लेकिन इस साल साझा आर्थिक मसलों पर एकजुट होने के बजाए जी-20 के सदस्य देश सीरिया पर संभावित कार्रवाई और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गिरावट के मसले पर बंटे हुए हैं.
दो दिनों तक चलने वाली यह बैठक गुरुवार को शुरू हो रही है.
भारत का एजेंडा
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुधवार को सेंट पीटर्सबर्ग पहुंच गए.
भारत इस बैठक में अमरीकी फेडरल रिज़र्व के चरणबद्ध तरीके से राजकोषीय प्रोत्साहन वापस लिये जाने के फैसले को उठाएगा.
इस वजह से भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से डॉलर का पलायन बढ़ा है, जिसका असर रुपए की कीमतों पर साफ तौर से देखा जा सकता है.
सेंट पीटर्सबर्ग जाने से पहले जारी एक बयान में मनमोहन सिंह ने कहा, "मैं सेंट पीटर्सबर्ग में विकसित देशों की पिछले कुछ वर्षों से अपनाई जा रही गैर-परंपरागत मौद्रिक नीतियों से बाहर निकलने की ज़रूरत पर ज़ोर दूंगा, ताकि विकासशील देशों की विकास संभावनाओं को नुकसान पहुंचने से रोका जा सके."
सीरिया पर लामबंदी
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि उन्हें पूरा यकीन है कि रासायनिक हमलों में सीरियाई सरकार का हाथ है.
इसके अलावा जी-20 के देश इस बार सीरिया के मसले पर दो खेमों में बंटे हुए हैं. इन खेमों की अगुवाई अमरीकी राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति कर रहे हैं.
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि उन्हें यकीन है कि बीते महीने दमिश्क में हुए रासायनिक हमलों में सीरियाई सरकार का हाथ है.
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का समर्थन मिले या नहीं लेकिन दुनिया प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए बाध्य है.
विरोध में रूस
दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस विचार को "बिल्कुल बेतुका" बताया है कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करके जवाबी कार्रवाई का जोखिम लेंगे.
रूसी नेता ने कहा है कि संतोषजनक प्रमाण के बगैर असद सरकार के खिलाफ अमरीका का कोई भी दावा निराधार होगा.
वैसे सीरिया का मसला आधिकारिक रूप से जी-20 के एजेंडे में नहीं है. ऐसे में कोई भी चर्चा अनौपचारिक ही होगी.
इसके बावजूद इन दो पक्षों के पीछे बाकी देश किस तरह लामबंद होते हैं, यह देखने वाला होगा.
चीन का साथ
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रासायनिक हमलों में अपनी सरकार की भूमिका से इनकार किया है.
इसमें कोई शक नहीं कि अमरीकी कार्रवाई के विरोध में रूस को चीन का साथ मिलेगा. दोनों देश इस समस्या के राजनीतिक समाधान पर जोर दे रहे हैं.
भारत और इंडोनेशिया का रुख अभी साफ नहीं है. हालांकि भारत ने कहा है कि वह सीरिया में सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं करता है.
दक्षिण अफ्रीका ने साफ तौर से कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बगैर वह सैन्य कार्रवाई के खिलाफ है. अर्जेंटीना की राष्ट्रपति क्रिस्टीन किचनर की राय भी ऐसी ही है.
हो सकता है कि दो लातिन अमरीकी देश ब्राज़ील और मेक्सिको के राष्ट्रपति भी अमरीका का साथ न दें, क्योंकि पिछले सप्ताह यह खबर आई थी कि अमरीका ने कथित तौर पर उनकी गतिविधियों की निगरानी की थी.
फ्रांस का समर्थन
दूसरी ओर बराक ओबामा जानते हैं कि उन्हें सैन्य कार्रवाई के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांड का सर्मथन हासिल है, लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से उन्हें सैन्य कार्रवाई के लिए समर्थन नहीं मिलेगा.
तुर्की लंबे समय से सीरिया में हस्तक्षेप की मांग कर रहा है जबकि सउदी अरब सीरियाई विद्रोहियों को समर्थन दे रहे खाड़ी देशों के गठजोड़ का हिस्सा है.
कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी और यूरोपीय संघ अलग-अलग मसलों पर अलग राय रखते हैं.
ऐसे में जी-20 के मंच पर बराक ओबामा के लिए चुनौतियाँ आसान नहीं होंगी.
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