सिख ब्वॉय हैरी (शाहिद) को मुस्लिम गर्ल आयत (सोनम ) से प्यार हो जाता है, जो उसके गांव में अपनी बुआ के घर (सुप्रिया) रुकने आई होती है. उनका प्यार परवान चढ़ता है. दोनों एक-दूसरे को छोटी-छोटी पर्चियां देते हैं, वह हाथ में मेहंदी के कोन से लिखती है.
साथ ही एक बहुत ही खूबसूरत बारिश का सीन है. मगर ये सारे बढिय़ा सीन फिल्म का मूड नहीं बना पाते. दोनों ट्रैजिक लड़ाई और दंगों के बीच लम्बे वक्त तक दूर रहते हैं और एक-दूसरे को मिस करते हैं. एक प्यार में डूबे कपल का प्यार और बेकरारी आसानी से एक दिल जीतने वाली कहानी बन सकता था लेकिन लीड कैरेक्टर के कॉमन सेंस की कमी आपको इरिटेट कर देगी.
क्या पंकज हमें ये यकीन दिलाना चाहते हैं कि आज की कम्यूनिकेशन एज में दो पढ़े-लिखे समझदार लोग, एक-दूसरे को ढूंढ़ नहीं पाएंगे. जबकि दोनों के जान-पहचान के लोग तक कॉमन हैं. सबसे बड़ी बात कि जब दोनों मिल भी जाते हैं तो एक-दूसरे को अप्रोच भी नहीं करते. इस प्वॉइंट पर तो ये ऑडिएंस को फ्रस्ट्रेट करने से ज्यादा और कुछ नहीं कर सकता. फिल्म बढिय़ा टैम्पो के साथ शुरू होती है. शाहिद शुरुआत में ब्रिलिएंट दिखे. वह एनर्जेटिक हैं, कन्विंसिंग हैं और हां गजब के अट्रैक्टिव दिखे हैं.
लेकिन सेकेंड हाफ में वही हैरी, फेक और अनबिलीवेबल लगने लगता है. सोनम फिल्म में फैब्यूलस लगती हैं. उम्मीद है पंकज कपूर अगली बार दुनिया के सारे दुख-दर्द को बटोर कर दिखाने के बजाय एक बढिय़ा, रोमांटिक और थोड़ी शॉर्ट लेंथ की फिल्म देंगे.
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