दिमाग का GPS सिस्टम
अब अगर इन तीनों साइंटिस्टों की रिसर्च पर बात करें तो इन्होंने मस्तिष्क के GPS सिस्टम की खोज की है. इन साइंटिस्टों ने यह पता लगाया था कि दिमाग को हमारी स्िथति के बारे में कैसे पता चलता है और इसी के आधार पर यह हमें एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने में मदद करता है. इसके साथ ही इस रिसर्च में यह बात भी सामने आयेगी कि अल्जाइमर के मरीज क्यों अपने आस-पास को नहीं पहचान पाते.

कई रहस्य खुले

नोबेल असेंबली का कहना है कि,'इन खोजों ने वे समस्यायें सुलझाईं हैं, जिन्होंने फिलॉस्फर और साइंटिस्टों को संदियों से परेशान करके रखा था.' यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर ओकीफे ने सबसे पहले 1971 में मस्तिष्क के 'इंटरवल पोजीशनिंग सेंटर' का पता लगाया. उन्होंने दिखाया कि कमरे में एक स्थिति पर होने पर एक चूहे के नर्व सेल्स का समूह सक्रिय हो जाता है. जब वह स्िथति बदलता है तो नर्व सेल्स का दूसरा समूह सक्रिय हो जाता है. इसके बाद 34 साल बाद ब्रिट और एडवर्ड मोजर ने उसी तरह के अन्य नस का पता लगाया, जो नये मार्गों को तलाशने में योगदान देते हैं.



11 लाख डॉलर पुरस्कार राशि
नोबेल असेंबली ने कहा कि मस्तिष्क के पोजिशनिंग सिस्टम के बारे में यह नयी जानकारी हमें मेमोरी लॉस वाली बीमारियों को समझने में मदद करेगी. इसके तहत हम अल्जाइमर जैसे रोगों का इलाज भी कर पायेंगे. फिलहाल सम्मान पाने वाले तीनों साइंटिस्ट को 11 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि मिलेगी. पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा ओकिफे को जायेगा, जबकि शेष भाग मोजर दंपत्ति को मिलेगा. नोबेल असेंबली ने बताया कि भौतिकी, रसायन, साहित्य और शांति के लिये कार्य करने वालों को मिलने वाले पुरस्कार की घोषणा अगले कुछ दिनों में की जायेगी. वहीं अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा अगले सप्ताह की जायेगी.

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