना इमराना को उनकी शहादत पर बहुत गर्व है, वो बताती है कि शहादत के बाद लोगों के सेंटीमेंट जुड़ते हैं, लोग देशप्रेम के नारे लगाते हैं, ये बहुत अच्छी बात हैं, देशवासियों की भावनाएं अपने सैनिकों के प्रति जुडऩी चाहिए, पति की शहादत पर गर्व हैं, लेकिन उनकी शहादत के बाद कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कारगिल युद्ध के बारे में जिक्र करते ही वीर नारी इमराना उर्फ रानी अतीत में खो जाती हैं, बताती हैं कि आज भी वो पल मेरी आंखों के सामने है। जून 1999 की बात है जुबैर अहमद का हैदराबाद से जम्मू के लिए तबादला हो गया था।वहां परिवार को साथ नहीं रख सकते थे। ऐसे में वे मुझे, दो बेटी और बेटे को घर छोड़ने के लिए छुट्टी लेकर मेरठ आ गए थे। इसी दौरान कारगिल की जंग शुरू हो गई् रेडियो पर खबर आई थी। वे घर आए और अपना बैग लगाने लगे। इमराना बताती हैं कि मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि कारगिल में दुश्मन ने हमला बोल दिया है मुझे भी जाना होगा। इमराना ने कहा कि अभी तो 20 दिन की छुट्टी बची है, लेकिन वे नहीं माने।कहने लगे कि सेना में जिस तरह से मेरे दादा सरफतउल्ला खां ने देश के लिए लड़ाई लड़ीं, मुझे भी वैसे ही लड़ना है। मैंने कहा रुक जाओ तो कहने लगे कि फौजी हूं... जंग में घर बैठ गया तो जिंदगी भर खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। यही तो मौका है देश के लिए कुछ कर दिखाने का, तीन जुलाई को जुबैर हिंद पहाड़ी पर लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। भावुक इमराना बताती हैं कि उनको 40 गोलियां लगीं थीं।
बेटियों को बनाया कामयाब
मेरठ के थाना परीक्षितगढ़ के गांव ललियाना निवासी जुबैर अहमद की 22 ग्रेनेडियर हैदराबाद में तैनाती थी। वर्तमान में उनकी पत्नी इमराना, दोनों बेटियां और एक बेटा नौचंदी थाना क्षेत्र के जैदी फार्म गली नंबर दो में रहते हैं। वीर नारी इमराना बताती हैं कि वे बेटियों को पढ़ाना चाहते थे।उनकी इच्छा थी कि बेटी उच्च शिक्षा लेकर सरकारी सेवा में जाए। ऐसे में उन्होंने इस पर शुरू से ही ध्यान दिया।बड़ी बेटी सना परवीन अंग्रेजी से एमए कर चुकी हैं। छोटी बेटी निशा परवीन ने बीबीए कर लिया है। अब वह एमबीए करेंगी। बेटा खालिद जुबैर अपना काम कर रहा है।इमराना बताती हैं कि मेरी इच्छा बेटी को सेना में भेजने की थी उसकी पढ़ाई के हिसाब से सेना में उसकी नियुक्ति होनी वाली है। हेड क्वार्टर से पत्र आने के बाद उसको ज्वॉइनिंग मिल जाएगी।
जमीन के लिए भटक रहे
वीर नारी इमराना कहती हैं कि शहीद होने पर सारे अफसर-नेता तमाम आश्वासन देते हैं। लेकिन फिर सभी भूल जाते हैं। उनको सरकार ने जमीन देने की घोषणा की थी उसका पत्र डीएम के दफ्तर में आज तक पड़ा हुआ है। सैकड़ों चक्कर काट चुकी हैं लेकिन आज तक जमीन नहीं मिली। मवाना एसडीएम ने लिख दिया कि यहां जमीन नहीं हैं। अब कमिश्नर को फैसला लेना है शहीद हो जाने पर परिवार का दर्द कोई नहीं समझता। उत्तर प्रदेश सरकार से पेंशन मिलनी थी लेकिन साल 2004 से आज तक कुछ नहीं हुआ।लखनऊ चक्कर काट-काटकर थक गई हूं अब तो घर बैठ गई हूं कही नहीं जाती। तमाम सरकारें बदलीं लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
आशवासन मिले, सुविधाएं नहीं
कारगिल वार में कंकरखेड़ा निवासी सैनिक सतीश कुमार भी शहीद हो गए थे, अपने अनुभवों को समेटे हुए उनकी पत्नी वीरांगना विमला उनको आज भी याद करती हैं। वह बताती है कि शहादत के दौरान तो कई राजनेता कई बड़े अधिकारी आए थे। उन्होनें बहुत दिलासाएं दी थी, बहुत सी योजनाओं के आश्वासन दिए थे। लेकिन समय बीतने के साथ हालात बदल गए सब भूलते गए। पेंशन व मुआवजा तो मिल चुके हैं, लेकिन उन्होनें सरकार से जमीन पाने के लिए अबतक लगातार कई पत्र लिखे हैं लेकिन आज तक कोई सुविधा नहीं मिल पाई है, उन्होने कहा कि शहीद सैनिकों के परिवारों की देखरेख के लिए सरकार को सार्थक कदम उठाने चाहिए थे। क्योंकि शहीद सैनिकों का परिवार कई सारी मुश्किलों को झेलता हैं, उनका अहसास परिवार वालों को ही हो सकता है। पाकिस्तान को जवाब देने की बात उन्होनें कही, कहा कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की जरुरत हैं, सरकार को अपने शहीदों का बदला लेना चाहिए, तभी आतंकवाद खत्म होगा, इसके साथ ही सरकार को केवल दिलासा नहीं सुविधाएं जमीनी हकीकत पर देनी चाहिए।
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