Mauni Amavasya 2020: इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है।इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बनाया गया है।शास्त्रों में भी वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन में हरी का नाम लेने से मिलता है।
पूजन विधान
मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करना चाहिए।स्नान करने के बाद मौन व्रत संकल्प लें।भगवान विष्णु की प्रतिमा का पीले फूल, केसर, चंदन, घी का दीपक और प्रसाद के साथ पूजन करें।भगवान का ध्यान करने के बाद विष्णु चालीस या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए।मंदिर में दीप दान करके,सांयकाल धूप दीप से आरती अवश्य करें।पीले मीठे पकवान का भोग लगाएं।गाय को मीठी रोटी या हरा चारा खिलाने के बाद व्रत खोलें।
व्रत कथा
कांचीपुरी नगर में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था।उसकी पत्नी का नाम धनवती और पुत्री का नाम गुणवती था। उसके सात पुत्र थे।देव स्वामी ने सातों पुत्रों का विवाह करने के पश्चात अपनी पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर की तलाशी के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेज दिया और उसके बाद देवस्वामी ने अपनी पुत्री गुणवती की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई।ज्योतिषी ने गुणवती की कुंडली देखकर कहा कि सप्तपदी होते होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी।यह बात सुनकर देव स्वामी अत्यंत दुखी हुई और इसका उपाय पूछने लगीं।ज्योतिषी के अनुसार इस योग का निवारण सिंहलद्वीप वासिनी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा करने से ही संभव होगा।यह सुनकर देवस्वामी ने अपने सबसे छोटे लड़के के साथ अपनी पुत्री सोमा धोवन को घर लाने के उद्देश्य से सिंहलद्वीप जाने के लिए रवाना किया।
समुद्र के तट पर भाई-बहन उपाय सोचने लगे
ये दोनों समुद्र के तट पर पहुंचे और समुद्र को पार करने का उपाय सोंचने लगे लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा तो दोनों भाई बहिन भूखे प्यासे एक वट वृक्ष की छाया में उदास हो कर बैठ गए।उस वट वृक्ष पर गिद्ध के बच्चे रहते थे।वे दिन भर इन दोनों को परेशान होते हुए देख रहे थे।शाम को बच्चों की मां उनके लिए कुछ आहार लेकर आयीं और उन्हें खिलाने लगीं लेकिन गिद्ध के बच्चों ने कुछ नहीं खाया और अपनी मां से कहा कि इस वृक्ष के नींचे आज सुबह से ही दो भूखे प्यासे प्राणी बैठें हैं।जब तक वो नहीं खाएंगे हम लोग भी नहीं खाएंगे।बच्चों की बात सुनकर उनकी मां को दया आ गई।उसने दोनो प्राणियों को देखा और उनके पास जाकर कहा कि आपकी इच्छा मैंने जान ली है।आप लोग भोजन करें।कल प्रातः मैं आप लोगों को समुद्र पार सोमा के घर पहुंचा दूंगी। गिद्धनी की बात सुनकर उन दोनों भाई बहिनों की चिंता कम हुई दोनो को अत्यंत प्रसन्नता हुई और उन्होंने गिद्धानी को प्रणाम करके भोजन किया।प्रातः होते- होते गिद्धनी ने उन्हें सोमा के घर पहुंचा दिया। इसके बाद से सिंहलद्वीप वासिनी सोमा नाम धोविन को घर लेकर आयीं और उनकी पूजा की और इससे उनकी पुत्री का विवाह संपन्न हुआ।
- योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली
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