40 वर्षीय अब्दुल हुसैन पाकिस्तान के सिंध से बीस दिन पहले दिल्ली के अपोलो अस्पताल आए, उन्हें अपने लिवर और गुर्दे का इलाज करवाना है.
अब्दुल बताते हैं कि पाकिस्तान में यह इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन भारत आने में उन्हें कोई हिचक नहीं थी.
अब्दुल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “दोनों देश की अवाम के दिल में कोई नफ़रत नहीं है, बॉर्डर पर जो हो रहा है, उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.”
भारत के गृह मंत्रालय के मुताबिक पाकिस्तान से मेडिकल वीज़ा पर आनेवाले लोगों की तादाद हर साल बढ़ रही है.
मंत्रालय के मुताबिक पाकिस्तान से आनेवाले मरीज़ ज़्यादातर लिवर ट्रांसप्लांट, गुर्दे के ट्रांसप्लांट, दिल के ऑपरेशन और आईवीएफ के उपचार के लिए आते हैं.
‘घर जैसा लगता है’
वसीम की बेटी सात महीने की थी जब वो पहली बार दिल्ली आए. अब वो डेढ़ साल की है और उसके सफल ऑपरेशन के बाद वो वापस पाकिस्तान जाने की तैयारी में हैं.
अब्दुल अपनी किडनी और लिवर के ट्रांसप्लांट के लिए दूसरी बार दिल्ली आए हैं.
वसीम कहते हैं, “हमें यहां बिल्कुल घर जैसा लगता है, लोग भी अपने लगते हैं और रहन-सहन भी. लोग बहुत गर्मजोशी से मिलते हैं, इस माहौल में सियासी बातें बहुत अजीब लगती हैं.”
सज्जाद भी अपनी डेढ़ साल की बच्ची का लिवर ट्रांसप्लांट करवा चुके हैं, वो मानते हैं कि दोनों देशों के राजनीतिक मसलों को सुलझाना ज़रूरी है लेकिन मीडिया पर इस पर ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो देने का आरोप लगाते हैं.
सज्जाद ने बीबीसी को बताया, “दोनों मुल्कों की परेशानियां एक जैसी हैं, ज़रूरत है कि उनको सुलझाया जाए और कोई भी जंग दोनों ही देशों के लिए मुनासिब नहीं है.”
अपोलो अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर अनुपम सिब्बल बताते हैं कि सभी अंतरराष्ट्रीय मरीज़ों के मुकाबले पाकिस्तान से आनेवाले लोगों को भाषा और रहन-सहन के एक जैसे तरीकों की वजह से यहां रहना बहुत सहज लगता है.
अनुपम सिब्बल कहते हैं, “दोनों देशों के बीच लोगों का आना-जाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यही तरीका है दोनों देशों की समानताओं को समझने का. इसलिए छात्रों, डॉक्टरों और पेशेवर लोगों का मेलजोल बढ़ाना अनिवार्य है.”
अन्य देशों की ही तरह इलाज के लिए भारत आने को इच्छुक पाकिस्तानी लोगों के लिए मेडिकल वीज़ा के एक से नियम हैं.
यह वीज़ा अधिकतम एक साल के लिए दिया जाता है और इसके तहत भारत तीन बार आया जा सकता है.
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